चिठ्ठाचर्चा

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चिठ्ठाचर्चा डॉट फलाना : असली और मोस्ट हाइटेक! उत्कृष्टता की एक मात्र दावेदार दुकान!!

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

54 thoughts on “चिठ्ठाचर्चा

  1. देव !नमस्ते ..कल गोविन्दपुरी में गंगा के मैदान पर बच्चों का क्रिकेट देख रहा था , गंगा के क्रोड में !बरबस आपकी याद आ रही थी और पोस्टें भी !.'चिट्ठाचर्चा' और 'दुकान' दोनों पर सोच रहा हूँ ,,, आभार …

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  2. एक साथ छ्ह ठो डोमेन ले लिये। बधाई। कित्ते में पड़े? अब इनकी नीलामी कब करेंगे? सीधे नीलामी करेंगे या पहले विस्फ़ोट करेंगे! प्रायोजक खोजेंगे?

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  3. अगर किसी को चिट्ठाचर्चा पक्षपाती लगती है तो उसमें शामिल हो कर चर्चा करने से किसने रोका है? बात यह है कि चर्चा में मेहनत करूँ तो सार्वजनिक मंच के लिए क्यों करूँ? अपना नया चोका बना कर न करूँ?

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  4. आदरणीय जाकिर अली रजनीश जी ;आपकी बात से एक हद तक सहमत, मगर क्या यह भी एक तरफ़ा नहीं है ? जो कुछ वे चिठ्ठाचर्चाकार अपनी चर्चा में लिखते है या पकड़ते है, हमें कौन वाध्य करता है यह मानने के लिए कि वही श्रेष्ट रचनाये है ब्लॉग पर ? अभूत सी फालतू बाते यहाँ इस ब्लॉग जगत के ब्लोगों पर देखने को मिलती है जिन्हें हम नजरंदाज करते है, वहां भी तो हम ऐसा कर सकते है ?

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  5. 'डोमेन ले, डोमेन दे' प्रकरण पर तंज देती पोस्ट। डोर को थोडा और ढील देकर पतंग को सर्रर से खींचना था, आपने तो उसे कन्नी बांधकर एक बार हवा में लहराया और छोड दिया…..ये तो पतंग उडाना न हुआ :-) अब आप पूछ रहे हैं कि पतंग उडाउं या न उडाउं, बडा डर लगता है :) तो मेरा सुझाव है कि चरखी पकडे रहने से अच्छा है कि पतंग उडाया जाय। उडेगी तो लोग देखेंगे, कटेगी तो लोग दौडेंगे और जो न दौडे कि हम क्या कोई गये गुजरे हैं जो एक पतंग के लिये दौडेंगे तो यकीं मानिये कि वो पोस्ट लिखेंगे :) इस 'डोमेन ले, डोमेन दे' मामले ने तो बेमतलब का विवाद सा खडा किया है। मेरी नजर में तो ब्लॉगजगत का एक और अप्रिय विवाद है ये।

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