बहुत बार पढ़ा है कि हारने के बाद पोरस को सिकन्दर के सामने जंजीरों में जकड़ कर प्रस्तुत किया गया। उस समय सिकन्दर ने प्रश्न किया कि तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जाये? और पोरस ने निर्भीकता से उत्तर दिया – “वैसा ही, जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है।” यह नेतृत्व की निर्भीक पराकाष्ठा है। अच्छे नेतृत्व में इसके दर्शन होते हैं।
मुझे कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी जी की पुस्तक “कृष्णावतार” का एक प्रसंग याद है। पांचाली का स्वयंवर होने जा रहा है। कृष्ण जानते हैं कि पाण्डव अज्ञातवास के अन्तिम चरण में वहां आ चुके हैं। उनका वचन है कि द्रौपदी का विवाह अर्जुन से हो। उसके लिये जरासंध को किनारे करना आवश्यक है। आधी रात बीत चुकी है। जरासंध को सोते से जगा कर उसे बताना है कि वह वापस लौट जाये। निर्भीक कृष्ण निहत्थे जरासंध के खेमें में पंहुचते हैं। जरासंध को नींद से उठाया जाता है। वह कृष्ण से वैसे की खार खाये है। उनका वध करने को अपनी गदा की मूठ पर हाथ रखता है जरासंध। और कृष्ण पूरी शान्ति और निर्भीकता से कहते हैं कि यह स्वयंवर का समय है। अगर जरासंध उनकी हत्या करता है तो स्वयंवर का नियम भंग होगा और आर्यवर्त के सभी राजा कर्तव्य से बंधे होंगे कि वे स्वयंवर भंग करने वाले जरासंध का वध कर दें। जरासंध किचकिचा कर रह जाता है – कृष्ण का बालबांका नहीं कर पाता। कृष्ण के राजोचित आत्मविश्वास का यह प्रसंग मुझे अद्भुत लगता है।
यह अवश्य है कि सफल नेता होने के लिये हममें यह राजोचित आत्मविश्वास होना चाहिये और यदि नहीं है तो उसको विकसित करने का सतत प्रयास करना चाहिये।
| मैं इस राजोचित आत्मविश्वास का एक और उदाहरण देता हूं।
हेल सिलासी इथियोपिया के १९३० से चार दशक तक सम्राट रहे। वे राजवंश में थे पर उनका राजा बनना तय न था। लिज तराफी नामक इस नौजवान ने ऐसा जबरदस्त राजोचित आत्मविश्वास दिखाया कि सम्राट मेनेलिक द्वितीय का विश्वासपात्र बन बैठा। जब सिंहासन के बाकी दावेदार बड़बोले, ईर्ष्यावान और षडयंत्रकारी थे; लिज तराफी शान्त, धैर्य और आत्मनिश्चय से परिपूर्ण रहता था। बाकी दावेदार इस पतले नौजवान को धकियाने का यत्न करते थे पर यह संयत बना रहता था। वह ऐसे दिखाता था जैसे उसे अन्तत: सम्राट बनना ही है। और धीरे धीरे अन्य कई भी ऐसा सोचने लगे। सन १९३६ में इटली ने इथियोपिया पर अधिकार कर लिया था। तराफी (तब हेल सिलासी) देश निकाला झेल रहे थे। उस समय उन्हे लीग ऑफ नेशन्स को अपने देश की आजादी के लिये सम्बोधित करने का अवसर मिला। इतालवी श्रोताओं नें खूब शोर शराबा किया और उन्हे अश्लील गालियां भी दीं। पर हेल सिलासी ने अपना संयम नहीं खोया। अपनी बात पूरी तरह से कही। हेल सिलासी के राजोचित आत्मविश्वास से उनके विरोधी और भी बौने और भद्दे लगे। उनका कद और बढ़ गया। यह होता है राजोचित आत्मविश्वास! |
ई-स्वामी की टिप्पणी में तो जान है! आप सहमत हों या न हों, आप अनदेखा नहीं कर सकते।
(आज मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं है, अत: टिप्पणियां मॉडरेशन में देरी सम्भव है। कृपया क्षमा करें।)



शीघ्र स्वास्थय लाभ की मंगल कामना. मैं भी इसी दौर से गुजर रहा हूँ.सादरसमीर लाल
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प्रेरक पोस्ट, आभार
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saare prasang prerak hain… par jab Krishna ki baat aa gayi to meri nazar mein bina soche wo prasang sarvottam hai.
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आत्मविश्वास , एक जिजिविषा देता है,…I can do it !सरीखा साहस, विसंगतियों पर विजय पाने का !
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गुरुदेव, रात के १०:३० बजे की टिप्पणी का ‘मॉडरेशन’ ( डॉ.दिनेश राय द्विवेदी जी हिन्दी सुझाएं- सुधारात्मक संशोधन? ) आप सबेरे ही कर पाएंगे, और त्बतक आपकी नयी पोस्ट भी आ चुकी होगी लेकिन फिर भी आपकी पक्की धुन को सलाम किए बगैर मैं भी सो नहीं सकता। आशा है आप सुबह तक भले-चंगे हो जाएंगे, और एक अच्छी पोस्ट पढ़ने को मिल जाएगी।
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अच्छा और प्रेरक प्रसंग। आत्मविश्वास और धैर्य हो तो आदमी के लिए कुछ भी असंभव नहीं होता
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अस्वस्थता में भी इतना प्रेरणादायी आलेख…यह भी तो राजोचित आत्मविश्वास है :)
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अरे, दुश्मनों की तबीयत नासाज हो गयी ,रोग निरोधी क्षमता को ज़रा आत्मबल से ऊंचा कीजिये ..फिर हमारी शुभकामनाएं भी हैं !
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एक ऐसा पायलट जिसने अपनी दोनों टाँगे खोकर नकली टांगो से fighter प्लेन उडाया ,मेरा सर्जन दोस्त जिसने अपना अंगूठा ओर सीधे हाथ की अंगुलिया ओर एक पाँव खोकर ..वापस दूसरी ब्रांच में पी जी करके एक कामयाबी की बुनियाद लिखी….ब्लॉग जगत के पंगेबाज अरुण …..ओर कंचन …जिन्होंने मुश्किल दौर से गुजर कर भी अपनी पहचान बनायी ….ये है आत्मविश्वास..एक आम इन्सान का आत्म्विशास
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bahut hi sahi sateek aur sundar likha hai aapne.Aabhaar.
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