क्या सच है?


पिछली बार भी वे ईद से पहले आये और इसी तरह का ऑपरेशन किया था। इसकी पूरी – पक्की जांच होनी चाहिये और यह सिद्ध होना चाहिये कि पुलीस ने जिन्हें मारा वे सही में आतंकवादी थे।" – सलीम मुहम्मद, एक स्थानीय निवासी।  
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एस ए आर गीलानी, दिल्ली विश्वविद्यालय के अध्यापक, जिन्हें २००१ के संसद के हमले में छोड़ दिया गया था, ने न्यायिक जांच की मांग करते हुये कहा – "इस इलाके के लोगों को बहुत समय से सताया गया है। यह नयी बात नहीं है। जब भी कुछ होता है, इस इलाके को मुस्लिम बहुल होने के कारण निशाना बनाती है पुलीस।"
एनकाउण्टर के बारे में पुलीस के कथन पर शायद ही कोई यकीन कर रहा है।
सिफी न्यूज़

Ridiff Encounter 
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इन्स्पेक्टर मोहन लाल चन्द शर्मा, एनकाउण्टर में घायल पुलीसकर्मी की अस्पताल में मृत्यु हो गयी


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

38 thoughts on “क्या सच है?

  1. .@ शिव भाईक्या स्वाधीनता संग्राम ( ? ) का हमारा इतिहास यह सनद नहीं देता, कि इक़बाल व ज़िन्ना किन वज़हों से भटक गये ? नेता जी बोस क्यों कांग्रेस से बिछड़ गये ? मृत्योपरांत उनके अवशेष किस पैंतरे के तहत नेपथ्य में रखे गये । डेढ़ दो वर्ष में ही ज़िन्ना की आसन्न मृत्यु की पक्की सूचना के बावज़ूद भी बंदरबाँट स्वीकार क्यों किया गया ? यह तो सुदूर अतीत की बातें हैं, 1984 में 5000 सिक्खों के संहार में अहिंसक हिंदू सक्रिय थे, या कोई और ? बाकायदा वोटर लिस्ट से उनकी शिनाख्त करवाने वाले कौन और कैसे लोग थे ? बोया बीज बबूल का… आम कहाँ से होय ? दुर्भाग्य से इस अप्रिय सच में कबीर का कोई स्थान नहीं है, फिर भी यह सच तो है ही !

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  2. शर्माजी की जान चली गयी, फिर भी इसे नकली मुठभेड़ मानने वाले या तो अंधे या बेवकूफ।(आलोक पुराणिक) वे न अन्धे हैं न बेवकूफ़, बल्कि वे हमें ऐसा समझ रहे हैं। क्योंकि हम अफ़जल को फाँसी नहीं दे पा रहे। वोट की खातिर देश का बेड़ा गर्क करने को तैयार हैं,भले ही यह वोट भी एक छलावा हो। सेकुलरवाद के ढोंग में जिए जा रहे हैं, आतताइयों की मर्जी पर।देश के दुश्मनों को पहचानना जब इतना सरल हो गया है तब भी कहने से डरते हैं, आँखें मूँद कर अन्धेरा होने का भ्रम पालते हैं।। पोलिटिकली करेक्ट बनने के चक्कर में। हाय रे राजनीति, और हाय रे देश के नेता…। डूब मरें ये।

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  3. विषय अति गंभीर है. सुबह से एक से अधिक बार टिप्पणी लिखने की सोची पर आक्रोश की अधिकता से स्वर ज्यादा कड़वा होता देख रुक गए.स्वर्गीय श्री शर्मा जी को हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, उनका बलिदान स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगा. पर एक प्रश्न साथ-साथ उभरता है, ऐसे खतरनाक ऑपरेशन में शामिल होने से पहले बुलेट प्रूफ़ जेकेट क्यों नहीं धारण की गयी? चार गोलियां उनके पेट में लगीं. देशभक्तों को अपनी जान के साथ ऐसा खिलवाड़ करने की क्या जरूरत है? आतंकवाद के खिलाफ लडाई जीती जायेगी आतंकवादियों को ख़त्म करके ना की स्वयं शहीद होकर.

