कठवैद्यों की कमी नहीं है आर्यावर्त में। अंगरेजी में कहें तो क्वैक (quack – नीम हकीम)। हिमालयी जड़ीबूटी वालों के सड़क के किनारे तम्बू और पास में बंधा एक जर्मन शेफर्ड कुकुर बहुधा दीख जाते हैं। शिलाजीत और सांण्डे का तेल बेचते अजीबोगरीब पोशाक में लोग जो न आदिवासी लगते हैं, न आधुनिक, भी शहरी माहौल में पाये जाते हैं। नामर्दी और शीघ्रपतन का इलाज करने वाले अखबार में विज्ञापन तक देते हैं। बवासीर – भगन्दर१ का इलाज कोई सही साट अस्पताल में नहीं कराता होगा। सब दायें – बांयें इलाज सुविधा तलाशते हैं।
क्वैक+आयुर्वेद=क्वैकायुर्वेद।
जब क्वैकायुर्वेदीय वातावरण चहुंओर व्याप्त है तो उसे चरक या सुश्रुत संहिता की तरह कोडीफाई क्यों नहीं किया गया? और नहीं किया गया तो अब करने में क्या परेशानी है? कौन कहता है कि यह कोडीफिकेशन केवल वैदिक काल में ही हो सकता था। अब भी देर नहीं हुई है। पर अभी भी यह नहीं हुआ तो यह वेदांग विलुप्तीफाई हो सकता है।
मुझे तो इस विषय में जानकारी नहीं है। अन्यथा मैं ही पहल करता कोडीफिकेशन की। पर मन में सिंसियर हलचल अवश्य होती है – जब भी मैं पास की एक तथाकथित डाक्टर साहब की दुकान के पास से गुजरता हूं। ये डाक्टर द्वय किसी क्षार-सूत्र विधि से बवासीर-भगन्दर का इलाज करते हैं। बाकायदा डाक्टरी का लाल क्रॉस का निशान भी लगा है – क्वैकायुर्वेद को आधुनिक जामा पहनाने को।
मोतियाबिन्द के मास-ऑपरेशन क्वैकाचार्यों द्वारा बहुधा किये जाते हैं। हड्डी बिठाने और फ्रैक्चर का इलाज करते जर्राह अब भी ऑर्थोपेडिक डाक्टर की टक्कर का कमाते हैं। दांतों की डाक्टरी बहुत समय तक चीनी डाक्टर बिना डिग्री के अपने मोंगोलाइड चेहरों की ख्याति के बल पर करते रहे हैं। आज भी डेंटिस्ट की डिग्री की परवाह नहीं करते लोग।
डाक्टरों की संख्या कम है, या उनकी बजाय क्वैकाचार्यों पर भरोसा ज्यादा है लोगों का – पता नहीं। शायद यह है कि भारत में स्वास्थ्य के मद में लोग पैसा कम ही खर्चना चाहते हैं। लिहाजा क्वैकायुर्वेद का डंका बजता है।
१. वैसे बवासीर और भगन्दर में क्या अन्तर है – यह मुझे नहीं मालुम। दोनो मल निकासी से सम्बन्धित हैं – ऐसा प्रतीत होता है। आपको अन्तर मालुम हो और न बतायें तो भी चलेगा!

ये क्वैकायुर्वेदाचार्य उन्हीं रोगों का इलाज करते हैं जिन्हें प्रायः मरीज सार्वजनिक नहीं करना चाहता या जो रोग गरीबों को पैसे के अभाव में घेरे रहते हैं।बवासीर, भगन्दर, शीघ्र पतन, मर्दाना कमजोरी आदि पहली श्रेणी में तथा हड्डी, दाँत सम्बन्धी रोग दूसरी श्रेणी में आते हैं जिनका वैज्ञानिक इलाज अपेक्षाकृत महंगा होता है।क्वैक का विस्तारित रुप अच्छा लगा।
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नये शब्द गढ़ने में आपकी माहरत है… जब एलो्पैथिक चिकित्सक मनमानी फीस लेकर, तरह तरह की जाँच अपने कमिशन वाली लैब से करवा कमिशन वाली दवा लिखॆगा तो आम आदमी इनके पास क्यों नहीं जायेगा?
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उपर गुणीजनओं ने दोनों बीमारियों का फ़र्क और विवेचना कर ही दी है. हम तो बस आपकी खोजी बुद्धि की तारीफ़ ही करेंगे. और शब्द रचना मे तो आपको महारत हासिल हो ही गई है. अगर कभी ताऊ की सरकार बनी तो अवार्ड की व्यवस्था की जायेगी. आज का शब्द “क्वैकायुर्वेद ” बहुत पसंद आया. इसको भी हम इनिशियल एडवांटेज सरीखा ही इस्तेमाल करेंगे.रामराम.
