वह मर कर परिवार का भला कर गया


अल्लापुर मुहल्ले में मेरी रिश्ते की बहन रहती हैं। पन्द्रह वर्ष पहले उन्होने वहां मकान बनवाया था। काफी समय तक उनके यहां घर बनने का कामकाज चलता रहा था। हम लोग उस समय रतलाम में रहते थे और यदाकदा इलाहाबाद आते थे। मैं इलाहाबाद आने पर अपनी इन अल्लापुर वाली दीदी से मिलने जाया करती थी। मुझे याद है कि उस समय जीजाजी ने एक बार कहा था – “बेबी, यह जिन्दगी नर्क हो गई है। दिन में आराम करना चाहो तो ये मजदूर खिर्र-खिर्र करते रहते हैं और रात में ये “मारवाड़ी” का बच्चा तूफान खड़ा किये रहता है।

small house यह इस सप्ताह का रीता पाण्डेय का लेखन है। अपने परिवेश में एक दृढ़ इच्छाशक्ति वाली महिला की कहानी है यह।

दीदी ने बताया था कि पास में छोटा सा प्लॉट है। शायद भरतपुर के पास का रहने वाला एक सरकारी विभाग का ड्राइवर रहता था झोंपड़ी नुमा मकान में। उसकी पत्नी लहंगा-ओढ़नी पहनती थी। उसकी भाषा लोगों को समझ में नहीं आती थी। जैसे सारे दक्षिण भारतीय मद्रासी कहे जाते हैं, वैसे उसे “मारवाड़ी” कहा जाता था। वह रोज रात में शराब पी कर आता था। फिर पत्नी को पीटता था। बच्चे घिघिया कर मां से चिपट जाते थे। चूंकि मुहल्ला उस समय बस ही रहा था, लोगों में जान-पहचान कम थी। लिहाजा ड्राइवर द्वारा पत्नी के मारे जाने और शोर शराबे में भी कोई बीच बचाव को नहीं जाता था। घर के नाम पर टीन की छत वाले दो कमरे थे और थोड़ा सा सामान। औरत शराबी पति से मिलने वाले थोड़े से पैसों में गृहस्थी किसी तरह घसीट रही थी।

वह ड्राइवर एक दिन किसी सरकारी काम से बाहर गया था। गाड़ी छोड कर उसे वापस लौटना था। वापसी में वह एक जीप में सवार हो गया। जीप में कुछ बदमाश भी बैठे थे, जिनका पीछा पुलीस कर रही थी। पुलीस ने जीप को घेर कर सभी को मार गिराया। इस “मारवाड़ी” के पहचान पत्र के आधार पर हुई पहचान से उसके सरकारी विभाग ने आपत्ति दर्ज की तो उसकी औरत को कुछ मुआवजा दिया गया। शायद उसका कोई रिश्तेदार था नहीं, सो कोई मदद को भी नहीं आया। पर सरकारी विभाग में इस महिला को चपरासी की नौकरी मिल गई। विभाग के लोगों ने सहारा दिया। ड्राइवर के फण्ड के पैसे का सही उपयोग कर उस महिला ने ठीक से मकान बनवाया।

अब मैं इलाहाबाद में रहती हूं, और जब भी अल्लापुर जाती हूं तो दीदी के मकान की बगल में सुरुचिपूर्ण तरीके से बना इस महिला का मकान दिखता है। उसके तीनों बच्चे बड़े हो गये हैं। चूंकि पैसा अब एक शराबी के हाथ नहीं, एक कुशल गृहणी के हाथ आता है, तो उसके घर पर लक्ष्मी और सरस्वती की कृपा साथ-साथ नजर आती है।

बहुत पहले जीजा जी ठहाका लगा कर बोले थे – “वह साला मर कर परिवार का भला कर गया”। दीदी इस पर बहुत झल्लाई थीं, कि “क्या कुछ का कुछ बोल देते हैं आप”। लेकिन सच्चाई भी यही है, इसे स्वीकार करते हुये दीदी ने बताया कि “उस महिला के बच्चे बहुत अच्छे हैं और पढ़ने में काफी मेहनत करते हैं। वे अपनी पढ़ाई का खर्च भी पार्टटाइम बिजली का काम कर निकाल लेते हैं। अनपढ़ महिला उनके मां और बाप का फर्ज अकेले बखूबी निभा रही है”।

इस समय उस दिवंगत “मारवाड़ी” का बड़ा बेटा बैंक में नौकरी कर रहा है। बेटी एम.ए. कर चुकी है और छोटा बेटा एम.बी.ए. की पढ़ाई कर रहा है। हालांकि इस जिन्दगी की जद्दोजहद ने उस महिला को शारीरिक रूप से कमजोर और बीमार कर दिया है; पर उसकी दृढ़ इच्छा-शक्ति ने परिवार की गाड़ी को वहां तक तो पंहुचा ही दिया है जहां से उसके बच्चे आगे का सफर आसानी से तय कर सकते हैं।

(कहानी सच्ची है, पहचान बदल दी गई है।)  


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

46 thoughts on “वह मर कर परिवार का भला कर गया

  1. सच्चे किस्से काफी कुछ सीखा जाते है. सृजन और विनाश आदमी के ही हाथों में है. बस नेतृत्व कौन करता है, इस पर निर्भर है.

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  2. पर उसकी दृढ़ इच्छा-शक्ति ने परिवार की गाड़ी को वहां तक तो पंहुचा ही दिया है जहां से उसके बच्चे आगे का सफर आसानी से तय कर सकते हैं।”दृढ़ इच्छा-शक्ति और हिम्मत से अकेले हालत का सामना करके जो मुकाम इन महिला ने हासिल किया है , वो कबीले तारीफ और सम्मानजनक है “regards

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  3. अपनी हिम्मत और आत्मविश्वास के बल पर अपना और अपने परिवार को संबल देने वाली इस महिला कि जितनी तारीफ़ कि जाए कम है.

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  4. मैं भी ऐसा ही एक परिवार को जानता हूँ।पियक्कड़ पति के मरने के बाद परिवार का भाग्य खुल गया था।लेकिन ऐसी कहानियाँ केवल मर्द के मरने के स्न्दर्भ में सुनते हैं।जब पत्नि की असामयिक मृत्यु होती है, तो परिवार का कभी कल्याण हुआ है?कभी कभी सोचने लगता हूँ कि हम मर्द इतने कमीने क्यों होते है?

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  5. काश इस देवी की दृढ़ इच्छा शक्ति उस शराबी का शराब छुड़ाने में कामयाब हो पायी होती…। खैर ईश्वर की व्यवस्था के आगे हम सभी नतमस्तक हैं। शायद उसके हाथ में यही समाधान रहा हो। इनके परिश्रम, धैर्य और सही सोच की क्रेडिट इन्हे अवश्य दी जानी चाहिए।

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  6. जब भला होने का समय आता है तब ही भला होता है, भले ही वह किसी के मरने से हो।”जब नीके दिन आइहैं बनत न लगिहैं देर”

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  7. चूंकि पैसा अब एक शराबी के हाथ नहीं, एक कुशल गृहणी के हाथ आता है, तो उसके घर पर लक्ष्मी और सरस्वती की कृपा साथ-साथ नजर आती है। शायद जीवित रहते हुये भी सहचरी की इस प्रबन्धन क्षमता का लाभ लिया जाये तो रिजल्ट और भी बढिया रहेंगे ! आपको इस लेख के लिये बहुत धन्यवाद !राम राम !

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