मसिजीवी का कमेण्ट महत्वपूर्ण है – टिप्पणी इस अर्थव्यवस्था की एक ओवरवैल्यूड कोमोडिटी हो गई है… कुछ करेक्शन होना चाहिए! ..नही?
मैं उससे टेक-ऑफ करना चाहूंगा। शब्द ब्लॉगिंग-व्यवस्था में ओवर वैल्यूड कमॉडिटी है। इसका करेक्शन ही नहीं, बबल-बर्स्ट होना चाहिये। लोग शब्दों से सार्थक ऊर्जा नहीं पा रहे। लोग उनसे गेम खेल रहे हैं। उद्देश्यहीन सॉलीटायर छाप गेम!
शब्द इन-जनरल, लिटरेचर आई.एन.सी. की इक्विटी हैं। लिहाजा वे हक जमाते हैं कि ब्लॉगिंग साहित्य की कॉन्क्यूबाइन है। साहित्य के इतर भी इण्टेलेक्चुअल हैं। वे भी इसे अपनी जागीर समझते हैं। पर मेरे नुक्कड़ का धोबी भी इण्टरनेट पर अपनी फोटो देखता है। कल वह ब्लॉग बनायेगा तो क्या जयशंकर प्रसाद से प्रेरणा ले कर सम्प्रेषण करेगा?! हू केयर्स फॉर द ब्लडी शब्द सर! पर जहां कम्यूनिकेशन – सम्प्रेषण की चलनी चाहिये, वहां शब्द की चल रही है। जिसने केल्क्युलस के समीकरण के दोनो बाजू बैलेंस करने में समय गंवाया, वह भकुआ है!
और शब्द भी कहता है कि मेरी गंगोत्री फलानी डिक्शनरी में है। अगर तुम कुछ और कम्यूनिकेट करते हो तो तुम एलीट नही, प्लेबियन (Plebeian – जनता क्लास) हो! पोस्टों में, टिप्पणियों में संस्कृतनिष्ठ हिन्दी या सिरखुजाऊ उर्दू का आतंक है। मंघूमल-झाऊमल कम्यूनिकेशन्स कम्पनी तो इस शेयर बाजार में लिस्ट ही न हो पा रही!
खैर, जो सुधीजन प्रिण्ट से सीधे ब्लॉगिंग में टेक-ऑफ कर एवरेस्ट फतेह की बात सोचते हैं; वे जरा सोचें कि बहुत बुद्धिमत्ता ठेलने का माध्यम नहीं है यह। उसके लिये तो शेल्फ/अलमारी गंजी पड़ी है किताबों से। कई कालजयी पुस्तकों की तो बाइण्डिंग भी नहीं चरचराई है। शब्द उनमें सजाने की चीज है।
ब्लॉगिंग में तो शब्द ओवर वैल्यूड कमॉडिटी है। यहां तो सबसे बेहतर है आदित्य के फोटो या वीडियो। कि नहीं?!
और नत्तू पांड़े का गाना –
घुंघूं मैंया/बाला गोसैंयां/खनत खनत एक कौड़ी पावा/ऊ कौड़ी गंगा बहावा/गंगामाई बालू दिहिन/ऊ बालू भुंजवा के दिहा/भुंजवा बेचारा दाना देहेस/ऊ दाना घसियरवा के दिहा/घसियरवा बेचारा घास दिहेस/ऊ घसिया गैया खिलावा/गैया बेचारी दूध देहेस/ऊ दुधवा क खीर बनावा/सब केउ खायेन, सब केउ खायेन/धो तो धो तो धोंय!
(श्रम का अर्थशास्त्र – खनने से कौड़ी मिली, उससे रेत, रेत से दाना, दाना से घास, घास से दूध, दूध से खीर, सबने खाई! नत्तू सीखे यह मेहनत की श्रृंखला!)
