उद्यम और श्रम


lion उद्यमैनेव सिध्यन्ति कार्याणि, न मनोरथै।
नहि सुप्तस्य सिंहस्य: प्रविशन्ति मुखे मृगा:॥  

और बहुधा हम उद्यम को श्रम समझ लेते हैं। श्रम पर अधिपत्य लाल झण्डा जताता है। लाल झण्डा माने अकार्यकुशलता पर प्रीमियम। उससे कार्य सिद्ध नहीं होते।

मैने सवाई माधोपुर में एक बन्द सीमेण्ट कम्पनी के रिवाइवल का यत्न देखा है। बात शुरू हुई नहीं कि लाल झण्डे पहले तन गये। लिहाजा एक ग्राम सीमेण्ट भी न बन सका। अपने दो साल के उस क्षेत्र में प्रवास के दौरान झालावाड़-कोटा-बारां-सवाईमाधोपुर क्षेत्र में यूनियन एक्टिविटी से कई उद्योगों को रुग्ण होते देखा। (और व्यापक पैमाने पर देखना हो तो बंगाल को देखें।) कोटा में सबसे बड़ा उद्यम बचा कोचिंग इण्डस्ट्री, जिसमे यूनियन या श्रमिक नियमों की दखलंदाजी नहीं है। यह डेढ़ दशक पहले की बात है। आज पता नहीं क्या दशा है वहां।

Arvind2 अरविन्द को मैं सेल्फ एम्प्लॉयेड उद्यमी मानता हूं। अपने ककड़ी-खीरा-नेनुआ-लौकी के खेत में उद्यम कर उसने इस सीजन में एक लाख से ज्यादा कमाया होगा। लक्ष्मीजी की कृपा रही है उस पर इस बार।

उद्यम (ऑन्त्रेपिन्योरशिप) और श्रम(लेबर) में कन्फ्यूजन नहीं होना चाहिये। “श्रम” के दम्भ ने श्रमिक का बहुत नुक्सान किया है। यूनियनाइज्ड लेबर इसी दम्भ और श्रम कानूनों के रिफार्म के न होने से केवल दो प्रतिशत पर सिमट गया है। ऑर्गेनाइज्ड लेबर आकलन से ३०% कम है इसी के चलते। पिछले दशकों में जॉब क्रियेशन जिन क्षेत्रों में हुआ है – अनौपचारिक क्षेत्र में श्रमिक, देश के बाहर के जॉब, प्राइवेट सेक्टर में जॉब, आईटी/बीपीओ के जॉब आदि – उनमें श्रमिक यूनियनों का रोल नहीं जम पाया। कर्मियों नें स्वय इन क्षेत्रों में अरुचि दिखाई है यूनियन बनाने में।  और धन का सृजन भी इन क्षेत्रो में अधिक हुआ है। इन क्षेत्रों में उद्यम ने खुल कर अपनी रचनात्मकता दिखाई है।

श्रम कानूनों की रूढ़ता के चलते, भारत में पूंजी का महत्व; बावजूद इसके कि बहुत बड़ी जनसंख्या काम मांगती है; ज्यादा ही है। पूंजी का मतलब मशीनें हैं जो मैन्यूफेक्चरिंग और सर्विस के क्षेत्र में श्रमिक के स्थान पर लाई जा रही हैं। मशीनें न यूनियन बनाती हैं, न गैरजिम्मेदार सौदेबाजी करती हैं। यह जरूर है कि मशीनें मैन्यूफेक्चरिंग (manufacturing) में अच्छा रोल अदा करती हैं, पर सेवायें (services) प्रदान करने में उनकी अपनी सीमायें हैं। लिहाजा कार्यकुशल लोगों का विकल्प नहीं है। और बावजूद लम्बी वर्क-फोर्स के हमारे देश में सेवायें प्यूट्रिड (putrid – सड़ी-गली) हैं।

खैर, उद्यम में पूंजी, श्रम और दिमाग सब लगते हैं। भारत को उद्यमी चाहियें।


Complex एक और मुद्दा, जिस पर मैं अलग (रैडिकल?) सोच भाव रखता हूं, वह आतंक से निपटने का मुद्दा है। आतंकी निर्मम और बर्बर होते हैं और उनको उन्हीं की तरह से निपटना चाहिये। केपीएस गिल ने जो पंजाब में किया, श्रीलंका में राजपक्षे ने जिस तरह से लिट्टे को निपटा या चेचन्या में रूस ने जिस तरह से किया, वही तरीका है। भारत में जिस प्रकार से कसाब को डील किया जा रहा है – वह नहीं जमता। अगर मुकदमा भी हो तो सद्दाम हुसैन सा होना चाहिये।

मजेदार हो कि इस मुद्दे पर रेफरेण्डम करा लिया जाये! आतंकी के साथ शठता और आम जनता के साथ न्याय – यह होना चाहिये। आप अगर दोनों के साथ मुलायम हैं तो आप या तो लंठ हैं या परले दर्जे के कुटिल!    


