हम लोग रेल बजट के संदर्भ में एक पावरप्वॉइण्ट प्रेजेण्टेशन बना रहे थे। अचानक याद आया कि बाम्बे-बड़ौदा एण्ड कॉण्टीनेण्टल इण्डियन रेलवे सन १९०९ में कानपुर में दाखिल हुई। स्टेशन बना था कॉनपोर। यह स्टेशन अब कानपुर में हमारे अभियांत्रिक प्रशिक्षण अकादमी का भवन है।
सौ साल!। आप इस भवन के फोटो देखें। कानपुरवाले इस जगह को छू कर आ सकते हैं।
इस घटना की शती मनाने को मेरी रेलवे कुछ करेगी जरूर।![]()
यह रहा भवन का तीसरा चित्र।
इलाहाबाद से कानपुर के लिये पहली ट्रेन १८५९ में चली थी। कानपुर-लखनऊ १८७५ में जुड़ा। कानपुर से बुढ़वल (सरयू का किनारा) १८७९ में जुड़ा और झांसी कानपुर से १८८६ में लिंक हुआ।
इस ब्लॉग में इतिहास समेटना मेरा ध्येय नहीं है। पर चित्र हाथ लगे तो सोचा लगे हाथ बता ही दूं। मेरे कुछ ग्राहक तो कानपुरिये हैं ही।
अस्सी-नब्बे स्लाइड का इन्फर्मेशन एक्प्लोजन वाला पावरप्वाइण्ट मन्त्री जी कितनी रुचि ले कर सुनते-देखते हैं, यह नहीं कह सकता। पर यह इतिहास वाला अंश रोचक है जरूर।

इस जानकारी का शुक्रिया । आभार ।
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एक कनपुरिया होने के नाते इस जानकारी के लिए आपका बहुत आभारी हूँ, आपने कहा इसबार इस जगह को छु कर तो आऊंगा ही :-)
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कानपुर का बैण्ड बजा दिया… लेकिन इमा्रत बहुत भव्य बनाई.. सोचता हूँ अगर अंग्रेजो को १०-१५ साल और रोक कर कुछ और infra structure के प्रोजेक्टस करवा लेते तो कितना आराम होता,,:)
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ऐतिहासिक है कानपुर के चित्र व सँदर्भ – लावण्या
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आजकल के मकान तो सौ साल तक़ टिकते ही नही।उस दौर के बिना कमिशनखोरी के भवनो की बुलंदी कुछ तो ईमानदारी का झंड़ा उठाये हुये है।
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हम तो बीबीसीआईआर वाले हैं।
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बढ़िया जानकारी!
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अनूप जी कुछ कहें !
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वाकई आपने एक इतिहास का आज प्रगटीकरण किया है ,रोचक पोस्ट .
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अच्छा लगा यह जानकारी पा कर.
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