मेरे निरीक्षक श्री सिंह को कल सेलरी नहीं मिली थी। कैशियर के पास एक करोड़ तेरह लाख का कैश पंहुचना था कल की सेलरी बांटने को; पर बैंक से कुछ गूफ-अप (goof-up – बेवकूफियाना कृत्य) हो गया। कुल सत्तर लाख का कैश पंहुचा। लिहाजा सौ डेढ़ सौ लोगों को सेलरी न मिल पाई। पहले तनातनी हुई। फिर जिन्दाबाद-मुर्दाबाद। फॉलोड बाई यूनियन की चौधराहट की गोल्डन अपार्चुनिटी!
सिंह साहेब से यह आख्यान सुन कर मैं सेलरी मिलने में कुछ देरी के कारण उत्पन्न होने वाली प्रचण्ड तड़फ पर अपने विचार बना ही रहा था कि एक प्रॉबेबिलिटी के आधार पर छपास पर पंहुच गया। और सनराइज जी ने क्या दमदार पोस्ट लिखी है – मेरी सेलरी कम कर दो।
एक तारीख को सैलरी नहीं मिलने के कारण मैं सैलरी विभाग में इतनी बार मत्था टेकने जाता हूं कि वहां के अधिकारी भी मुझे पहचानने लगे हैं…कई कर्मचारी तो मेरे दोस्त भी बन गए हैं….कौन कहता है कि समय पर सैलरी नहीं मिलना काफी दुखद होता है ?
…सनराइज जी, छपास पर।
सनराइज जी कौन हैं; पता नहीं चलता ब्लॉग से। यह जरूर पता चलता है कि उनकी सेलरी पच्चीस हजार से ज्यादा है। इससे कम होती तो उन्हें एक तारीख को तनख्वाह मिल गयी होती। और वे क्रेडिट कार्ड, होम लोन, घर का बजट, बिजली का बिल, फोन का बिल और ना जाने कौन कौन से बिल चुका चुके होते। अब तो (बकौल उनके) “बच्चे का डायपर खरीदते वक्त भी ऐसा लगता है जैसे उसका पॉटी डायपर पर ना गिरकर मेरे अरमानों पर गिर रहा हो…”
साहेब, यह नियामत है कि (मेरी सेलरी पच्चीस हजार से ज्यादा होने पर भी) मेरे पास क्रेडिट कार्ड नहीं है। किसी अठान-पठान-बैंक से लोन नहीं ले रखा। दाल-चावल के लिये मेरी अम्माजी ने जुगाड़ कर रखा है अगले १००-१२० दिनों के लिये। दिवाली की खरीददारी पत्नी जी निपटा चुकी हैं पिछले महीने। कोई छोटा बच्चा नहीं है जिसका डायपर खरीदना हो। लाख लाख धन्यवाद है वाहे गुरू और बजरंगबली का (वाहे गुरू का सिंह साहब के चक्कर में और बजरंगबली अपने लिये)!
खैर, मेरा यही कहना है कि सनराइज जी ने बड़ा चहुचक लिखा है। आप वह पोस्ट पढ़ें और अपने क्रेडिट-कार्ड को अग्निदेव को समर्पित कर दें। न रहेगा लोन, न बजेगा बाजा!
ॐ अग्नये नमः॥

आप बहुत भाग्यशाली हैं। इधर तो जलाने को कोई क्रेडिट/डेबिट कार्ड नहीं है। न ही कोई खाने पीने का इंतजामकर्ता रोज कमाने के अलावा कोई चारा नहीं वह भी केवल वकालत से।
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नहीं जी हम उनकी पोस्ट नहीं पढेंगे, हम पहले से ही दुखी हैं. आपकी पोस्ट पढ़ ली इतना ही काफी है आज के लिए. आप सनराइज़ जी वाली सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हैं, यही एक बड़ी खुशी की बात है हमारे लिए, बधाई!
