आत्म-अधिक हो प्यारे तुम, आँखों के दो तारे तुम । रात शयन से प्रात वचन तक, सपनों, तानों-बानों में, सीख सीख कर क्या भर लाते विस्तृत बुद्धि वितानों में, नहीं कहीं भी यह लगता है, मन सोता या खोता है, निशायन्त तुम जो भी पाते, दिनभर चित्रित होता है, कृत्य तुम्हारे, सूची लम्बी, जानो उपक्रमContinue reading “आँखों के दो तारे तुम”