आज सवेरा न जागे तो मत कहना


मेरी पत्नीजी ने कबाड़ से मेरी एक स्क्रैप बुक ढूंढ़ निकाली है। उसमें सन १९९७ की कुछ पंक्तियां भी हैं।

यूं देखें तो ब्लॉग भी स्क्रैप बुक ही है। लिहाजा स्क्रैप बुक की चीज स्क्रैप बुक में –

Dawn

आज सवेरा न जागे तो मत कहना
घुप्प कोहरा न भागे तो मत कहना

दीवारों के कानों से छन जाये अफवाह अगर
तो झल्ला कर व्यर्थ अनर्गल बातें मत कहना

रेत के टीलों पर ऊंचे महल बनाने वालों
तूफानों के न चलने के मन्तर मत कहना

मेरा देश चल रहा कछुये की रफ्तार पकड़
खरगोश सभी अब सो जायें यह मत कहना

मैं नहीं जानता – कितनी पी, कितनी बाकी है
बोतल पर मेरा हक नाजायज है, मत कहना

बेसुरे गले से चीख रहे हैं लोग मगर
संगीत सीखने का उनको अधिकार नहीं है, मत कहना

इस सड़क पर चलना हो तो चलो शौक से
इस सड़क पे कोई और न चले, मत कहना

— ज्ञान दत्त पाण्डेय, १३ अगस्त, १९९७, उदयपुर।

और छन्द/मात्रायें/प्यूरिटी (purity – शुद्धता) की तलाश भी मत करना। 

कोई प्रिटेंशन्स (pretensions – मुगालते) नहीं हैं उस दिशा में। Blushing 2


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

52 thoughts on “आज सवेरा न जागे तो मत कहना

  1. मैं इस प्रतीक्षा में हूँ कि मान्यवर अनूप शुक्ल जी इसे ग़जल कब घोषित करेंगे। मुझे तो कुछ-कुच वैसा ही लग रहा है। लेकिन जबतक उस्ताद न मान जाँय, तबतक तो अनुमान ही कर सकता हूँ।:)

    Like

  2. मानसिक हलचल के भीतर कवि भी छुपा है, अंतिम लाईन चकाचक। कबाड़खाने की सफाई जारी रखी जाय प्लीज

    Like

  3. छन्द/मात्रायें/प्यूरिटी (purity – शुद्धता) की तलाश इस चेतावनी की आवश्यकता नहीं थी। रचना बहुत सुंदर है। आकांक्षाओं को बहुत अच्छे से अभिव्यक्त करती है।

    Like

  4. अरे वाह क्या बात है भाई छोड़ रखी है क्यों कविताई कम लिख के जब ऐसी मार ज्यादा की है क्या दरकार बहुत खूब है ज्ञान जी. गंगा का पुल बहुत खींचता है अपनी तरफ़.

    Like

  5. कविता तो काफी अच्छी लगी…..पर अंतिम चार लाईनें अभी सोनी टीवी पर चल रहे इंडियन आईडल की एक घटना की याद दिला गये। हुआ यूँ कि कोई भानु नाम का लडका पिछले तीन साल से ईंडियन आईडल के चक्कर मे पडा हुआ है और वो लगभग हर बार नाकाम हो जाता है। अभी पिछले दिनों जब उसे गाने के लिये इंडियन आईडल मे बुलाया गया तो अन्नू मलिक ( पता नहीं क्यों मुझे ये शख्स कभी पसंद नहीं आया) ने उस भानु को कहा कि तुम संगीत छोड कर कुछ और करो, कोई बैक-अप रखो….ये नहीं कि सिर्फ इंडियन आईडल बनने के नाम पर अपने काम-धाम छोड कर यहाँ अपना समय वेस्ट करों। हाँलाकि अन्नू मलिक ने उस फफक कर रो पडे भानु के भले के लिये ही यह बात कही थी लेकिन मैं तब सोच मे पड गया था कि बात तो सच है – क्यों आखिर लोग इस मायावी दुनिया के पीछे बेतहाशा भाग रहे हैं। अन्नू मलिक को तो मैं वैसे भी पसंद नहीं करता….लेकिन कहीं एक बात थी जो उस अन्नू मलिक की जो लग गई । खैर आपकी ये अंतिम चार लाइनें – उसी वाकये की याद दिला गईं।बेसुरे गले से चीख रहे हैं लोग मगर संगीत सीखने का उनको अधिकार नहीं है, मत कहनाइस सड़क पर चलना हो तो चलो शौक से इस सड़क पे कोई और न चले, मत कहना

    Like

  6. आपकी बहुत पुरानी कविता पढ़ ली है, नींद आ रही है..सोने जा रहे हैं (रात के २ बज चुके हैं), कल मिलेन्गे।नमस्कार!

    Like

  7. जो मित्र १९९७ में २००८ से बेहतर कवि था,उसे आज अनजाने में वाह वाह मत कहना!!–क्या बात है!!! सुभान अल्लाह!! भाभी को नमन…उनसे कहें कि और कबाड़ छानें..उसमें कुबेर छिपा है.

    Like

Leave a reply to RC Mishra Cancel reply

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started