यह कैसी देशभक्ति?


Kazmi एस जी अब्बास काज़मी का इण्टरव्यू जो शीला भट्ट ने लिया है, काफी विस्तृत है। फॉण्ट साइज ८ में भी यह मेरे चार पन्ने का प्रिण्ट-आउट खा गया। पर पूरा पढ़ने पर मेरा ओपीनियन नहीं खा पाया! आप यह इण्टरव्यू रिडिफ पर पढ़ सकते हैं। 

ये सज्जन कहते हैं कि ये काफी बोल्ड और एडवेंचरस टाइप के हैं। एक वकील को होना ही चाहिये। ये यह भी कहते हैं कि ये देशभक्त भारतवासी हैं। देश भक्त भारतवासी के नाम से मुझे महात्मा गांधी की याद हो आती है। गांधीजी, अगर किसी मुकदमे को गलत पाते थे – या उनकी अंतरात्मा कहती थी कि वह सही नहीं है, तो वे वह केस हाथ में नहीं लेते थे। अब्बास काजमी शायद अपने केस को पुख्ता और सही मानते होंगे। अन्यथा, वे (शायद कई अन्य की तरह) अंतरात्मा विहीन हों। पता नहीं।

उनका कहना है कि उन्होने कसाब को पांच फुट दो इंच का पाया और (कसाब के निर्देश पर) कोर्ट से दरख्वास्त कर डाली कि वह नाबालिग है। उनके इण्टरव्यू से यह भी लगता है कि (कसाब के निर्देश पर) वे यह भी कोर्ट को कहने जा रहे हैं कि वह पाकिस्तान का नहीं भारत के पंजाब प्रान्त का रहने वाला है। उसके पास एके-४७ नहीं, आदित्य का खिलौना था। उसकी गोलियीं वह नहीं थीं जिससे लोग मरे। पोस्ट मार्टम रिपोर्ट डॉक्टर्ड हैं — इत्यादि। और यह सब देशभक्त भारतीय होने के नाते करेंगे वे।

यह सारा इण्टर्व्यू हम वार्म-ब्लडेड जीवों में वितृष्णा जगाता है। इस मामले की डेली प्रोसीडिंग भी वही भाव जगाती है। पर, ऑफ लेट, होमो सेपियन्स शायद कोल्ड-ब्लडेड होने लगे हैं। आप में कैसा ब्लड है जी?


कल प्रवीण मेरे चेम्बर में आये। एक व्यक्ति जो आपकी पोस्ट पर पूरी सीरियसनेस से टिप्पणी करता हो, और जिसके ब्लॉग पर रिटर्न टिप्पणी की बाध्यता न हो, उससे अधिक प्रिय कौन होगा!

वैसे मैने देखा है कि अन्य कई ब्लॉग्स पर प्रवीण की टिप्पणियां हैं। मसलन आलोक पुराणिक के ब्लॉग पर उनकी यह टिप्पणी बहुत कल्पनाशील है। बिजली की किल्लत कैसे सरकारी कर्मचारी को दफ्तर के बारे में पंक्चुअल कर देती है, यह देखें:

Praveen पनकी (कानपुर के पास का थर्मल पावर हाउस) की ग्रिड फेल हो गयी है और चँहु ओर अंधकार व्याप्त है । इन्वर्टर के सहारे जीने वाले जीवों में मितव्ययता का बोध जाग उठा है । केवल एक पंखे के सहारे पूरा परिवार रात की नींद लेता रहा । सुबह ऊठने पर एक सुखद अनुभूति हुयी कि इन्वर्टर ने रात भर साथ नहीं छोड़ा । कृतज्ञता की भावना मनस पटल पर बहुत दिनों बाद अवतरित हुयी है । सुबह जल्दी जल्दी तैयार होकर समय से कार्यालय पहुँचने पर पता लगा कि सारा स्टाफ पहले से ही उपस्थित है, शायद सभी को पता था कि कार्यालय में जेनरेटर की व्यवस्था है

देखिये न, बिजली के न रहने से सबके अन्दर समय पालन, अनुशासन, मितव्ययता, कृतज्ञता आदि दुर्लभ भाव जागृत हो रहे हैं । तो क्या बिजली अकर्यमणता की द्योतक है?


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

38 thoughts on “यह कैसी देशभक्ति?