सतीश पंचम जी ने लम्बी टिप्पणी ठेली है। पता नहीं, ब्लॉगर रिजेक्ट न कर दे। लिहाजा पोस्ट में ही समाहित कर देता हूं –
इस बात पर तो मैं भी सहमत हूँ कि बहुत बुद्धिमत्ता ठेलने का यह माध्यम नहीं है। उसके लिये तमाम अन्य माध्यम भी हैं। लेकिन जब विषय विशेष से संबंधित ब्लॉग हो जैसे कि स्कूली या यूनिवर्सिटियो से संबंधित जहां की वाद-विवाद आदि के अनुरूप माहौल चाहिये तो उन पर Intellectual writing जरूरी है लेकिन अभी ये दूर की कौडी है।
********************लिजिये, आपने अपने नुक्कड के जिस धोबी का जिक्र किया है, उसी के ब्लॉग से अभी अभी होकर आ रहा हूँ, लिखा है –
Day 1 कल बारह नंबर वाले के पैंट से कुछ अवैध चीज मिली थीं। मलिकाईन को वह चीज देने पर उसी चीज को लेकर उनके घर में महाभारत मच गया। इसके लिये मैं खुद को जिमदार मानते हुए ब्लॉगिंग की टंकी पर चढने जा रिया हूँ। मैं अब कपडे वहीं धोउंगा :)
Day 2 कल 14 नंबर वाले के यहां कोई मेम आईं थी, बता रही थीं की कोई गलोबल वारनिंग (Warming) का खतरा है। हमसे कहिस की ज्यादा प्रदूषण, धूंआ-धक्कड के कारण वर्षा में कमी हो जाएगी, सूखा पडेगा, लोग मरने लगेंगे, दुनिया डूब जाएगी। तब से हम अपने इस्त्री (प्रेस) की ओर टुकूर टुकूर ताक रहे हैं कि उसे गर्म होने के लिये कोयला जलायें कि नहीं…..सोचे थे कि बिजली वाला इस्त्री ले लूं लेकिन सुना है कि बिजली घर भी कोयले से चलता है।
Day 3 आज देखा गलोबल वारनिंग वाली मैडम हरे हरे गार्डन मै बैठ अपने कुत्ते को बिस्कुट खिला रहीं थी , बहुत जंच रहीं थी गलोबल वारनिंग मैडम कुत्ते को बिस्कुट खिलाते हुए। उनके जाने के बाद बिसकुट के खाली प्लास्टिक की पन्नीयां जिनमें कि कुत्ते के बिस्किट लाये गये थे….इधर गार्डन में बिखरे हुए थे। उन्हें उठा कर पढा तो वह कोई प्रचार पंपलेट था जिसमें बताया गया था कि पर्यावरण की सुरक्षा कैसे करें। हमारी धरती की हरियाली कैसे बचे। हम तो गलोबल वारनिंग मैडम पर फिदाईन होई गये हैं जो कि उठते बैठते, जागते सोते, यहां तक कि कुत्ते को बिस्कुट खिलाते बखत भी गलोबल वारनिंग के बारे में सोचती हैं :)
——————-टिप्पणी कुछ ज्यादा ही लंबी हो गई लगती है :)
सतीश पंचम

हमें तो पोस्ट में समाहित सतीश पंचम जी की टिप्पणी मजेदार लगी |
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देव !भाषा पर मैं त्रिलोचन इस कविता से बहुत कुछ सीखता हूँ/ सीखना चाहता हूँ ..'' भाषा की लहरों में जीवन की हलचल है ,ध्वनि में क्रिया भरी है और क्रिया में बल है | ''यह सिर्फ संयोग नहीं है कि यह ' हलचल ' , ''मानसिक हलचल '' में विद्यमान है ..अतः यहाँ भी सीखने की नीयत से ही आता हूँ , शब्दों के प्रयोग को मैंने आपसे बहुत सीखा है .. इसके लिये आभारी हूँ और रहूँगा भी ..हाँ , यदा-कदा सवालों से घिरता हूँ तो विनम्र ( यद्यपि इसका फैसला तो औरों के हक़ में है , फिर भी .. ) जिज्ञासा प्रकट कर ही देता हूँ , वह सवाल बन जाये तो मुझे बुरा सा नहीं लगता , जानने की कीमत पर ! और किस ब्लॉग पर अपनी जिज्ञासाएँ रखूं ! नादान हूँ , इसलिए कहता रहता हूँ — ''छमिहहिं सज्जन मोरि ढिठाई ''अरे , नत्तू पांडे का गाना तो खोपड़ी में घुस गया .. अवधी प्रेमी को और क्या चाहिए ..अब बताइये ऐसा साहित्य मिलेगा कहीं और ..
