तमसो मां ज्योतिर्गमय:
तम से ज्योति की ओर। घरसो मां जर्नीर्गमय:। घर से जर्नी (यात्रा) की ओर। मैं जर्नियोगामी हो गया हूं।
बड़ी हड़हड़ाती है रेल गाड़ी। वातानुकूलित डिब्बे में न तो शोर होता है, न गर्दा। पर इस डिब्बे में जो है सो है। इतने में एयरटेल समोसा मैसेज देता है – Airtel welcomes you to Madhya Pradesh. We wish you a pleasent stay… कमाल है। इतनी देर से फोन लग नहीं रहा था। मैसेज देने को चैतन्य हो गया। भारत में सारे सर्विस प्रदाता ऐसे ही हैं – ध्यानयोग में दक्ष। जब उन्हें कहना होता है, तभी चैतन्य होते हैं।
खैर हमें रुकना नहीं है – चलते चले जाना है। मध्य प्रदेश में स्टे मध्यप्रदेश वालों को मुबारक! मैं खिड़की से बाहर झांकता हूं। जमीन वैसी ही है जैसी उत्तरप्रदेश में। एक स्टेशन पर गुजरते ऑफ साइड का प्वाइण्ट्समैन मुझे बनियान में देखता है। जरूर चर्चा करेगा कि साहेब बनियान पहने बैठे थे। स्टेशन पूरा गुजरने के पहले ही खिड़की का शटर गिरा देता हूं। मुझे अपनी नहीं, साहब की छवि कि फिक्र लगती है।
खैर, आप टिप्पणी की फिक्र न करें – मैं सिर्फ यह देख रहा हूं कि चलती-हिलती-हड़हड़ाती गाड़ी में पोस्ट ठेल पाता हूं कि नहीं। जब यह शिड्यूल समय पर पब्लिश होगी, तब भी यह गाड़ी तेज रफ्तार से चल ही रही होगी!

लो जी समय पर पोस्ट भी आ पहुंची और फ़ोटू तो बडी चकाचक है.रामराम.
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चलती ट्रेन से तो कर दी पोस्ट …. कभी हवाई जहाज़ से ट्राई करियेगा.
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पोस्ट तो सक्सेसफुली पोस्ट हो गयी साहेब, बधाई!
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जमीनी स्तर से जुड़े हुए आप जैसे साहब लोग बहुत कम होते हैं।
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मेरे और पंचम भैया के अलावा और अब आगे जो लोग भी टिप्पणी करने वाले हैं उनसे अनुरोध है कि चच्चा की इस 'जनयात्रा' के डिब्बे के बारे में अब और टिप्पणी न करें। रेलवे की माया के बारे में आप लोग अल्पज्ञ हैं। खामखाँ चच्चा को 'मनबढ़ू' न बनाएं। इस समय वह धीर गम्भीर मुद्रा में चिंतनरत हैं। बंडी वाला फोटो दुबारा देखें।पंचम भैया, आप ने तो कमाल कर दिया। लेकिन चच्चा उस डब्बे में नहीं हैं जिसमें आप समझ रहे हैं।
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ब्लॉग्गिंग की लत ही ऐसी है..ट्रेन में भी चैन नहीं..!!
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ज्ञानजी, कंघा साथ रखियेगा। पंखा न चले तो पंखे के जाली में जगह बनाकर उसे खर्रखुर्र करते चलाने की कोशिश किजियेगा। औऱ हां, जूता बहुत चोरी होता है उसे कनपुरीया स्टाईल में पंखे के उपर रखियेगा। रास्ते में वडा पाव- बिडा पाव मिलता है जरूर नोश फरमाइएगा……और सबसे जरूरी बात……'लटकायमान झोला' जो आप हमारे लिये ला रहे हैं उसे 'चेन पुलिंग' वाली जंजीर के साथ लटका दिजियेगा….डरिये नहीं…..वो तो ऐसे ही लगाया रहता है लोगों को भरमाने के लिये…. :)यात्रा के लिये शुभकामनाएं।
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ई कौन थर्ड क्लास क डब्बा म बैठ गए है ?
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संवाद जारी रखने की प्रतिबद्धता और ललक प्रशंसनीय है।बनियान में हमरे बाबू जी(बड़े चाचा) की तरह लग रहे हैं। सच्ची ;)
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ये आप कौन गाड़ी में बैठ गये कि न सैलून और न एसी…कुछ तो साहेब की छवि की फिक्र इसमें भी करनी थी. हम तो क्या क्या सपन संजोये थे आपकी पोजीशन को लेकर..सब मटिया मेट हो गई एक ठो पोस्ट और फोटू से.क्या मालगाड़ी संचालन के लिए मालगाड़ी के गार्ड साहेब के डब्बा में बैठे चले जा रहे हैं??
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