गति में भय है । कई लोग बहुत ही असहज हो जाते हैं यदि जीवन में घटनायें तेजी से घटने लगती हैं। हम लोग शायद यह नहीं समझ पाते कि हम कहाँ पहुँचेंगे। अज्ञात का भय ही हमें असहज कर देता है। हमें लगता है कि इतना तेज चलने से हम कहीं गिर न पड़ें। व्यवधानों का भय हमें गति में आने से रोकता रहता है। प्रकृति के सानिध्य में रहने वालों को गति सदैव भयावह लगती है क्योंकि प्रकृति में गति आने का अर्थ है कुछ न कुछ विनाश।
गति में रोमांच भी है। रोमांच इतना कि वह हमारी दैनिक आदतों का हिस्सा बनने लगता है। किसी मल्टीनेशनल के अधिकारी के लिये एक दिन बिना कार्य के बैठे रहना रोमांचहीनता की पराकाष्ठा है। जिन्हें लगता है कि पृथ्वी का भार उनके ऊपर है यदि वे बिना कार्य के गति विहीन हो जाते हैं तो वे अपने आपको निरर्थक मानने लगते हैं। सभी क्षेत्रों में ट्वेन्टी ट्वेन्टी की मानसिकता घुसती जा रही है। सात दिनों में सौन्दर्य प्राप्त करने वालों के लिये गति का महत्व भी है और रोमांच भी।
वहीं जीवन में यदि स्थिरता आने लगती है तो वह काटने को दौड़ती है। वह भी हमें असहज करती है। सब कुछ रुका रुका सा लगता है। विकास की कतार में हम अपने आप को अन्तिम व्यक्ति के रूप में देखने लगते हैं।
वही स्थिरता शान्ति भी देती है। उस शान्ति में जीवन की भागदौड़ से दूर हम अपने आप को ढूढ़ निकालते हैं जो कि सभी खोजों से अधिक महत्वपूर्ण है।
साइकिल चलाने वाले जानते हैं कि गति में रहेंगे तो साम्य में रहेंगे। सड़क अच्छी हो, गाड़ी दुरुस्त हो और सारथी कुशल तभी गति में आनन्द है।
मन के आयाम जीवन के आयाम बन जाते हैं। गति या तो प्रगति में पर्णित होती है या दुर्गति का कारण बनती है।
मुझे तो जीवन के महत्वपूर्ण निर्णयों के बारे में विचार घंटों चुपचाप और एकान्त बैठने के बाद आये हैं रुककर सुस्ताने की कला हमें सीखनी पड़ेगी।
ज्ञानदत्त पाण्डेय का कथ्य: स्वामी चिन्मयानन्द हमारे विजिटिंग फेकेल्टी हुआ करते थे, बिट्स पिलानी में। उन्होने हमें एक ह्यूमैनिटीज के इलेक्टिव विषय में पढ़ाया था। उनकी एक छोटी पुस्तिका थी - Hasten Slowly (जल्दी करो – धीरे से)। वह पुस्तक मुझे ढूंढनी पड़ेगी। पर उसकी मूल भावना यह थी कि अगर आप साधना-पथ पर तेज प्रगति करना चाहते हैं, तो व्यर्थ की गतिविधियों से नहीं, सोच विचार कर किये गये निश्चित कार्य से ही वह सम्भव है।
स्वामीजी ने हमें केनोप्निषद, भजगोविन्दम और भगवद्गीता के कई अध्याय पढ़ाये थे। जब मैने प्रवीण के उक्त आलेख को पढ़ा तो मुझे उनकी याद आ गयी। और यह भी याद आ गया कि कितने सत-पुरुषों का सम्पर्क मिल पाया है इस जीवन में।
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कल निशाचर जी ने टिप्पणी की कि उनकी नीलगाय वाली पोस्ट पर उनकी कई टिप्पणियां मिटा दी गयी हैं। मुझे भी अजीब लगा। मैने उनकी सभी टिप्पणियां पोस्ट में समाहित कर दीं। अब दो सम्भावनायें लगती हैं – किसी ने शरारतन मेरा पासवर्ड हैक किया हो। या फिर यह भी सम्भव है कि लम्बे साइज की टिप्पणियां ब्लॉगर गायब कर दे रहा हो। ब्लॉग पर जो टिप्पणियां गायब हैं, वे काफी बड़ी बड़ी थीं और जब मैने उन्हे टिप्पणी के रूप में पोस्ट करना चाहा तो एरर मैसेज मिला - Your HTML cannot be accepted: Must be at most 4,096 characters. शायद ब्लॉगर ने पहले पब्लिश कर दिया हो और बाद में नियम बदल दिया हो। बहरहाल जो भी हो, है रहस्यमय। और यह आपसी मनमुटाव बना सकता है।

महत्वपूर्ण यह है अपनी गति क्या होगी
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सभी क्षेत्रों में ट्वेन्टी ट्वेन्टी की मानसिकता घुसती जा रही है। सात दिनों में सौन्दर्य प्राप्त करने वालों के लिये गति का महत्व भी है और रोमांच भी। बहुत कुछ कह गए आप गहरे दार्शनिक भाव से।अपनी आदत के विपरीत एक लिन्क भेज रहा हूँ। हो सके तो एक नजर देख लें। http://manoramsuman.blogspot.com/2009/11/blog-post_17.htmlसादर श्यामल सुमन09955373288www.manoramsuman.blogspot.com
