मेरे पिताजी सन सैंतालीस में १२-१३ साल के थे। इलाहाबाद के पास मेजा तहसील के सिरसा कस्बे में सातवीं कक्षा के छात्र। उनको कुछ याद है स्वतन्त्रता के पहले दिन की।
बहुत हल्लगुल्ला था, पंद्रह अगस्त के दिन। सब लोग सवेरे सवेरे गंगास्नान को पंहुचे थे। सामुहिक गंगा स्नान मतलब दिन की पवित्रता और पर्व होने का अहसास। एक रेडियो (इक्का-दुक्का रेडियो ही थे कस्बे में) को सड़क के किनारे रख दिया गया था – सार्वजनिक श्रवण के लिये। सब सुन रहे थे।
«« बैद बाबा (पण्डित आदित्यप्रसाद पाण्डेय) के घर के पास सरकारी मिडिल स्कूल में पण्डित दीनदयाल उपाध्याय आये थे। बदामी रंग का कुरता और धोती में। सरल पर प्रभावकारी व्यक्तित्व। बहुत ओजस्वी भाषण दिया था आजादी पर उन्होंने। सिरसा में कांग्रेस और संघ के महान नेताओं का आना-जाना होता रहता था।
उस समय बिजली नहीं थी, पर पंद्रह अगस्त सन सैंतालीस की शाम को दीपावली मनाने का माहौल था। कस्बे की सड़कों के दोनों किनारों पर बांस की खपटी (बांस को चीर कर आधा हिस्सा) समान्तर लगाकर उनपर दीये रख कर रोशनी की गयी थी। उस जगमगाहट का मुकाबला अब की बिजली के लुप-झुप करते लट्टुओं की लड़ियां भी क्या करेंगी!
एक कस्बे में था यह माहौल! देश में कितनी सनसनी रही होगी! कितने सपने झिलमिला रहे होंगे। आज वह सनसनी है क्या?

sirf kalpna hi kar sakte hain us samay ki…kaash wo jazba fir se hamari ragon mein daude.
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भाई ज्ञानदत्त जी,आपकी मानसिक हलचल की निम्न पंक्तियों आज वह सनसनी है क्या? ने मुझमें भी हलचल मचा दी और कहलवा ही दिया की कहा से चले और कहा ला खड़ा किया, आज के नौ जवानों को खड़ खड़ा दिया आपके उपरोक्त प्रश्न का मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ यही उत्तर दे सकता हूँ कि आज वह सनसनी तो नही ही है , और अगर कुछ है तो वह तना-तनी है . चन्द्र मोहन गुप्त
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सही बात है। बात रौशनी की नहीं, दिल कीभवनाओं की होतीहै। दरअसल अब न वो जज्बा रहा और न ही देश के प्रति वह जुनून।
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एक सिरसा हरियाणा में भी है और एक सिरसी कर्नाटक में। आज यह तीसरा भी मिल गया!
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vakaikai baar kya bar bar sochna padta haikaisi aazadi ?
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अब तो वंदेमातरम पर भी बहुत लोगों के रोएं खड़े नहीं होते।
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शुभकामनायें…और हम कूश्श नेंईं बोलेगा ।जैसे अब तक काम चलाते आये हैं,वैसे ही सिरि शुभकामनाओं से अपना काम चलाते रहिये !ऒईच्च..हम बोलेगा तो बोलोगे की बोलता है,हम कूश्श नेंईं बोलेगा …
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आजा दीआ जादी बनीबरबादीहुई खाना खराबीबेहिसाबी।
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बहुत सही सवाल।इस सवाल का जवाब इसलिए दे पाना मुश्किल है क्योंकि हमें यह पहले तलाशना होगा कि हम सामूहिक की बजाय व्यक्तिगत पर ज्यादा जोर क्यों दे रहे हैं, तब ही हमें आपके सवाल का जवाब मिल सकेगा।जल्द स्वास्थ लाभ करें।http://i151.photobucket.com/albums/s149/awarabanzara/azadi1.jpg
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स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं!
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