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

31 thoughts on “उद्यम और श्रम

  1. नब्बे के दशक के मध्य में, १९९४-९५ में कई बार यूनियन और उनके नेताओं के साथ एक डिस्प्यूट में बहस करना पड़ा था. बहुत खराब अनुभव रहा था. नेताओं की विचारधारा और कर्मचारियों को किसी भी तरह से काम न करने देने की उनकी कला देखकर दंग रह गया था. उन दिनों कोलकाता में ढेर सारे होटल और रेस्टोरेंट इन लोगों ने बंद करवा दिए थे. बहुत बुरी तरह से प्रभावित किया है इन नेताओं ने उद्योगों को. मुझे कर्मचारियों से कोई शिकायत नहीं. कोई नहीं चाहेगा कि उसकी रोजी-रोटी चली जाए.जहाँ तक कसाब का सवाल है, उसके बारे में यही कहना है कि बात केवल सद्दाम हुसैन के मुकदमे की न भी की जाए तो हाल ही में भारत में कुछ मुकदमों के फैसले बड़ी जल्दी हुए हैं. हम उन्हें भी केस स्टडी के तौर पर देख सकते हैं. इनमें सबसे प्रमुख है राजस्थान में एक विदेशी सैलानी के साथ किया गया बलात्कार. उसके अलावा पंजाब में भी ऐसा एक मुक़दमा था जिसपर अदालत ने एक साथ लगातार केस की सुनवाई करके मुकदमे को निबटाया.और मुझे विश्वास है कि ऐसा किया जा सकता है. आखिर जिन मुकदमों की बात मैं कर रहा हूँ उनमें अदालत के पास कम से कम उतने सुबूत नहीं थे, जितने कसाब के मामले में हैं.

    Like

  2. वैज्ञानिक भाषा में कहें तो श्रम, धन और ज्ञान के सही क्रम और अनुपात के संमिश्रण से उद्यम तैयार होता है । यह अनुपात कितना हो यह व्यवसाय पर निर्भर करता है । नयी तकनीक आने से यह अनुपात बदलता है । जहाँ जहाँ भी किसी एक तत्व को अधिक महत्व दिया गया या दिलाया गया, उद्यम का दम निकला है ।आतंकवाद पर आपके विचारों से मैं सहमत हूँ । केवल यह सिद्ध करने के लिये कि आतंकवाद को पाकिस्तान बढ़ावा दे रहा है, कसाब को जीवित रखा जा रहा है । यह बात अलग है कि इससे पाकिस्तान की सेहत (जो पहले से ही खराब है) पर कोई असर नहीं पड़ता । यदि यह भी कोई न समझे तो वह लंठ ही है । हाँ यदि कसाब को बिरयानी खिलाने का कोई और कुटिल कारण हो तो देश का भगवान मालिक है ।

    Like

  3. आज लाल झंडे का मतलब केवल अधिकार रह गया है, न कि उत्तरदायित्व. कलकत्ते के सरकारी दफ्तर का समय अगर 10 से 5 है, तो इसका मतलब है कि बाबू 10 बजे घर से चलेगा और 5 बजे घर पहुँच जाएगा.

