दारागंज के पण्डा के दुसमन फिर दिखे। सद्यस्नात। गंगा के जल से गीली बालू निकाल कर अण्डाकार पिण्ड बना ऊर्ध्व खड़े कर रहे थे तट पर बनाये एक घेरे में। मैने पूछा क्या है तो बोले पांच शिवलिंग बना रहे हैं। फोटो लेने लगा तो कहने लगे अभी पांच बना लूं तब लीजियेगा।
बनाने में खैर देर नहीं लगी। उसके बाद उनके परिवार की एक सदस्या और उनके एक साथी सहायता करने लगे शिवजी के ऊपर पत्र-पुष्प-अक्षत सजाने में। एक छोटी सी प्लास्टिक की डोलची में वे यह सामान लाये थे। छोटी छोटी शीशियों, डिबियों और पुड़ियों में कई चीजें थीं। फूल और बिल्वपत्र भी था। बड़ी दक्षता से शृंगार सम्पन्न हुआ। ![]()
असली दिक्कत हुई माचिस से दीपक जलाने में। अनेक तीलियां बरबाद हुईं। बाती में घृत की मात्रा बढ़ाई गई। यह संवाद भी हुआ कि मजेकी मात्रा में कपूर रखकर लाना चाहिये था। खैर अन्तत: जल ही गयी बाती। लगभग तीस सेकेण्ड में पूरी हो गयी पूजा और एक मिनट में शंकर जी विसर्जित हो गये गंगा जी में।
गंगाजी की जलराशि में उनकी रेत वापस चली गयी। साथ में ले गयीं वे तीन व्यक्तियों की श्रद्धा का भाव और एक फोटो खैंचक का कौतूहल! जय गंगा माई।
अनुष्ठान के बाद मैने उनका परिचय पूछा। वे हैं श्री रामकृष्ण ओझा। यहीं शिवकुटी में रहते हैं। मैडीकल कालेज में नौकरी करते हैं। इसी साल रिटायर होने जा रहे हैं। उन्होने मुझे नमस्कार किया और मैने उनसे हाथ मिलाया। गंगा तट पर हमारा यह देसी-विलायती मिक्स अभिवादन हुआ। … रामकृष्ण ओझा जी को मालुम न होगा कि वे हिन्दी ब्लॉगजगत के जीव हो गये हैं। गंगा किनारे के इण्टरनेटीय चेहरे!
और उन्होंने यह नया नारा ठेला –
जो करे शंकर का ध्यान। खाये मलाई चाभै पान। बोल गौरी-शंकर भगवान की जै!
ओझा जी अगले दिन भी दिखे। कछार में मदार के फूल तलाशते। उनसे कहा कि घाट के चारों ओर तो पानी आ गया है – कैसे जायेंगे। बोले ऐसे ही जायेंगे। “बोल घड़ाधड़ राधे राधे” बोलते उन्होंने अपनी गमछा नुमा लुंगी की कछाड़ मारी। नीचे नेकर दीखने लगा, और वे पानी में हिल कर घाट पर पंहुच गये!

Wah!! achha lagta hai jab aap aam aadmi mein hero dhoondhte hain aur unhe samne laaate hain :)ye bhaisaheb pasand aaye..kabhi apne baare mein likhen ya likha ho to mujhe link deven…
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आस्था का मोल आस्थावान ही लगा सकता है…रोचक पोस्ट।
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गंगा मैय्या की जय . आप भी पुण्य के भागी है हमें गंगा और भक्तो के दर्शन करा कर
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बहुत बढ़िया रोचक धार्मिक आस्था से लबरेज जानकारी वीडियो फोटो बहुत बढ़िया लगे. आभार
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मैं आपकी पोस्टों को काफी समय से चोरी चोरी पढ़ता रहा हूं लेकिन टिप्पणी करने की हिम्मत आज जुटा पाया। मानो तो देव नहीं तो पत्थर हो हैं ही। हमारी कुछ ऐसी ही विशेषता है कि जो पूरी दुनिया को आलोकित करता है हम उसे भी दिया दिखाने से नहीं चूकते। यह सब आस्था का चमत्कार है। जय गंगा मैया कीहिमांशु पाण्डेय इलाहाबाद
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"जो करे शंकर का ध्यान। खाये मलाई चाभै पान"और पान में डालो गुठका भांग:)
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देसी-विलायती मिक्स अभिवादन अच्छा लगा..ऐसे कितने जीव दिए है आपने ब्लॉग जगत को…..
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इसे कहते है नेचर-फ्रेंडली पूजा. बधाई के पात्र है. जय हो गंगा मैया.
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बोल धडाधड राधे राधे.जय गंगा मैय्या की!!!
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नमस्ते !आज मैंने आप के नये पोस्ट को पढा और वही गंगा माँ के स्वच्छ पानी को महसूस किया। क्योकि २ साल पहले मै भी इलाहाबाद के उप टेक में पढ़ता था। और उक्सर अपने फ्रेंड के साथ वही जाया करता था। लेकिन एपी के पोस्ट का नायक तो एक नये अजनबी है जो अपने भक्ति से आप सभी लोंगो को प्रभावित किए। आज के भागम-२ जिन्दगी में हम लोग जैसे आईटी के लोग तो नास्तिक बन कर रह गये है। फिर भी आप के पोस्ट को पढ़ कर एक नई उत्त्साह का संचार हो गया है शायद यह आप हमेशा बना रहेगा.
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