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गति भी कई प्रकार की होती हैं। हम अपने दौडने के उदाहरण से समझाते हैं जिसको जीवन के किसी भी क्षेत्र में Analogy से बिठाया जा सकता है।१) आसान गति: इस रफ़्तार पर दौडें कि आप गा न सकें लेकिन साथ दौडते साथी से प्रेमपूर्वक बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के वार्तालाप कर सकें। एक अच्छे धावक के लिये बोलते हैं कि उसकी ट्रेनिंग की कम से कम ६०% दूरी इसी गति पर दौडी जानी चाहिये। आम जीवन के हिसाब से देखें तो ये गति आपके जीवन का स्ट्रैस बस्टर होना चाहिये। जब भी कठिनाई महसूस हो, इस गति पर वापिस लौटें जिससे गतिमान रहते हुये समस्याओं का समाधान खोजा जा सके। २) मैराथन गति: कठिन, शुरू में आप केवल २-३ मील इस रफ़्तार पर दौडें लेकिन ६ महीने की ट्रेनिंग के बाद आप २६.२ मील इस रफ़्तार पर दौडें। आपकी ट्रेनिंग का १५% हिस्सा इस रफ़्तार पर हो। ध्यान दीजिये कि अक्सर किसी सफ़ल व्यक्ति को देखते ही हम उसके जैसा बनने की कामना में वैसा भी बनना शुरू कर देते हैं और १५% तक पंहुचते ही बुरी तरह हांफ़ने लगते हैं। अर्थात वो सफ़ल व्यक्ति उस मुकाम तक रातों रात नहीं पंहुचा है।३) VO2 Max गति: आप इसको अधिकतम १५ मिनट तक थामे रह सकते हैं। लेकिन जब कुछ न समझ में आये तो पागलों की तरह इस गति पर दौडकर और थक के चूर होने पर आदमी को अपनी क्षमताओं का सच्चा आभास होता है।शरीर से लेकर मानसिक क्षमताओं की भी एक सीमा होती है। भले ही कोई आपके प्रिय व्यक्ति को अपहरण करके बैठा हो और आप चाहें भी तो इस गति पर १ घंटा नहीं दौड सकते। अर्थात भले ही जीवन मरण का प्रश्न हो, आप अपनी productivity को एक सीमा तक की बढा सकते हैं। उसके बाद आप हांफ़ेगे ही।लेकिन सतत प्रयास/ट्रेनिंग से जो गति आज आपकी VO2 max गति है, २ साल के बाद आपकी मैराथन गति हो सकती है, बशर्ते आप अपने से ईमानदार रहें।जीवन में भी उद्देश्य रातों रात सफ़ल होने का नहीं बल्कि श्रमपूर्वक धीरे धीरे आगे बढने का होना चाहिये।
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गति और स्थिरता के बारे में अच्छा विश्लेषण करनेवाला आलेख है यह .. पर जीवन तो संयोग और दुर्योग का ही नाम है .. अपनी गति के कारण ही कोई ताज भी पहनता है तो कोई मौत को भी गले लगाता है !!
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गति तो सर्वत्र है, ठहराव में भी है। गति के अनेक आयाम हो सकते हैं। पूर्णता की ओर बढ़ने के लिए गति का सभी आयामों में होना आवश्यक है। जब गति एक आयामी होती है तो उस की तीव्रता महसूस होती है। लगता है हम दूसरे-दूसरे आयामों को त्याग रहे हैं। तब उन की ओर ध्यान देने की आवश्यकता होती है। वहाँ गति होने लगती है तो पहले स्थान पर ठहराव दिखाई पड़ता है। बिना गति के तो जीवन संभव नहीं है। गति तो स्थूल दिखाई देने वाले पदार्थों में भी होती है। टिप्पणी टिप्पणी ही होनी चाहिए, पोस्ट नहीं।
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वही स्थिरता शान्ति भी देती है। उस शान्ति में जीवन की भागदौड़ से दूर हम अपने आप को ढूढ़ निकालते हैं जो कि सभी खोजों से अधिक महत्वपूर्ण है।ज्यादातर एक मंजिल पर पहुँचने के बाद या उम्र का एक लम्बा सफ़र तय करने वाले ही गति की स्थिरता के बारे में सोचते हैं …उससे पहले तो वही अकुलाहट …जल्दी से जल्दी सब पा जाने की छटपटाहट …!!
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"मुझे तो जीवन के महत्वपूर्ण निर्णयों के बारे में विचार घंटों चुपचाप और एकान्त बैठने के बाद आये हैं रुककर सुस्ताने की कला हमें सीखनी पड़ेगी।"मुझ जैसों के लिए खासा महत्वपूर्ण सूत्र दे दिया आपने प्रवीण जी..!!!Hasten Slowlyभी नहीं भूलेगा अब मुझे..!
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संवेदनशील रचना। बधाई।
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गति मे रोमांत के साथ जीवन भी है।यह शाश्वत सत्य है।
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प्रकृति के सानिध्य में रहने वालों को गति सदैव भयावह लगती है क्योंकि प्रकृति में गति आने का अर्थ है कुछ न कुछ विनाश।-जय हो!!रुककर सुस्ताने की कला हमें सीखनी पड़ेगी।-सत्य वचन!! मेरा विश्वास सुदृढ़ हुआ!!-बेहतरीन पोस्ट!!
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