    Like

  4. जहाँ उद्यम उद्यमी और उद्योग का अर्थ श्रम का शोषण, शोषकपूँजीपति और पूँजी का विस्तारवाद, संस्कृत का श्लोक बुर्जुआओ की दलाल ब्राह्मणवादी मानसिकता समझा जाए तो व्याप्त औद्योगिक दुर्द्शा पर व्यक्त आपकी चिन्ता पर मरणासन्न मार्क्सवाद की ऎसी प्रतिक्रिया स्वाभाविक ही है।तू इधर उधर की न बात कर, ये बता कि कारवाँ लुटा क्यूँ कि तर्ज पर यह जवाबदेही बनती है कि भारत में २लाख से ज्यादा औद्योगिक इकाइयाँ बंद क्यों हैं? एशिया का मैनचेस्टर के नाम से जाना जानें वाला और जो १९४७ के पहले २ लाख तथा १९७० में लगभग १० लाख कामगारों को रोजगार देता था, वह कानपुर आज तबाह क्यों है? टैफ्को, लालइमली, एल्गिन, म्योर, अथर्टन, कानपुर टेक्सटाइल, रेल वैगन फैक्ट्री, जे०के०रेयन, जे०के०काटन, जे०के०जूट, स्वदेशी काटन,मिश्रा होजरी, ब्रशवेयर कारपोरेशन, मोतीलाल पदमपत शुगर मिल्स, गैंजेस फ्लोर मिल्स, न्यूकानपुर फ्लोर मिल्स, गणेश फ्लोर एण्ड वेजिटेबिल आयल मिल, श्रीराम महादेव फ्लोर मिल, एच ए एल, इण्डियन फर्टिलाइजर तथा अन्य सैकड़ों छोटे-बड़े कारखाने बन्द क्यों और किसकी वजह से हैं। सिर्फ और सिर्फ लाल झण्ड़े के कारण। बहुत मुशकिल से स्थानीय सांसद श्रीप्रकाश जायसवाल और सकारात्मक सोंच वाली यूनियनों के सहयोग से जे०के०काटन और जे०के०जूट मिल विगत ५-६ महिनें से प्रारंभ हुई थी। लगभ ४ हजार लोगों को बंद पड़ा रोजगार फिर से मिला था। वह पुनः बन्द होंने की कगार पर हैं कारण…..? मजदूरों नें कम्युनिस्ट यूनियन को दरकिनार कर मिल चलानें में प्रबन्धन की मदद की थी। इससे बौखलाए मार्क्सवादी अभी तीन दि्न पहले जे०के०जूट मिल पर कब्जा कर अपनें नियंत्रण में जबरन मिल चला रहे है। प्रबन्धन, दूसरी मजदूर यूनियन्स तथा मजदूरों का एक बड़ा ग्रुप मिल में नहीं जा रहा है। यही स्थिति रही तो ये दोनों मिले भी इनके कुकर्मों से बन्द हो जाँएगी।कानूनी दाँव-पेंचों से न तो मिले चलती हैं न रोजगार मिलते हैं। वकील की रोजी मुकदमा चलते रहनें से चलती है न कि विवाद को निपटानें से। टनों रद्दी इकट्ठा होंना इस बात का प्रमाण है कि दोनों पक्ष हठधर्मिता कर रहे हैं। मजदूरो के हित, देश की प्रगति और नये रोजगारों का सृजन ममत्व बुद्धि से हो सकता है न कि कुटिल चालों से भरे अहंकार और राजनीति से।

    Like

  5. 'लाल झण्डा माने अकार्यकुशलता पर प्रीमियम': लाख टके की बात ! आतंकी वाला मामला थोडा काम्प्लेक्स है पर बात तो आपकी निर्विव्वाद सच है… पर इम्प्लीमेंटेशन आसान नहीं.

    Like

  6. आतंक वाद को खतम करने के लिए आतंकीयॊ को मारनें से कुछ ना होगा।यह तो ठीक ऐसे ही है जैसे किसी पेड़ की टहनियों को काटना।इस से यह आतंक का पेड़ नही मरेगा। वार करना है तो जड़ पर करना होगा। कई बार ऐसा भी हुआ है की आतंकी के चक्कर मे निर्दोष भी बलि चड़ जाते हैं। जिस से एक नये आतंक की मानसिकता का जन्म हो जाता है।आलेख से सहमत ।

    Like

  7. जबलपुर में इन्ही कारणों के चलते कई प्लान्ट बंद हो चुके है और यदि समय रहते न चेते तो आने वाले समय में और भी प्लान्ट बंद हो सकते है . श्रमिकों का भी जागरुक होना नितांत जरुरी है . श्रमिकों के बारे में आपके विचार सराहनीय है. आभार.

    Like

  8. हम भी आपके विचार से शत -प्रतिशत सहमत हैं ,हमारे सिस्टम में ही काफी ऐसे लोग भर आये हैं जो कि वाकई लंठ हैं या परले दर्जे के कुटिल.बेहतरीन पोस्ट.

    Like

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started