काले बगुले?


लगता है मछलियां बहुत ले आई हैं गंगाजी। श्री अरविन्द मिश्र जी की माने तो टिलेपिया मछली। मछेरे बहुत गतिविधि कर रहे थे परसों शाम उथले पानी में। BlackStork2और कल सवेरे सवेरे ढेरों पक्षी दिखे। गंगा किनारे रहने वाले सफेद बगुले तो वही इक्का-दुक्का थे। पर कुछ सफेद सारस और ढेरों काले बगुले जाने कहां से बड़ी संख्या में आ गये थे। हर्रे लगे न फिटकरी, बर्ड सेंक्च्यूरी देखने का मजा मिल गया। लगभग सौ-डेढ़ सौ रहे होंगे काले बगुले। 

दो लड़के मुझे ध्यान से देख रहे थे फोटो लेते। वे बोले – अंकल जी आप लेट आये, कुछ देर पहले और सुन्दर नजारा था।

सफेद सारस तो पहचानना सरल है। पर काले बगुले? मैं बहुत निश्चित नहीं हूं। इण्टरनेट पर फोटो सर्च में जो ब्लैक स्टॉर्क दिखते हैं, उनके पेट पर सफेद चकत्ता है। यहां दीखने वाले पूरे काले थे और सारस से कुछ कम आकार के। वे सफेद बगुलों से बड़े आकार के हैं – सारस से कुछ ही कम। उनके बच्चे भी साथ थे। निश्चय ही ये प्रवासी पक्षी हैं। अपने कुटुम्ब के साथ चलने वाले। पता नहीं कहां से आये! (शायद ये Black Heron सहारा रेगिस्तान के दक्षिण और मेडागास्कर में पाये जाते हैं ये। पर क्या ये बगुले प्रवासी पक्षी होते हैं?)

BlackStork3 मेरे पास कई तस्वीरें हैं। और छोटे वीडियो भी। पर कैमरे का जूम इतना बढ़िया नहीं है कि इन पक्षियों को दूर से पकड़ पाये।

आप देखना-अभिव्यक्त करना चाहें तो औजार परिमित नजर आने लगते हैं। अगर आप साहित्य रच रहे हों तो आपको कलम के सिवाय और कोई औजार नहीं चाहिये। पर अगर आप अकिंचन ब्लॉगर हैं तो अपनी मेधा पर नहीं, औजारों की उपयुक्तता पर ध्यान देना चाहिये!

पर आप पोस्ट ठोंकने के लिये अत्युत्तम औजारों की प्रतीक्षा करेंगे? यू डेयर नॉट! काले बगुले के इन चित्रों से काम चलायें। बेहतर देखने हों तो फ्लिकर पर Black Heron सर्च करें!   BlackStork

(वैसे वे काले बगुले निश्चय ही प्रवासी थे। शाम के समय एक भी न दिखा। और गंगाजी की जल राशि में विस्तार गजब है – सुबह से शाम तक में ३०-४० कदम जमीन और दाब ले रही हैं! कहते भी हैं कि भादों की गंगा ज्यादा बढ़ती हैं!)BlackHeron


टिप्पणी-स्मरण:

कल निशांत मिश्र जी ने एक बढ़िया पोस्ट लिखी यक्ष प्रश्न पर। उसे देख मैं अपनी एक पुरानी पोस्ट पर गया। और क्या दमदार टिप्पणियां हैं वहां लोगों की!

साहेब, मेरा ब्लॉग पोस्टों में नहीं, टिप्पणियों में बहुत रिच है! उस पोस्ट पर श्री आलोक पुराणिक जी की टिप्पणी देखें

alok-puranik ये बहकाने वाली पोस्ट ना लिखें कि ये भी कर लो, वो भी कर लो। ये सीखो, वो सीखो। ज्ञान के अपने संकट होते हैं, अरसा पहले मैंने ज्योतिष सीखा, मुहल्ले,बिल्डिंग के लोग मुहुर्त वगैरह निकलवाने आने लगे। फिर हुआ यूं कि कुछ यूं कहने लगे कि लड़की की शादी में पंडित भी आप बन जाओ, कम पैसे पे मान जाना। और फिर बाद में यह हुआ कि कुछ लोग कहने लगे कि यार पंडितजी को बुलाया था, नहीं आये, श्राद्ध की तिथि तुमसे बंचवायी थी, सो भोजन भी तुम्ही खा जाओ। बाद में मैंने यह सब एकदम बंद कर दिया। लोग नाराज हो गये कि देखो कि कितना बनते है।

आदमी को काम भऱ का सीख लेना चाहिए, बाकी टाइम में कुछ और करना चाहिए, जैसे मेरे ब्लाग को पढ़ना चाहिए, उसके बाद टाइम बचे, तो आप के ब्लाग पर जाना चाहिए। सच यह है कि किसी भी नये काम में घुसो, तो वो इत्ता टाइम मांगता है कि फिर सिर धुनने की इच्छा होती है कि काहे को नये पचड़े में पड़ें। एक ही विषय के इत्ते आयाम हैं कि उन्हे ही समझना मुश्किल होता है। कभी कभी लगता है कि कायदे से एक जन्म काफी नहीं है। सात-आठ जन्म मिलें, हर जन्म एक खास हुनर पर लगाया जाये। मेरा सिर्फ इतना मानना है कि बहुत चीजें सीखने के चक्कर में बंदा कुछ नहीं सीखता। किन्ही एक या दो या अधिक से अधिक तीन चीजों को पकड़ लो, और उन्ही मे लग लो, तो रिजल्ट आते हैं।

अफसोस, श्री पुराणिक ने मन लगा कर टिप्पणी करना बन्द कर दिया है। किसी और गुन्ताड़े में लगते हैं!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

40 thoughts on “काले बगुले?

  1. वाह, वाकई बैठे बिठाए पक्षी विहार का आनंद ले लिया आपने! :)

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  2. कैमरा भले ही बहुत उच्च क्वालिटी का ना हो पर दृश्य को सलीके से पकड़ने की कला के दर्शन होते हैं आपके खींचे चित्रों में. एक अच्छा कैमरा वाकई कमाल कर सकता है.काले बगुलों को बगुला भगत तो नहीं कहा जा सकेगा.

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  3. पुराणिक जी की टिप्पणी में दम है । भुक्तभोगी मैं खुद हूं । 10 जगह टांग फंसा रखी है । इत्ता टेम भी नहीं निकाल पाता कि सुबह- शाम गंगा जी का दर्शन ही कर लिया करूं । पर आपके ब्लाग पर आकर ये कमी भी पूरी हो जाती है । जहां तक बगुलों की बात है तो चाहे काले हो या नीले । होते सब प्यारे हैं । फोटुओं के लिये आभार ।

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  4. अगर आप साहित्य रच रहे हों तो आपको कलम के सिवाय और कोई औजार नहीं चाहिये। पर अगर आप अकिंचन ब्लॉगर हैं तो अपनी मेधा पर नहीं, औजारों की उपयुक्तता पर ध्यान देना चाहिये!..badi technical hai bahi sahab blogging…….agdam bagdam bhi acchi lagi…

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