लस्तवइ भुलाइ गये!


मैं फिर गंगा किनारे गया। सब्जियों की खेती देखने नहीं, अपने आप को अनवाइण्ड करने। अपना मोबाइल ले कर नहीं गया – कोई फोन नहीं चाहता था एक घण्टे भर।

एक छोटा बच्चा तेजी से चलता हुआ गया – बोलता जा रहा था – “अले हम त लस्तवइ भुलाइ गये”। (अरे मैं तो रास्ता ही भूल गया।) थोड़ी देर बाद वह अपनी गोल में मिला दिखा।

दो लड़कियां दिखीं – पूनम और गुड़िया। गंगा किनारे क्यारी खोद, खाद डाल कर टमाटर रोप रही थीं। पूनम फावड़े से क्यारी बना कर यूरिया छिड़क रही थी। गुड़िया पौधे रोप रही थी। खनकदार हंसी पूनम की। भाई कहीं गया है। समय बरबाद न हो, इस लिये वे यह काम करने आई हैं।

उन दोनो की अम्मा बीमार है, लिहाजा उन्हें ही यह रुपाई का काम करना है। मेरी पत्नी बातचीत में पूनम से कहती हैं – लड़कियां भी अब आगे बढ़ रही हैं। पूनम तुरंत जवाब देती है –

“लड़कियां ही तो आगे बढ़ रही हैं। लड़के तो बस अपने को लड़का मान कर खुश हैं।”

छठी क्लास पास पूनम का यह बड़ा गूढ़ ऑब्जर्वेशन है।

Poonam legsमैने पूनम का फोटो लिया। पर वह यहां लगाऊंगा नहीं। आप तो उसका गंगा की रेती में क्यारी बनाता फावड़ा देखें।

Rohitइतने में रेत के खेत में चाचा को दोपहर का भोजन दे कर लौटता रोहित दीखता है। घर लौट कर स्कूल जायेगा। चिल्ला गांव में रहता है और शशिरानी पब्लिक स्कूल में पढ़ता है। गली में हर दूसरा स्कूल पब्लिक स्कूल है। जो पब्लिक के लिये हो वह पब्लिक स्कूल।  

एक बुआ और भतीजी दिखीं। वे भी रास्ता भूल गई थीं। जेके देखअ, उहई लस्तवा भूला रहा। (जिसको देखो, वही रास्ता भूला था।)

हमहूं लस्तवा भुलान हई (क्या बताऊं, मैं भी रास्ता भूला हूं)। न केवल कैसे करना चाहता हूं, वरन क्या करना चाहता हूं, यह भी स्पष्ट नहीं है। कौन भाग्यशाली है जो जानता है मुकाम और मार्ग?!


Girirajkishor गिरिराज किशोर जी के ब्लॉग पर एक महत्वपूर्ण पोस्ट है – भाषा का तप त्याग और उपेक्षा। फीड में यह पूरी पोस्ट है पर ब्लॉग पर मात्र रोमनागरी में शीर्षक बचा है।

पता नहीं, उनका ब्लॉग वे मैनेज करते हैं या उनके बिहाफ पर कोई अन्य (वैसे प्रतिटिप्पणियां रोमनागरी में उनकी ही प्रतीत होती हैं)। पर यह बेहतर होगा कि वह हिन्दी की स्थिति विषयक पोस्ट लोग देख पायें। इकहत्तर वर्षीय श्री गिरिराज किशोर अगर ब्लॉग इत्यादि के प्रति प्रो-एक्टिव हैं तो प्रसन्नता का विषय है।

(वैसे यह वर्ड डाक्यूमेण्ट में पांच पेज की फुरसतियात्मक पोस्ट है। पाठक के पेशेंस को परखती हुई!) 


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

37 thoughts on “लस्तवइ भुलाइ गये!

  1. रोचक पोस्ट।एक ठो बात बताइये।आप मोबाइल साथ ले नहीं गये। फ़िर फोटो कैसे लिये? क्या दूसरा कैमरा ले लिये?

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  2. जेके देखअ, उहई लस्तवा भूला रहा। अजी मेरा भारत ही सारा रास्ता भूल गया है……. अपने संस्कारो से, अपनी जडो से, अपना घर ही खो बेठा है, बस दुसरो के घर को ही अपना मान बेठा है, कोन इसे सही रास्ता दिखाये???अपने सोने को तो मिट्टी बता रहा है, दुसरो की मिट्टी को सोना…धन्यवाद आप का गंगा किनारा बहुत सुंदर लगा.

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  3. लड़कियां ही तो आगे बढ़ रही हैं। लड़के तो बस अपने को लड़का मान कर खुश हैं।” अजहर हाशमी की पंक्तियों को फ़िर दोहराउंगा,जिन्हें पहले भी कई बार टिपिया चुका हूँ. -दुर्दिनों के दौर में देखा बेटियाँ संवेदनाएं हैं |गर्म झोंके बन रहे बेटेबेटियाँ ठंडी हवाएं हैं ||

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  4. निस्‍सन्‍देह लडकियां ही आगे बढ रही हैं और लडके समय की घडी उल्‍टी घुमा कर 18वीं शताब्‍दी में जा रहे हैं। मैंगलोर में भी उन्‍होंने यही साबित किया।

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  5. “लड़कियां ही तो आगे बढ़ रही हैं। लड़के तो बस अपने को लड़का मान कर खुश हैं।” एकदम सही कहा उसने।हमहूं लस्तवा भुलान हई (क्या बताऊं, मैं भी रास्ता भूला हूं)। न केवल कैसे करना चाहता हूं, वरन क्या करना चाहता हूं, यह भी स्पष्ट नहीं है। कौन भाग्यशाली है जो जानता है मुकाम और मार्ग?! सब के मन का सवाल्। इस मनोविज्ञान की क्लास का अपना ही मजा है। आप के इस वाक्य ने मेरे मन में चल रहे कुछ सवालों का जवाब दे दिया, शुक्रिया।

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  6. हमहूं लस्तवा भुलान हई (क्या बताऊं, मैं भी रास्ता भूला हूं)। न केवल कैसे करना चाहता हूं, वरन क्या करना चाहता हूं, यह भी स्पष्ट नहीं है। कौन भाग्यशाली है जो जानता है मुकाम और मार्ग?! ………..कितनी गूढ़ बात कही आपने……बहुत अपने से लगे ये वाक्य…

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  7. अन्वाईंड करने के लिए गंगा के किनारे के अलावा आप और कहीं क्यूँ नहीं जाते…ठीक समझे हमारा इशारा खोपोली ही है… शिव से पूछिए वो ऐसे अन्वाईंड हुए हैं यहाँ आ कर की की वापस कलकत्ता जा कर रिवाईंड ही नहीं हो पा रहे…नीरज

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  8. ऐसे लस्तवा भुलाई के भटकने का भी अपना मजा है ! ज्ञान तो हर जगह से मिल सकता है… कोई भी गुरु हो सकता है. ये आपकी कई पोस्ट में दीखता है.

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