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लिंग्विस्टिक्स के पेपर में अपने एक समायु छात्र को आपके बहुत से शब्दों को उदाहरण के तौर पर प्रयुक्त करने की अनुशंसा कर दी है । कमोबेश फिट ही हो जायेंगे ये शब्द । क्वैक-ब्लॉगरी के लिये भी कुछ कहेंगे ।
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हे भगवान , अब मेरे ही नाम का विज्ञापन मिला था आपको फोटू खींचने के लिए ? नए शब्द संग्रह ही नहीं नए शब्द निर्माण में भी आपको महारत हासिल है -इस लिए कोई उपाधि यथा शीघ्र आपको मिल जानी चाहिए ! वाह क्वैकायुर्वेद -अरे मुझे किसी से मिल्वायिये तुंरत -सुबह अचानक लोअर बैक पेन आ घेरा है -बमुश्किल नेट तक लाकर बच्चे जहन्नुम में जाईये स्टाईल में कुर्सी पर धर दिए हैं -अब कोई कोई क्वैकायुर्वेदचारी ही जादू कर सकता है -अब तो आज के ब्लोगिंग वर्कशाप में जाना भी दूभर लग रहा है -और चल भी दूं तो अंगदीय संशय आ घेरता है ! कोई उपाय -शब्दाधिराज ?
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कौन दुनिया में हैं जी आप…बवासीर और बगंअर तो ९०% लोग लेज़र से करवा रहे हैं..बहुत कम लोग इन नीम हकीमों के चक्कर में आते हैं मगर इनके जीविकोपार्जन के लिए काफी हो जाते हैं.
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बवासीर के मस्सों के लिए क्षारसूत्र विधि तो आयुर्वेद की मान्य शल्य चिकित्सा विधि है और पुस्तकों में उपलब्ध ज्ञान है। शल्य चिकित्सा आयुर्वेद में पश्चिम से अधिक प्राचीन है और पुस्तकों में उन का ज्ञान उपलब्ध है। आवश्यकता तो इन्हें विकसित करने की है। आधुनिक शल्य चिकित्सा इतनी अधिक विकसित है कि उसे आयुर्वेद के ज्ञान के साथ जोड़ा जा सकता है।
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परंपरागत पद्धतियों में भी कुछ इलाज कारगर होते हैं .. पर उनकी जांच पडताल का कोई काम नहीं होने से सच झूठ में फैसला करना मुश्किल है .. इसलिए हमारे सामने तो उनलोगों के लिए सदा प्रश्नवाचक चिन्ह ही लगा होता है।
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किसी बीमारी के बारे मे प्रमाणिक जानकारी प्राप्त करने का सबसे अच्छा लिंक ये रहा-http://www.nlm.nih.gov/medlineplus/encyclopedia.htmlअब अगर आपको भगंदर के बारे में जानने की इतनी ही उत्सुकता है तो पहले fistula फिर anal fistula खोज लीजिये :)
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तत्काल चिकित्सा सेवा मिलने से गांव के लोगों की नीम हकीमों के प्रति सहानुभूति रहती है।इन नीम हकीमों का न तो तरीका वैज्ञानिक होता है और न ही उनकी दवाइयों के असर की कोई प्रमाणिकता होती है। लेकिन अशिक्षित या गरीब लोगों को ये ही सुलभ लगते हैं। सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं और दवाओं का टोटा होने से भी मरीज इनसे मुंह मोड़ने लगे हैं।नीम हकीमों से 10 से 40 रुपए में घर बैठे इलाज करवाने की सुविधा के आदी हो चुके हैं हम !!आश्चर्यजनक रूप से अब इन नीम हकीमों का शहरी प्राइवेट नुर्सिंग होम से भी रिश्ता बन चुका है !!भगन्दर गुदा द्वार पर एक प्रकार की फुन्सी से पैदा होकर यह गुदा द्वार के अन्दर तथा बाहर नली के रूप में घाव पैदा करता है । English मे इसे फिस्चुला (Fistula) कहते हैं ।बवासीर(piles) एक रोग है। इस रोग में मलाशय के दीवारों की नस सूज जाती है. इस रोग की लक्षण है जलन और रक्तस्राव।प्राइमरी का मास्टरफतेहपुर
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