शहर बने। जब गांव शहर की ओर चले तो सबर्ब (Urban>Suburban) बने। अब लोग सबर्ब से साइबर्ब (Suburb>Cyburb) की ओर बढ़ रहे हैं। की-बोर्ड और माउस से सम्प्रेषण हो जा रहा है। नई विधा पुख्ता हो रही है।
बन्धुवर, यह गांव/शहर या सबर्ब का युग नहीं, साइबर्ब (Cyburb) का युग है। आप यहां जो देख रहे हैं – वह साहित्य नहीं है। आप को नया शब्द लेना होगा उसके लिये। क्या है वह? साइबरित्य है?
ब्लॉग पर लिखा ही नहीं, कहा, सुना, देखा और प्रतिक्रिया किया भी उभरता दीखता है। जब मैं अपनी पोस्टें देखता हूं, तो उनका महत्व बिना टिप्पणियों के समझ नहीं आता। बहुधा टिप्पणियां ज्यादा महत्वपूर्ण नजर आती हैं। और हैं भी।
बहस बहुत चल रही है – प्रिण्ट माध्यम का शब्द है साहित्य। उसके मानक के अनुरूप ब्लॉग माध्यम को जांचने का यत्न हो रहा है। यह कुछ वैसा ही है कि द्वै-विम विश्व का प्राणी त्रै-विम जगत का अनुभव करे और उसे द्वै-विम के मानकों में समेटने का प्रयास करे (It is something like a two dimensional creature experiencing three dimensional world and trying to express it in the terminology of two dimensions!)।
बन्धुवर, यह गांव/शहर या सबर्ब का युग नहीं, साइबर्ब (Cyburb) का युग है। आप यहां जो देख रहे हैं – वह साहित्य नहीं है। आप को नया शब्द लेना होगा उसके लिये। क्या है वह? साइबरित्य है?
जो सृजित हो रहा है, उसके पीछे जिस स्तर का साइबरनेटिक्स (सूचना तकनीक का सामरिक रूप), सामाजिक निर्बाधता और व्यक्ति/समाज/मशीन को परस्पर गूंथता जाल (नेटवर्क) है, वह पहले कभी न था। तुलसी/भारतेन्दु/अज्ञेय उससे बेहतर अनुभूति कर गये थे – अगर आप कहते हैं तो अपनी रिस्क पर कहें। हां, साइबर्ब अभी भी अपने चरम पर शायद नहीं है। और यही उसका रोमांच है। सौन्दर्य भी!
खैर कोई बात नहीं अगर आपको "साइबरित्य" शब्द पसन्द नहीं आया। नया शब्द गढ़िये। असल में आपको नया शब्द गढ़ना ही होगा। एक नया फिनॉमिना पुराने शब्द से समझाया नहीं जा सकता!

सर! शब्दो का अविष्कार आप जैसे ज्ञाता ही कर सकते है। यह हम नोसिखियो के लिए वरदान बने कि आप शब्दो का खजाना छोड जाए हमारे लिए। मुम्बई टाइगरहे प्रभु तेरापन्थ खान
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Naya shabad sahi sandhi hui haijab final ho jaaye to mujhe bhi batayiyega
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साइबरित्य! वाह पाण्डेय जी. आपने एक बार फिर साबित कर दिया कि आप में नए शब्द गढ़ने की अद्वितीय प्रतिभा है.
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बिलकुल ठीक शब्द दिया सर आपने – साइबरित्य.और भाई फुरसतिया सुकुल जीयक़ीन मानिए दस-बीस रुपये वाला कम्प्यूटर भी आ जाएगा. ज़्यादा नहीं. दस साल लगेंगे. ये अलग बात है कि तब तक आटा-दाल 10-20 हज़ार रुपये किलो हो जाएंगे.
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कन्हैया लाल नंदन जी को उनके सारिका के संपादकत्व के दौरान किसी ने अनर्गल लिख भेजा तो उन्होंने उसे "कायर" से भी नीच, "टायर" कहा था.आज अगर ब्लाग (इंटरनेट सहित)पर लिखे को कुछ महानुभाव साहित्य नहीं मानते तो भई ठीक है… हम इसे कंपात्य (कंप्यूटरजनित), बात्य (बातों से उपजा), साइबरित्य (साइबरजनित), भड़ात्य (भड़ासजनित) निठत्य(निठल्लाजनित)…कुछ भी कह लें, फ़र्क़ क्या पड़ता है.एक बात और, काग़ज पर छपने वाला सब साहित्य ही है (?)… क्या इसकी भी कोई गारंटी है !
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"साइबरित्यकार" की पदवी देने के लिये आभार। हम धन्य हुये। :)आजकल यह देखने मे आ रहा है कि वे लोग जो ब्लागर है पर फिर भी ब्लाग को साहित्य से कम आँक रहे है, दिन का ज्यादातर समय ब्लागिंग मे गुजार रहे है और पोस्ट पर पोस्ट डालकर ब्लागवाणी को जाम कर दे रहे है। है न मजेदार बात?
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साइबरित्य धांसू च फांसू शब्द है। इसे चलना चाहिए। साइबरित्य का फैलाव साहित्य के मुकाबले बहुत ज्यादा होगा। जमाये रहिये। नातू पांडे की खबर बहुत दिनों से नहीं है, कैसे हैं जी वह।
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Very tipical post.
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साइबरित्व कहीं आगे बढ़कर बोरयित्व न हो जाय और वह चतुर्थ-विम न बन जाय:)
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सोच रहा हूँ श्रीलाल शुक्ल जी के "राग दरबारी" को किस श्रेणी में रखूं ?
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