उधर भी झांक आते लोग


green-candle मुम्बई हादसों ने सबके मन में उथल पुथल मचा रखी है। सब की भावनायें किसी न किसी प्रकार से अभिव्यक्त हो रही हैं। ज्ञान भी कुछ लिखते रहे (उनकी भाषा में कहें तो ठेलते रहे)। कुछ तीखा भी लिखते, पर उसे पब्लिश करने से अपने को रोकते रहे। उन्होंने मुझसे भी पूछा कि तुम्हारे मन में क्या चल रहा है? ईमानदारी से कहूं तो मेरे मन में निपट सन्नाटा था। अंतर्मन में कुछ घुमड़ रहा था, पर आकार नहीं ले पा रहा था।

श्रीमती रीता पाण्डेयरीता पाण्डेय की लिखी पोस्ट। आप उनके अन्य लेख "रीता" लेबल पर सर्च कर देख सकते हैं।

कल थोड़ी देर को टेलीवीजन के सामने बैठी थी। चैनल वाले बता रहे थे कि लोगों की भीड़ सड़कों पर उमड़ आई है। लोग गुस्से में हैं। लोग मोमबत्तियां जला रहे हैं। चैनल वाले उनसे कुछ न कुछ पूछ रहे थे। उनसे एक सवाल मुझे भी पूछने का मन हुआ – भैया तुम लोगों में से कितने लोग घर से निकल कर घायलों का हालचाल पूछने को गये थे? 

कई बार मुझे अपने सोचने के तरीके पर खुद को अजीब लगता है। जो मर गये, वे कैसे मरे, उन्हें किसने मारा, सुरक्षा नाकाम कैसे हुई – इस सब की चीर फाड़ होती है। पर दुर्घटना में जिनका एक पैर चला गया, हाथ चला गया, आंखें चली गयीं; उनके परिवार वाले उन्हें ले कर कैसे सामना कर रहे होंगे आगे की जिन्दगी का? मिलने वाले मुआवजे पर वकील और सरकारी अमला किस तरह vultureगिद्ध की तरह टूट पड़ता होगा। कमीशन पर उनके केस लड़े जाते होंगे मुआवजा ट्रीब्यूनल में। और सहानुभूति की लहर खत्म होने पर डाक्टर लोग भी कन्नी काटने लगते हैं। इन सब बातों को भी उधेड़ा जाना चाहिये। मोमबत्ती जलाने वाले थोड़ा वहां भी झांक आते तो अच्छा होता। 

मुझे याद आ रही है वह लड़की जिसके ट्रेन विस्फोट में दोनो पैर उड़ गये थे। उस समय हम बनारस में थे। रेल सुरक्षा आयुक्त के साथ ज्ञान भी अस्पताल गये थे घायलों को देखने और उनसे हाल पूछने। उस लड़की के बारे में लोगों ने बताया था कि उसके मां-बाप पहले ही गुजर चुके हैं। वह अपनी बहन के घर जा रही थी कि यह हादसा हो गया ट्रेन में। ज्ञान ने सुरक्षा आयुक्त महोदय से कहा था – “सर, अगर आप इस जांच के दौरान अस्पताल का दो चार बार दौरा और कर लेंगे तो डाक्टर थोड़ा और ध्यान देंगे इस लड़की पर।”

घर आ कर ज्ञान ने मुझे इस लड़की के बारे में बताया। मुझे लगा कि यह लड़की बेचारी तो दो पाटों में फंस गई। मुआवजे में कमीशन तो वकील और सरकारी अमला ले जायेगा। बचा पैसा बहनोई रख लेगा, बतौर गार्जियन। एक गरीब लड़की, जिसके मां-बाप न हों, दोनो पैर न हों, वह इस बेदर्द दुनियां में कैसे जियेगी? मैने ईश्वर से प्रार्थना की – भले जीवन अमूल्य हो, पर भगवान उसे अपने पास बुला लो।

पता नहीं उस लड़की का क्या हुआ।   


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

37 thoughts on “उधर भी झांक आते लोग

  1. एकदम सही पोस्ट । घायलों के लिये और अपाहिजों को पुनर्स्थापित करने के लिये कोई फंड ब्लॉगर्स भी बना सकते हैं ।

