क्या भारत युद्ध के लिये तैयार है?


War

पहला रियेक्शन यह होता है कि तुरत पाकिस्तान पर चढ़ाई कर देनी चाहिये। पर शायद हम आतंकी हमले के लिये भी तैयार नहीं हैं – आपदा प्रबन्धन के स्तर पर और जन भावनाओं के सही प्रबन्धन के स्तर पर भी। युद्ध तो बहुत बड़ा कमिटमेण्ट मांगता है। मंदी के इस दौर में देश एक फुल स्केल के युद्ध का खर्च और तनाव झेल सकता है? झेलने को चाहे झेल जाये, पर अगर शत्रु जितना बाहरी हो उतना भीतरी भी@ तो युद्ध का यूफोरिया बहुत सार्थक नहीं।


दिसम्बर 2001:

भारत ने सेना सीमा पर लगा दी थी। यह पूछने पर कि क्या वे जैशे-मुहम्मद और लश्करे तैय्यबा पर कार्रवाई करेंगे; मुशर्रफ ने कहा: हम अपनी जिम्मेदारी समझते हैं और हमें मालुम है कि हमें क्या करना है।
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अक्तूबर 2002:
भारतीय सेना की सीमा से वापसी पर रक्षामन्त्री जॉर्ज फर्नाण्डिस का कथन: सालों से हम क्रॉस-बॉर्डर टेररिज्म से नित्य के आधार पर लड़ते रहे हैं। वैसा करते रहेंगे।

पचास लाख रुपये के खर्च और कुछ फिदाईन के बल पर एक देश को अर्थिक रूप से लकवाग्रस्त कर देना और युद्ध में लिप्त कर देना – यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी लश्करे तैय्यबा (या जो भी कोई आउटफिट हो) की। अभी तक तो वे बहुत सफल होते प्रतीत हो रहे हैं। इस हमले से जो लाभ भारत को मिल सकता था – राष्ट्रीय एक जुटता के रूप में, वह भी केवल आंशिक रूप से मिलता नजर आता है। वह लाभ दिलाने के लिये एक करिश्माई नेतृत्व की जरूरत होती है। ऐसे समय में ही करिश्माई नेतृत्व प्रस्फुटित होता है। और राजनैतिक दलों के लिये स्वर्णिम अवसर है जनमत को अपनी ओर करने का।

आतंक से युद्ध एक बार की एक्सरसाइज नहीं है। यह सतत लड़ा जाने वाला युद्ध है। शायद लोग यह सोच रहे थे कि अफगानिस्तान और ईराक में जंग जीत कर अमेरिका चैन से बैठ पायेगा। पर वह चैन दीखता नहीं है। हां, अमेरिकी यह जरूर फख्र कर सकते हैं कि उन्होंने एक “बीफिटिंग(befitting – माकूल))” जवाब दिया। अन्यथा वे आत्मग्लानि से ग्रस्त हो गये होते। हमारा “बीफिटिंग” जवाब किस तरह का होगा, यह भारत को सोचना है। और परिवर्तन होने भी लगे हैं सरकार की सोच में।

कूटनीति के स्तर पर भी हमें लड़ना और जीतना है। मनोबल तो ऊंचा रखना ही है। मुझे आइंस्टीन का कहा याद आता है – हम किसी समस्या का हल उस समस्या के लेवल पर नहीं निकाल सकते, जिसपर वह अस्तित्व में है। हमें एक दूसरे स्तर पर हल ढूंढना होगा।


@ – और शायद अब; सिमी या उस प्रकार के संगठन के आतंक में लिप्त होने की बात चलने पर वोट बैंक के आधार की जाने वाली लीपापोती का उभरता फैशन खत्म हो। मुम्बई का आतंक बिना लोकल सपोर्ट के विदेशियों का अकेले के बूते पर किया कारनामा नहीं लगता। वैसे यह क्रैप (crap – मैला) बिकने लगा है कि यह शुद्ध बाहरी लोगों का किया धरा है।