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बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है।
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चर्चा-प्रतिचर्चा वाली पोस्ट हो या टिप्पणी, हमें तो तमाम बातें सीखने को मिलती हैं, पढ़ने को मिलती हैं.
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मेरे विचार से अभिव्यक्ति महत्वपूर्ण है शब्द नहीं।
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आपकी पोस्ट पढ़कर वो दिन याद आए जब, लड़कपन में, किसी को अंग्रेजी भाषा से आतंकित करने के लिए Thesaurus का प्रयोग करते थे हम..
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हम भकुआ बने इस तमाम सोच रहे हैं कि कुछ अंग्रेजी शब्दों की हिंदी देखें कि ऐसे ही कह दें बहुत अच्छा है। फ़ोटो के बारे में कुछ कहते-कहते रुक गये।
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`साहित्य के इतर भी इण्टेलेक्चुअल हैं। वे भी इसे अपनी जागीर समझते हैं।'dont you think this is overvalued comment:)वैसे तथू पाण्डेय जी को किस साहित्यकार ने रचा- बढिया है जी:)
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रवि रतलामीजी की टिप्पणी -do- :)
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मसिजीवी ने जो बात कही है वो मार्के की है …ओर ब्लोगिंग के वर्तमान ह्रास को दर्शाती है …पर उसका आशय बहुत बड़ा है …हमारे यहाँ फार्मा इंडस्ट्री में एक चीज का बहुत प्रचलन है वो ये के के अपने मुताबिक पेजों की जीरोक्स कराकर उसको अपने फोल्डर पे चिपकाकर सरटीफायिड करना के फलां मेडिकल जर्नल में भी देखिये यही लिखा है …मीडिया भी वही कर रहा है …अपने हिस्से का सच उठाकर उसे अपने मुताबिक पेश करना….ब्लोगिंग में भी वही होने लगा है ……मुझे याद है पूजा की जिस पोस्ट ने मुझे उसके ब्लॉग पर खींचा था .वो था उसके आई पोड का फोटो ….जिसके नीचे लिखा था आई मिस यू …..that was one version of true bloging…. अब जिस आदमी ने आज तकग़ज़ल नहीं सुनी ….. वो मेहंदी हसन के जीवन-संस्मरण पढने क्यों उस ब्लॉग पे जाएगा जहां वे लिखे है .स्वाभाविक है ….पर इससे मेहंदी हसन का महत्त्व कम तो नहीं हो जाता …जिसने आज तक श्रेष्ट सिनेमा को चेरिश नहीं किया .वो सिनेमा को समय की बरबादी ही कहता है ….इस बार के नया ज्ञानोदय में गांधी जी किताब हिंद स्वराज पूरी छपी है … जिसके मुताबिक रेल इसलिए बंद की जानी चाहिए क्यूंकि वे बुरे लोगो ओर बीमारियों को इधर से उधर ले जाती है ..तो ..गांधी जी गांधी है इसलिए उनकी सब बाते सही नहीं हो जाती ….साहित्य मनुष्य को ओर बेहतर मनुष्य बनने में मदद करता है ……खैररविरतलामी जी की बात भी नोटिस करने लायक है ……वैसे, कई कालजयी ब्लॉग पोस्टों के लिंक भी क्लिकियाए नहीं गए होते हैं!?जैसे एक साहब ने भगत सिंह पर पूरी सामग्री जुटा कर ब्लॉग पे दी है ….वहां गिनती की तीन चार टिप्पणिया है …
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