टिप्पणियां किसे प्रिय नहीं हैं? पर कुछ टिप्पणियां नहीं जमतीं। जैसे –
- अपने आप को घणा बुद्धिमान और पोस्ट लिखने वाले को चुगद समझने वाली टिप्पणी। आप असहमति व्यक्त कर सकते हैं। कई मामलों में होनी भी चाहिये। पर दूसरे को मूर्ख समझना या उसकी खिल्ली उड़ाना और अपने को महापण्डित लगाना आपको ट्रैफिक नहीं दिलाता। कुछ सीमा तक तो मैं स्वयम यह अपने साथ देख चुका हूं।
- पूरी टिप्पणी बोल्ड या इटैलिक्स में कर ध्यान खींचने का यत्न।
- टिप्पणी में अनावश्यक आत्मविषयक लिन्क देना। लोग अपने तीन-चार असम्पृक्त ब्लॉगों के लिंक ठेल देते हैं!
- पूरी टिप्पणी में तुकबन्दी। तुक बिठाने के चक्कर में विचार बंध जाते हैं और बहुधा अप्रिय/हास्यास्पद हो जाते हैं।
- हर जगह घिसी घिसाई टिप्पणी या टिप्पण्यांश। “सत्यवचन महराज” या “जमाये रहो जी”। आलोक पुराणिक के साथ चल जाता है जब वे इस अस्त्र का प्रयोग भूले-भटके करते हैं। जब ज्यादा करें तो टोकना पड़ता है!
- यदा कदा केवल जरा सी/एक शब्द वाली टिप्पणी चल जाती है – जैसे “:-)” या “रोचक” । पर यह ज्यादा चलाने की कोशिश।
- यह कहना कि वाइरस मुझे टिप्पणी करने से रोक रहा है। बेहतर है कि सफाई न दें या बेहतर वाइरस मैनेजमेण्ट करें।
- ब्लण्डर तब होता है जब यह साफ लगे कि टिप्पणी बिना पोस्ट पढ़े दी गयी है! पोस्ट समझने में गलती होना अलग बात है।
- ढेरों स्माइली ठेलती टिप्पणियां। यानी कण्टेण्ट कम स्माइली ज्यादा।
बस, ज्यादा लिखूंगा तो लोग कहेंगे कि फुरसतिया से टक्कर लेने का यत्न कर रहा हूं।
| मैं यह स्पष्ट कर दूं कि किसी से द्वेष वश नहीं लिख रहा हूं। यह मेरे ब्लॉग पर आयी टिप्पणियों की प्रतिक्रिया स्वरूप भी नहीं है। यह सामान्यत: ब्लॉगों पर टिप्पणियों में देखा, सो लिखा है। प्वाइण्ट नम्बर १ की गलती मैं स्वयम कर चुका हूं यदा कदा! टिप्पणियों का मुख्य ध्येय अन्य लोगों को अपने ब्लॉग पर आकर्षित करना होता है। उक्त बिन्दु शायद उल्टा काम करते हैं। |
मस्ट-रीड रिकमण्डेशन – एक टीचर की डायरी। इसमें कुछ भी अगड़म-बगड़म नहीं है।

दादा भाईआपकी पोस्ट जताती है कि ब्लॉगिंग के मैच में एक अम्पायर भी है जो आपके किये पर नज़र रखे है.बेहतर होता आप अपनी पोस्ट के अंत में ये मशवरा भी दे डालते कि कृपया इस पोस्ट पर टिप्पणी न करें ; मनन करें ; आचरण करें.प्रणाम
LikeLike
मैं भी एक सप्ताह से यही सोच रहा था कि क्या टिप्पणी करना आवश्यक है। यही कारण है कि इन दिनों जितने चिट्ठे पढ़े उन में से चौथाई पर भी टिप्पणी नहीं की। कभी टिप्पणी आवश्यक होते हुए भी नहीं कर पाते शब्द पुष्टिकरण के कारण। चलताऊ टिप्पणी से सिर्फ इतना महसूस होता है कि आलेख टिप्पणीकर्ता ने देख लिया है। वस्तुतः टिप्पणी का महत्व तभी है जब कि वह आप के आलेख की विषयवस्तु से अन्तर्क्रिया करती हो।
LikeLike
बहुत अच्छे विचार.मैं सहमत हूँ.पर यदा कदा इनमे से शायद कई भूल कर बैठता हूँ.लेकिन आपने चेता दिया है.धन्यवाद.हा हा हा… तो यह था, टिप्पणियों के साथ मेरा नया प्रयोग !पोस्ट पर ढेरों उपलब्ध टिप्पणियों से कापी पेस्ट करके कामचलाओ । यह आपकी टेंशन है, गुरुवर !नंगे को अपना अंडरवियर मैला होने की चिन्ता ही नहीं , ही ही ही !
LikeLike
:0 :) :) :) :) :) जित्ती पसंद हो उत्ती रखे :)
LikeLike
yes, i agree when a comment is to the point and says the person’s thoughts in a precise manner then the Blog -Writer , does feel , inspired & happy. Otherwise, one should refrain from commenting in a haphazard fashion — I’m away from my PC – hence this comment is in Eng. Will come back to read more, later …till then,Regards,L
LikeLike
टिप्पणीकारों के लिए आदर्श आचारसंहिता? मुश्किल है.नंबर एक वाली गलती तो हमसे होती रहती है. ख़ुद भी ब्लॉग लिखने वालों को तो इससे बचना ही चाहिए. :-) वायरस टिप्पणी से रोके, ये कुछ समझ में नहीं आया.लगता है कि इस पोस्ट पर ढेर सारी रोचक टिप्पणियां आने वाली हैं. लौट कर आते हैं पढने.
LikeLike
बहुत अच्छे विचार.मैं सहमत हूँ.पर यदा कदा इनमे से शायद कई भूल कर बैठता हूँ.लेकिन आपने चेता दिया है.धन्यवाद.
LikeLike
आपको चाहे पसन्द हो या न हो, पाठक अपनी मर्जी का मालिक होता है। जो मन में आयेगा टिपियायेगा। आप क्या कल्लेंगे सिवाय माडरेट करके अप्रूव करने के! वैसे सब तरह की टिप्पणियों के बारे में उदाहरण देकर समझाना चाहिये। जैसे कि …. टाइप!
LikeLike
आप कितने अच्छे हैं. बता देते हैं कि क्या पसंद है, क्या नहीं. साधुवाद.मित्रों, जो इस तरह की टिप्पणियां करना चाहते हैं लगातार, वो मायूस न हों.वो हमारे यहाँ सादर आमंत्रित हैं. :)वहाँ असंसदिय भाषा छोड़ सब कुछ इत्मिनान से छोड़कर जायें.ज्ञानजी का आभार, मार्केटिंग का मौका दिया. ऐसे ही लगे रहिये. हा हा!
LikeLike
कोई टिप्पणी नहीं …….ज्ञान जी !
LikeLike