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क्या रोचक विसंगति है । माथे पर कर्ज न हो तो ‘पश्चिम’ में चैन से सो नहीं सकते और माथे पर कर्ज हो तो ‘पूरब’ में नींद आंखों से दूर हो जाती है ।
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F9inancial insecurity is rampant , all across the globe. To each their own to be or not to be
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अच्छी जानकारी दी आपने इस पोस्ट के बारे में। सचमुच काफी नाटकीय हालात हो जाते हैं जब समय पर सैलरी न मिल पाये। कभी उनके बारे में भी यदि सोचा जाय जो बेरोजगारी से जूझ रहे हैं तो काफी कुछ झिंझोड कर रख देने वाले हालात सामने आते हैं। कुछ इन्ही हालात से गुजरे एक शख्स की कहानी Bill Liversidge नाम के लेखक ने अपनी किताब A Half Life Of One मे लिखी है, फिलहाल यह Online है। इसमे एक आम इंसान के रोजगार न मिल पाने पर अपने पत्नी और बच्चों से बिछडने का खतरा आन पडता है और पत्नी है कि वो अपने पति से बेहद प्यार करती है…लेकिन हालात एसे बन जाते हैं कि आगे चलना मुश्किल हो जाता है….घर पर आने वाले नौकरी के कॉल लेटर तक को वह शख्स इसलिये छुने से डरता है, क्योंकि उसे लगता है इसमे मेरी गिरफ्तारी का वारंट न हो…और इसी बीच वह बेहद खतरनाक कदम उठा लेता है,….बेहद रोमांचकारी इस नॉवेल को जरूर पढें बकौल लेखक A Half Life Of One – A novel about an ordinary man under extraordinary pressure.सचमुच ही एक सामान्य इंसान की दबावों मे आकर की गई घटनाओं की कहानी है।http://halflifeone.blogspot.com/
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क्या कहा क्रेडिट कार्ड को अग्निदेव के हवाले कर दें, इतनी मेहनत से क्रेडिट कार्ड मिला और उसको यूँ ही….अब आप हमारी कहानी सुनें :-)यहाँ (ह्यूस्टन) में आये आये तो पिताजी के दिये संस्कारों के चलते सब कुछ तुरंत नकद चुका देते थे । फ़िर जब सेलफ़ोन लेना हुआ तो बोले कि तुमने कभी जिन्दगी में उधार नहीं लिया, तुम्हारा कोई उधारखाता नहीं, कैसे भरोसा कर लें । पहले ५०० डालर जमा कराओ तब सेलफ़ोन का कनेक्शन देंगे । हमने कहा क्या मजाक है, हम नकद पैसा रखते हैं किसी का उधार नहीं और वो हम पर हंसने लगे । फ़िर अमेरिकन एक्सप्रेस वालो नें विद्यार्थियों पर तरस खाने वाले अंदाज में एक उधारखाता बनाया, और उस दिन की कसम राशन पानी, बिजली, फ़ोन, दूध, जूते सब उधार आता है ।
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बहुत अच्छा लिखा है आपने.वैसे भी मेरी मान्यता है कि क्रेडिट कार्ड मात्र सुविधा के लिए है..न कि अपनी औकात के बाहर एय्याशी करने या पैर फेलाने के लिए.क्रेडिट कार्ड को अगर डेबिअ कार्ड की तर्ज पर इस्तेमाल करें तो ही बेहतर. मगर न जाने क्यूँ लोग उसे अपनी का एक्टेशन मान बैठते हैं.पढ़ते जा कर सनराईज जी को..आजकल भारत आने की तैय्यारी में जरा आवाजाही कम सी हो गई है जो कचोटती तो है मगर भारत जाने का ख्याल उस कचोटन को गुदगुदी टाईप में अहसास करता है. :)
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मैंने अक्षरशः पढ़ लिया है ! पर टिप्पणी नही दे पा हूँ -यही टिप्पणी मान ली जाय !
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जो लोग “क्रेडिट कार्ड” में से क्रेडिट हटा उसको मात्र एक भुगतान कार्ड के रूप में प्रयोग करते हैं वे सुखी रहते हैं। और जो लोग क्रेडिट का प्रयोग करने लगते हैं वे बाद में दुखिया जाते हैं क्योंकि वे एक ऐसे दलदल में जा फंसते हैं जिसमें से निकला हैसियत के बाहर होता जाता है।बाकी हम तो अपने क्रेडिट कार्ड न फूंकेगे जी, काफ़ी प्वायंट जमा हो गए हैं, बस अब तो उनको रिडीम कर कोई गिफ़्ट वाउचर लेना है!! :)
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सही हैं सनराइज़ महाराज | मोह माया से इतनी विरक्ति |
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