  1. वाकई मन वितृष्णा से भर जाता है, मुँह कसैला हो जाता है ऐसे मौका परस्त लोगों को देख के जो अपने लाभ के लिए देश को भी बेच खाएँ। ये वकील साहब भी ऐसे ही जन्तु दिखते हैं, कसाब का केस मात्र पब्लिसिटी और माईलेज हासिल करने के लिए लड़ रहे हैं, अन्यथा इनको कौन जाता था, गिने चुने आस पास के लोग जानते होंगे और ऐसे ही अपना जीवन चुक जाने के बाद इन्होंने अल्लाह ताला के दरबार में हाज़िरी देने के लिए रूख्सत हो जाना था। लेकिन चूंकि ये अब एक हाई प्रोफाइल कैदी का दर्जा पा चुके कसाब के वकील हैं इसलिए अब इनका नाम बहुतों ने पढ़/सुन लिया है!यश/रोकड़े का लोभ किसी से कुछ भी करा सकता है जी!!

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  2. अब्बास काज़्मी से यह दो सवाल पूछना चाहता हूँ:१)आपका फ़ीस कसाब दो नहीं दे पाएगा? तो फ़िर कौन दे रहा है? किस देश से? क्या रकम है?२)क्या भविष्य में आप किसी गैर मुसलमान नक्सलवादी का भी केस इसी dedication और committment के साथ लडेंगे?

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  3. ऐसे ही एक देशभक्त जिन्ना भी थे जिन्होंने अपने लिए एक दूसरा देश ही काट कर बना लिया था । भारत देश के दुश्मन बड़े भाग्यशाली हैं जिन्हें सदैव ही कोई न कोई मीर जाफर हमेशा मदद के लिए तैयार मिलता है । कसाब की इतनी दिल लगा कर पैरवी तो कोई पाकिस्तानी वकील भी न कर पाता जितनी यह कर रहे हैं । देशविभक्ति का जज़्बा दिल में जोर मार रहा होगा इनके । अफसोस इस देश में आज गद्दारी को ही सरंक्षण मिलता है । कभी मानवाधिकार के नाम पर कभी मूल अधिकार के नाम पर । न्याय के तराजू में देश सदैव आतंकवाद और अलगाववाद से हल्का ही साबित हुआ है । फिर भी हम कायम हैं, आश्चर्य है ।

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  4. प्रसिद्धि पा लेना सभी गुणों का स्रोत है । ऐसे व्यक्ति को लगता है कि धीरे धीरे सारे गुण उसके अन्दर प्रस्फुटित होते जा रहे हैं । कभी कभी उसे यह भी लगता है कि उसके गुण लोगों तक पहुँच नहीं पा रहे हैं इसके लिये वह मीडिया का सहारा लेता है और मीडिया उसके ’प्रसिद्धि’ गुण के कारण और गुणों को प्रचारित प्रसारित करती है ।ऐसी स्थिति सभी नेताओं, अभिनेताओं से लेकर मोहल्ले के नायकों तक में पायी जाती है । सभी अपने गुण, ज्ञान और कल्पना के आयामों में औरों को लपेटने की कोई कसर नहीं छोड़ते । शायद कुछ ऐसे भ्रम की स्थिति में श्रीमान काज़मी साहब हैं । आप देखते रहिये जब तक मुकदमा चलेगा और कई गुण आपको जानने को मिलेंगे । अरे ! हनुमान जी भी तो अपने गुण भूल गये थे । ’प्रसिद्धि रूपी जामवन्त’ जब काज़मी साहब को कहेंगे कि का चुप साध रहा – – – ? तो पुनः ’मूढ़ बकर’ (सौजन्य अमित जी) चालू हो जायेगी ।

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  5. आपका सवाल सौ फ़ीसदी सही है. लेकिन ज़्यादा गम्भीर सवाल यह है कि अब्बास काज़मी के देशभक्त होने से भी क्या होगा? अफ़ज़ल गुरु को तो फांसी की सज़ा सुनाई जा चुकी थी. आज तक दिल्ली सरकार अपना ओपिनियन ही नहीं दे सकी. गृह मंत्रालय उसका ओपिनियन अगोर रहा है, पीएमओ गृहमंत्रालय का और राष्ट्रपति कार्यालय पीएमओ का. दिल्ली सरकार क्या अगोर रही है? अगर वास्तव में व्यवस्था इसके प्रति गम्भीर है तो ये मामला क्यों नहीं उठाया जा रहा है? व्यवस्था ही नहीं चाहती तो वकील क्या करेगा? वह तो बस अपना व्यवसाय ही कर रहा है.

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  6. सद्दाम हुसैन का मुकद्दमा और उसको मिली सजा से हमारे न्यायविदो को कुछ सीखना चाहिये। कसाब का केस भी इसी श्रेणी मे आता है (मेरे विचार से)।

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