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  2. सब कुछ साफ स्पष्ट और मन की ही तो बात लिखी है। लिख कर भी टाल गया कि कहीं आक्रोश में कुछ अशोभनीय न कह जाँऊ।बार बार लग रहा था कि राइफल उठाँऊ और कमाण्डोज के साथ मिलकर युद्ध करू किन्तु बुद्धि नपुंषक बना देती है कई बार।घायल और मृतकों का सही खाका खींचा है आपनें।मेरे नगर कानपुर के एक सज्जन भी घायल हो के आए हैं गया था देखनें।ऎसे दोजखियों को पता नहीं कैसे लोग जेहादी बताते हैं धर्म का क्या इससे ज्यादा घिनौना रूप भी हो सकता है?

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  3. बम्बईवाले सिर्फ़ मोमबत्तियां ही नहीं जला रहे और भी बहुत कुछ कर रहे हैं अपने जख्मों को सहलाने के लिए, लेकिन मीडीया अगर सिर्फ़ मोमबत्तियां ही दिखाये तो कोई क्या करे? 27 तारीख से ही लोगों की लंबी लाइन लग रही थी अस्तपतालों के बाहर खून देने के लिए। ब्लड बैंक में इतना खून जमा हो गया था कि लोगों को वापस लौटाया जा रहा था कि दस दिन बाद आना पूछने कि जरुरत है कि नहीं।

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  4. आपको नमन ! एकदम सही कहा है आपने….हम आप भले ऐसा सोचें पर मिडिया या तंत्र को इन सब में लिप्त होकर कोई फायदा नही दीखता.वैसे भी न ही इन्हे इन बातों में अभिरुचि है और न ही इस के लिए समय .जब बड़ी और सनसनीखेज खबरे बाज़ार में उपलब्ध हो तो इन सब में कोई समय क्यों बरबाद करे.

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  5. आपने जरूरी मुद्दा उठाया है..चूंकि यह असुविधाजनक है, इसलिए अमूमन लोग यह बात नहीं करते। यदि हम उग्रवादी वारदात की बात छोड़ भी दें तो दुर्घटना व अपराध की वजह से हर रोज अपने यहां अनगिनत लोगों के जीवन का सहारा छिन जाता है, अनगिनत लोग अपंग हो जाते हैं, उनका दु:ख मुंबई हमलों के शिकार लोगों के दु:ख से कम नहीं होता। अक्‍सर देखा जाता है कि सरकार, प्रशासन, समाज या स्‍वयंसेवी संस्‍थाएं कोई भी उनकी मदद को आगे नहीं आता। जो सामर्थ्‍यवान हैं वे तो जीवन संघर्ष में पार पा जाते हैं, जो अक्षम हैं उनका क्‍या होता है कोई जानने तक का जहमत नहीं उठाता। ऐसा हर जगह, हर शहर, हर गांव में होता है, लेकिन उस समय लोगों की संवेदनाएं पता नहीं कहां चल जातीं। बस सबसे आसान काम है मोमबत्‍ती जला दो…कुछ लगेगा भी नहीं और खूब पब्लिसिटी भी मिल जाएगी।

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  6. हमारा आदरणीय श्री ज्ञानदत्त पाण्डेय जी से विनम्र निवेदन है कि भाभी जी का एक फोटू खिंचवा दें .ये जो कुछ लोग कह रहे हैं कि ओज दिखाई दे रहा है हमें तो कहीं नज़र आया नहीं, कई बार ढूँढ लिया . इसके अलावा हम इस लेख की तारीफ करने में असमर्थ हैं . क्या है कि शब्द नहीं हैं हमारे पास .

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  7. मोमबत्ती जलाने वाले, किस का विरोध कर रहे हे?? क्या इन्होने कभी वोट डाली है?क्या इन्होने कभी किसी हादसेके शिकार आदमी का आंसू पुछा है?? ओर क्या इन की किमती मोम बत्ती उन दुखियो का दुख हर लेगी??धन्यवाद आप ने रुके हुये जजबातो को थोडा बहने दिया.

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