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  4. शर्माजी की जान चली गयी, फिर भी इसे नकली मुठभेड़ मानने वाले या तो अंधे या बेवकूफ। पुलिस हमेशा सही नहीं होती पर हमेशा गलत भी नहीं होती। कबीर कौशिक की फिल्म सहर में फर्जी एनकाऊंटर में कुछ पुलिस वाले एक गैंगस्टर को मार गिराते हैं। एक वकील साहब उन्हे डिफेंड तो करते हैं, पर उनसे कहते हैं कि आईडियली यह सब नहीं होना चाहिए। इसके जवाब में पुलिस चीफ कहते हैं कि आईडियली यह नहीं होना चाहिए, पर हमें आइडियल कंडीशंड तो दीजिये।

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  5. इस पूरे वाक़ये में एक ही बात संतोष की है कि इंस्पेक्टर शर्मा को सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही ने श्रद्धांजलि दी है. क्या ही अच्छा हो जो उनमें आतंकवाद के ख़िलाफ़ कड़े क़ानूनी प्रावधानों पर भी सहमति हो जाए, जैसा अमरीका, ब्रिटेन और अन्य आतंकवादपीड़ित राष्ट्रों ने किया है. कहने की ज़रूरत नहीं कि किसी विशेष क़ानून के साथ उसके दुरुपयोग को असंभव बनाने वाले उपाय भी लगाए जाएँ. ख़ुशी की बात है कि चुनावी साल होने के बावजूद सरकार के भीतर एक कोने से ही सही, आतंकवादरोधी विशेष क़ानूनी प्रावधानों के पक्ष में कुछ आवाज़ें सुनाई देने लगी हैं!

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  6. ये तो ज्यादती है. एक एनकाउंटर में एक पुलिस वाला मर जाए और कुछ लोग उसे फेक एनकाउंटर कहें तो और क्या कहा जा सकता है?किसी ख़ास धर्म के लोगों को कॉलोनियों में बसाए जाने के परिणाम स्वरुप स्वीकार किया जाय इस तरह के विरोध को. जिन लोगों ने ऐसा किया, वही आज इस बात की शिकायत करते फ़िर रहे हैं कि मुसलमानों को मुख्यधारा में आने का मौका नहीं मिला. यह बात मैं यहाँ इस लिए उठा रहा हूँ कि इतिहास पढने पर जोर दिया जाता रहा है.

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  7. .डा. अनुराग के परिपक्व कथन से सहमत…पर, एक बात गौर की जाये कि.. ‘अधिकतम एनकाउंटर जैसे भी होता है, अब लुका-छिपा न रहा, किन्तुशहीद होने वाले पुलिसकर्मी बहुधा विभागीय वैमनस्य के निस्तारण के तहत याफिर मीडिया और जनता में अपने पिछले निकम्मे अतीत को झुठलाने के शिकार के रूप में अंज़ाम दिया जाता है ’मैं जानता हूँ, कि मैं क्या लिख रहा हूँ, किन्तु मैंने आज तक एक भी शब्द कहीं भी तथ्यहीन नहीं लिखा, यह भी एक सच है ! इस तरह के कृत्यों का अपना एक कोडवर्ड ’ एलिमिनेट ’ हुआ करता है । गर्व से कहें कि … सबतो लिख नहीं सकता !

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  8. मेरे देश के दुश्मन मेरे देश मे रहते है।मेरे देश के दुश्मन अपने दुश्मन कोदेश का दुश्मन कहते है॥इतने सहनशील है हम जो सब सहते है।इसीलिये पल-पल मे खून के दरिया बहते है॥मेरे देश के दुश्मन मेरे देश मे रहते है।

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  9. जोधपुर में मुस्लिम बहुल इलाक़े में पुलिस पहुँची शाम का वक़्त था.. शुक्रवार था.. मस्जिद के पास नमाज़ पढ़ी जा रही थी.. पुलिस ने वाहा चार लोगो को पकड़ा सभी लोगो ने पुलिस का विरोध किया.. आरोप लगा की मुस्लिम इलाक़ा है तो क्या इसका मतलब यहा आतंकवादी होंगे? तमाम संगर्श लाठिया चले पत्थर फेंके गये.. लोगो को खदेड़ा गया. पुलिस वालो को भी छोटे आई.. अंतत पुलिस उन चारो को ले गयी.. दूसरे दिन उन्होने अपराध कबूल किया आतंकवादियो को वहा ठहराने की बात कबूल की.. पुलिस की कार्यवाही रोकने की क्या वजह रही होगी? अगर मुस्लिम इलाक़ो में आतंकवादी नही रहते तो फिर कहा से मिलते है.. हर बार विरोध होता है की मुस्लिम इलाक़ो को ही निशाना क्यो बनाया जाता है.. और हर बार आतंकवादी मिलते भी वही से है.. और हर बार कुछ सवाल अनुतरित रह जाते है..

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