उन महिला को तीन दिन से शाम के समय देख रहा हूं, गंगा तट पर दीपक जला पूजा करते। कल ध्यान से सुना। कोई श्लोक-मन्त्र जाप नहीं कर रही थीं। अपनी देशज भाषा में हाथ जोड़ गंगा माई – देवी माई की गुहार कर रही थीं। काफी देर चली पूजा। उनके हटने पर मैं और एक कुकुर दोनो पूजा स्थल की ओर बढ़े। मैं फोटो लेने और कुकुर पूजा स्थल पर चढ़ाये बताशे लेने। कुकुर को एक लात मार अलग करना पड़ा अन्यथा पूजा स्थल का दृष्य वह बिगाड़ देता।
तीन दिये थे। फूलों के तीन अण्डाकार दीर्घवृत्तों में। अगरबत्ती जल रही थी। श्रद्धा की गंध व्यप्त थी। मैं कौतूहल भरा फोटो ले रहा था पर कुछ श्रद्धा – त्वचा के कुछ अंदर तक – तो मेरे शरीर में भी प्रवेश कर गयी थी। … या देवी सर्व भूतेषु …
तट से वापसी में वही महिला घाट की सीढ़ियों पर बैठी दिखीं। कोटेश्वर महादेव की नींव के पास के नीम के विशाल वृक्ष की जड़ में भी एक दिया जलाया था उन्होने। मुझसे रहा न गया। पूछ बैठा – एक फोटो ले लूं आपका।
अटपटा सा अनुरोध। महिला सकपकाई। मैने कहा – ठीक है, जाने दीजिये।
“नाहीं, अईसन कौनो बात नाहीं (नहीं, ऐसी कोई बात नहीं)।” उन्होने इजाजत दे दी। आगे की बात मेरी पत्नी जी ने की। वे यहीं गोविन्दपुरी में रहती हैं। नवरात्र भर रोज शाम को तट पर आती हैं/आयेंगी पूजा को। अन्यथा हर सोम वार। तट पर चढ़ाये तीन दियों में एक गंगा माई के लिये है और शेष उनकी कुल देवियों के लिये। बाल बच्चों की सलामती के लिये करती हैं। तीन बच्चे हैं। छोटी लड़की की आंख माता में (चेचक से) खराब हो गयी है। उसकी परेशानी है।
मैं समझ नहीं पाता कि यह पूजा बिटिया की आंख ठीक करेगी या नहीं। पर उनके पास परेशानी में कुछ करने को तो है। हम तो अपनी परेशानी मात्र चिंता के रूप में अपने कन्धे पर ढो रहे हैं – बहुत अर्से से!
गंगा तट पर आ रहे हैं तो यह देख सुन रहे हैं। नहीं तो घर में तोड़ते रहते कुरसी!

hamesha ki tarah acchi post…par"कुकुर को एक लात मार अलग करना पड़ा अन्यथा पूजा स्थल का दृष्य वह बिगाड़ देता।"asha kata hoon koi menka gandhi gang wale wahan nahi rahe honge….:)…waise mujhe personally bhi jeev ko kisi tarah (choti hi sahi) haani pahuchana pasand nahi bilkul bhi nahi !!agar ho sake to ise hata sakte hain? (please it's an request !!).(as you say it 'महत्वपूर्ण टिप्पणियां')Waise bhi aapne aisa nahi kiya hoga mujhe pakka yakeen hai, ye aapne post ki rochkta badhane ke liye likh diya hoga !!
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अगर आस्था से जीवन में जीने की रौशनी दिखाई देती है तो आस्था बेहतर है चाहे लोग उसे ढकोसला कहे या कुछ और . वैसे कुत्ते को मारी गई लात कहीं मनेका गाँधी को पता चल गया तो शायद समधीजी की शरण में जाना पड़ेगा आपको
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विश्वास पर दुनिया कायम है और यही हमे आगे बढ़ने और मुश्किलो से लड़ने का संबल प्रदान करता है
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श्रद्धा के कारण रक्तचाप तो नहीं बढ़ता. टेंशन कम रहता है इसलिए. विद्वता के पांखड से दूर गंगातट की बाते पढ़ना अच्छा लगता है.
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आस कुछ सांस तो जरूर दे जाती है,भले वह पूरी हो या नहीं…विज्ञान ने स्वीकारना शुरू कर दिया है कि अल्टरनेटिव मेडीसिन (पूजा ध्यान,योग रेकी इत्यादि इत्यादि) में निहित पोसिटिव वाइव्स भी शारीरिक मानसिक रोग निरोध में उतना ही कारगर है,जितना कि अधिनिक चिकित्सा पद्धति में रोगनिवारक औषधि ….प्रसंग और चित्र दोनों ही चित्ताकर्षक हैं …आभार आपका..
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पांडेयजी, जीवन तो विश्वास पर ही चलता है…….इस तथ्य को साधारणजन – पढे-लिखे कृत्रिम आदमी से ज़्यादा समझता है……….आपके रिपोर्ताज ने अभिभूत कर दिया…
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ज्ञानदत्त, मै इन बातो को नही मानता था, लेकिन अब थोडा थोडा मानने लग गया हुं, या फ़िर मेरा झुकाव सा होता जा रहा है, पता नही क्यो ? कल हम ने सुंदर कांड का पाठ किया, फ़िर पुजा की, अब उस के बाद पता नही क्यो मुझे एक तरह से मन को शांति मिली, बेचेन तो मै पहले भी नही था, लेकिन इस पुजा के बाद बिलकुल अलग सी शांति मिली जो मै शब्दो मै नही लिख सकता, शायद ऎसी ही शांति उन लोगो को भी मिलती है जो श्रद्धा से दिये जलाते है, पुजा करते है, कुछ तो मिलता ही है,
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अरे सर आपके भीतर का जिज्ञासु बालक और बुजुर्ग ब्लॉगर मिलकर तो जाने का-का खोजते फिर रहे हैं।
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आपके ब्लाग पर आकर सबसे बड़ा फ़ायदा –कि बिना प्रयाग आये गंगा माता का दर्शन मिल जाता है। आभार्।पूनम
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गंगा किनारे कितना कुछ अनुभूत होता है आपको – उपक्रम-हीन श्रद्धा है आपकी गंगा जी के प्रति । प्रविष्टि संकेत देती है । आभार ।
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