कुहासा


train-fog मौसम कुहासे का है। शाम होते कुहरा पसर जाता है। गलन बढ़ जाती है। ट्रेनों के चालक एक एक सिगनल देखने को धीमे होने लगते हैं। उनकी गति आधी या चौथाई रह जाती है।

हम लोग जो आकलन लगाये रहते हैं कि इतनी ट्रेनें पार होंगी या इतने एसेट्स (इंजन, डिब्बे, चालक आदि) से हम काम चला लेंगे, अचानक पाते हैं कि आवश्यकता से पच्चीस तीस प्रतिशत अधिक संसाधन से भी वह परिणाम नहीं ला पा रहे हैं। सारा आकलन – सारी प्लानिंग ठस हो जाती है।

सारी ब्लॉगिंग बन्द। सारा पठन – सारी टिप्पणियां बन्द। फायर फाइटिंग (या सही कहें तो कुहासा फाइटिंग) चालू। जब तक मौसम नहीं सुधरता, तब तक यह खिंचाव बना रहेगा।

मेरा कमरा, मेरे फोन, मेरा इण्ट्रानेट (जो मालगाड़ी परिचालन बताता है ऑनलाइन) और मेरे कागज – यही साथी हैं। खुद तो बाहर निकल कुहासा देख भी नहीं पा रहा।

चार घण्टे हो गये पहले के दिये निर्देशों को। चलें, देखें, कितनी बढ़ी गाड़ियां। कितना सुधरा या खराब हुआ ट्रेन परिचालन। (कल शाम को लिखा गया| यह रुटीन पिछले कई दिनों से चल रहा है। और शायद कई दिनों तक चलेगा।)


apj यह बड़ा ही अच्छा लगा कि डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम देश के अन्दर और बाहर के आतंकवादियों के ठिकानों को अटैक करने और उन्हें ध्वस्त करने की सलाह दे रहे हैं। इस्लामी और नक्सली/अन्य क्षेत्रीय आतंक के अड्डे देश में मौजूद हैं। उन्हें ध्वस्त करने की बात माननीय कलाम साहब कर रहे हैं।

इसके अतिरिक्त पड़ोस के देशों में भी यह अड्डे हैं जिनका सीधा सम्बन्ध भारत में आतंक फैलाना है। उन्हें ध्वत करने की संकल्प शक्ति देश में चाहिये। जनता का अगला मेण्डेट शायद इस फैक्टर को ध्यान दे। पर इसके लिये जनमत का व्यापक मोबलाइजेशन युवाशक्ति को करना होगा! पर युवा कौन है? डा. कलाम युवा हैं!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

33 thoughts on “कुहासा

  1. मुझे लगता है एक मानसिकता है हमारी कि कोई अवरोध होगा सड़क, राह या पगडण्डी पर इसलिए हम कहीं भी निश्चिंत होकर नही चल सकते. रेल के बारे में यह अनुमान ग़लत भी हो सकता है. आप ही सही बता सकते हैं.

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  2. हम कुहासे की प्रतीक्षा में हैं। अभी तक एक भी दिन मुहँ से भाप नहीं निकली। कितनी बेकार सर्दियाँ हैं। आप ज्यादा न घबराएँ। रेलें कितनी भी कम चलें बस दुर्घटना न होने पाए। आतंकी अड्डे तो खुद ही खत्म करने होंगे। उन की सामरिक तैयारी के साथ देश में ही नहीं दुनिया में भी वातावरण बनाना होगा। गुंड़ों की भी अपनी इज्जत होती है। जब तक वह पूरी तरह बदनाम नहीं होता उस पर हमला नहीं किया जाता। कंस को कृष्ण ने बुलाए जाने पर मारा। रावण से तो अंतिम समय तक सीता को लौटाने का अनुरोध किया जाता रहा। लगता है हम सब भूल गए हैं।

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  3. ठंड जहॉं कई तरह के फायदे ले कर आती है, वहीं इस तरह की दिक्‍कतें बुरी तरह से रूला जाती हैं।मुझे भी विज्ञान कथा लेखन कार्यशाला में भाग लेने 14 जनवरी को बुलंदशहर जाना है, सोच रहा हूं, क्‍या पहुंप सकूंगा।

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  4. आप गाड़ियाँ हाँकते रहिए जी। हम तो यहाँ प्रतीक्षा करने को तैयार हैं। ब्लॉगरी में थोड़ा ब्रेक लेने से कोई हर्ज नहीं है। अच्छे परिचालन से ही तो देश को पैसा मिलेगा।

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  5. चलिये आप के लेख से पता तो चला कि गाडियां लेट क्यो होती है,गर्मियो मओ भी तो लेट होती है,हां अगर कोई गाडी समय पर आ जाये तो जरुर हेरानगी होगी,कि कही जम्मु तवी की जगह कालका मेल तो नही आ गई…:)धन्यवाद सुंदर लेख के लिये

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  6. ये कुहासा तो कुछ दिनों में छंट जाएगा लेकिन लोगों के मन मसतिक्ष पर जो कुहासा बरसों से है वो कैसे छंटेगा कैसे और कब नए विचारों की गाडियां चलेंगी? ….नीरज

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  7. जब तक ख़ुद प्रभावित न हो कहाँ पता चलता है. सुबह से ट्रेनइंक्वायरी.कॉम खोल कर देख रहा हूँ २ घंटे देर से अभी ६ घंटे लेट हो गई है… खैर…जनता का अगला मेण्डेट? मुझे तो नहीं लगता जनता आतंकवाद से लड़ने वाले के लिए वोट देगी, जाति से ऊपर उठ पाना हमले के तुरत बाद शायद हो पाता अब तो नहीं लगता.

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  8. पहाडों पर बर्फ गिर रही है -कोहरा अब कम हो गया होगा..–भारत को डॉ. कलाम जैसे युवाओं ‘नेताओं’की आवश्यकता है.

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  9. ठिठुराती शीत से तो रेल व्यवस्था ही कुहासों मे घिरी है,कलाम सा’ब की बात पर अमल न किया गया तो आनें वाली पीढ़ियों की ज़िन्दगी ही कुहासे में घिर जाएगी।कलाम सा’ब अस्वस्थ हैं उनके लिए जीवेम शरदः शतं।

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  10. टिप्पणियों पर भी कोहरे का असर दिख रहा है. संख्या कुछ कम है आज. डॉ. कलाम के विचार हमेशा ही सारगर्भित होते हैं. लिन्क के लिये धन्यवाद.

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