पोस्ट लेखन के बाद का जोड़:

मेरे एक अभिन्न मित्र; जिनका पेशा जनता की नब्ज पहचानना है; ने बड़े पते की बात कही है कल मुझसे – अरे भाई साहब, कोई सुनामी नहीं आने वाली! जनता गुस्से में बहुत है, पर ये गुस्सा कोई सरकार विरोधी कैश करा ले, यह हालत नहीं है। वैसे भी मेमोरी बहुत शॉर्ट होती है। ये पैनल-फैनल के डिस्क्शन चार दिन में घिस लेंगे। फिर चलने लगेंगे लाफ्टर चैनल। ज्यादा दिन आतंक-फातंक की रोवा-राटी चलने वाली नहीं। अगले आतंकी हमले तक सब ठण्डा हो जायेगा। मातुश्री में आतंकवादी घुसे होते, तब कुछ दूसरी बात होती!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

51 thoughts on “क्या भारत युद्ध के लिये तैयार है?

  1. पोस्ट लेखन के बाद का जोड़: में आपके अभिन्न मित्र ने शाश्वत सत्य कहा है .. उनके कहने की हिम्मत है सो कह गए आपकी हमारी नही है सो दबे छुपे कहते हैं !आप युद्ध के लिए तैयार हो ना हो ! कोई आप के करने ना करने से युद्ध नही होगा पर पाकिस्तान युद्ध के लिए कमर कस कर तैयार है ! आपने जरदारी साहब का आज के अखबारों में वकतव्य पढ़ ही लिया होगा ! शायद इन्ही धमकियों के लिए पाकिस्तान ने चोरी छुपे परमाणु हथियार जुटाए होंगे ! सीधी परमाणु संपन्न देश होने की धमकी ? दो परमाणु संपन्न देश के बीच टकराव ठीक नही होगा ! ठीक है भाई जरदारी साहब आप हमारे मटके हमारे घर आके फोड़ते रहो ! रामदयाल कुम्हार आपका क्या कर लेगा ? आप तो परमाणु संपन्न हो ! बड़े बुजुर्गो ने सही कहा है की एक मुर्ख पड़ोसी आपका जीवन नर्क बना सकता है ! यहाँ तो कतार लगी है चारो तरफ़ ! और अब तो समुद्री रास्ते से आतंक का आना श्रीलंका को भी शक के घेरे में ले आया है ! उनके कबाईली नेता और अफगानिस्तान सीमा के आतंकी भी अब आतंक विराम करके फोजो को पूर्वी सेना ( भारत सीमा ) पर जाने की इजाजत दे रहे हैं और युद्ध की सूरत में पाकिस्तान की पुरी मदद करने का वचन करार भी !

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  2. युद्ध भावनाओं के उबाल से नहीं लड़े जाते। मुहल्ले में झगड़ा हो तो ये युद्ध के आकांक्षी सब से पहले घरों में घुसते हैं। एक लम्बी योजना ही आतंकवाद से मुकाबला कर सकती है। यह सोच समझ कर कदम उठाने का समय है और सुधि राजनेताओं के लिए जनता को शिक्षित करने का अवसर, यदि वे ऐसा कर सकें।

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  3. यही बौद्धिक भीरुता भारतीय शौर्य की सबसे बड़ी दुश्मन रही है -यह हमारे मनोबल को गिराती है .हम इसी तरह की मीमांसा में लगे रहेंगे और समय निकलता जायेगा .क्या हम ऐसे ही बकरियों की तरह मिमियाते रहेंगे ! सवा अरब लोगों की कोई मान मर्यादा नही है ? देश की संप्रभुता गयी भाड़ में? ज़रा पाकिस्तान की भी खोज ख़बर लीजिये वहाँ युद्ध की तैयारियां शुरू भी हो चुकी हैं जिसे प्रत्यक्षतः युद्ध से बचाव की तैयारियां कहा जा रहा है -बहुत होगा हम थोडा और गरीब हो लेंगे -कुछ हजार नाभकीय प्रहार में मर भी जायेंगे -जापान में नाभकीय युद्ध के बाद भी क्या स्थिति है हम देख रहे हैं .पर ये रोज रोज की जलालत से तो निजात पा लेंगे .जो लोग यह समझ रहे हैं की भारत की सैन्य स्थिति ठीक नही है -वे गलती कर रहे हैं -हम इतने गए गुजरे नही हैं और युद्ध मनोबल से लड़ा जाता है -भारतीय सेना के किसी भी जाबाज से पूंछ कर देखिये उसे बस सरकार के इजाजत की दरकार है -हमारी तरह ही लोग सरकार में हैं जो परस्पर विरोधी बाते कर किसी मुहिम की हवा निकाल देते हैं -आज समय है सारा भारत केवल एक स्वर में बोले -आतंकवादियों पर हमला वे चाहे जहाँ भी हो -यह

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  4. … जनता व सरकार दोनो अपने-अपने धुन मे रहते है, समस्या आती है चली जाती है कोई गम्भीर नही रहता, किसी को समाधान से लेना-देना नही है, सब एक थाली के चट्टे-बट्टे हैं, कौन गम्भीर होगा – कौन समाधान चाहेगा ?

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  5. एक युध्ध या ,ज्वलँत चेतना ? या दोनोँ ? भारत की जनता क्या बार बार ऐसे वार झेलेगी? :-(दुख सहना गरीबी का अभिशाप है पर, आतँकवाद का प्रतिकार तो होना ही चाहीये –

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  6. “पर अगर शत्रु जितना बाहरी हो उतना भीतरी भी@ तो युद्ध का यूफोरिया बहुत सार्थक नहीं।”सहमत हूँ ,पर युवावस्था के भावातिरेक में बार बार अपने भतीजे को समझाता हूँ- “घबराओ मत, अब देश के दुश्मनों की खैर नहीं . वह पूछता भी नहीं, “कैसे”; मैं बताता भी नहीं,”कैसे”; मैं जानता भी नहीं, “कैसे”.

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  7. हम इन घटनाओं के आदी हो चुके हैं….अब कुछ दिन यह हाय तौबा मचेगी, उसके बाद धीरे-धीरे सब एक सा हो जायगा, फिर वही प्रांतवाद, फिर वही घिसे पिटे लोग, फिर वही मुद्दे…..जबकि युध्द जो एकाग्रता चाहता है, वह एकाग्रता शायद अब नसीब में न हो….पुलिस बाहरी लोगों पर तब ध्यान देती जब उसे भीतरी लोगों से फुरसत मिले…..लेकिन यहां तो पहले ही राज ठाकरे और उसके चपडगंजू जैसे लोग हैं जो पुलिस को खामखां व्यस्त रखते हैं…..क्या युध्द ऐसे ही लडे जाते हैं।

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  8. बहुत जबर्दस्त कहानी ! दुआएँ भी स्वार्थी हो सकती हैं !घुघूती बासूती

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  9. जनता की नब्‍ज पहचाननेवाले आपके अभिन्‍न मित्र ने सचमुच बहुत पते की बात कही है। वोटर छह लाख गांवों तक बिखरे हैं…छह हजार लोगों का ब्‍लॉगजगत ही भारत नहीं है। आम जनता को पहली बार कोई दर्द तो हुआ नहीं है। अस्‍पताल में किसी मजदूर की जख्‍मी बच्‍ची दवा के बगैर तडपकर मर जाती है। खेत में काम कर रहे किसान पर बिजली का तार गिर पडता है। सडक पार कर रहा आदमी तेजरफ्तार वाहन तले दब कर मर जाता है। ग्रामीण अंचल में ये रोजमर्रा के दर्द हैं। दर्द सहने की लोगों को आदत पड गयी है।

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