अभिव्यक्ति का स्फोट

DSC02134सांझ घिर आई है। पीपल पर तरह तरह की चिड़ियां अपनी अपनी आवाज में बोल रही हैं। जहां बैठती हैं तो कुछ समय बाद वह जगह पसन्द न आने पर फुदक कर इधर उधर बैठती हैं। कुछ एक पेड़ से उड़ कर दूसरे पर बैठने चली जाती हैं।

क्या बोल रहीं हैं वे?! जो न समझ पाये वह (मेरे जैसा) तो इसे अभिव्यक्ति का (वि)स्फोट ही कहेगा। बहुत कुछ इण्टरनेट जैसा। ब्लॉग – फीड रीडर – फेसबुक – ट्विटर – बज़ – साधू – महन्त – ठेलक – हेन – तेन! रात होने पर पक्षी शान्त हो जाते हैं। पर यहां तो चलती रहती है अभिव्यक्ति।

फलाने कहते हैं कि इसमें अस्सी परसेण्ट कूड़ा है। हम भी कह देते हैं अस्सी परसेण्ट कूड़ा है। पर क्या वाकई? जित्तू की दुकान पर समोसा गटकते लड़के पारिवारिक सम्बन्धों की गालियों की आत्मीयता के साथ जो कहते हैं, वह जबरदस्त स्टिंक करता कचरा भी होगा और नायाब अभिव्यक्ति भी। अभिव्यक्ति क्या सभ्य-साभ्रान्त-भद्र-एलीट की भाषाई एलिगेंस का नाम है या ठेल ठाल कर मतलब समझा देने का?

एक बात और। लोग इतना अभिव्यक्त क्यों कर रहे हैं इण्टरनेट पर। क्या यह है कि अपने परिवेश में उन्हे बोलने के अवसर नहीं मिलते? क्या अड्डा या पनघट के विकल्प शून्य हो गये हैं। आपस में मिलना, चहमेंगोईयां, प्रवचन, कुकरहाव, जूतमपैजार क्या कम हो गया है? लोग पजा गये हैं धरती पर और सब मुंह पर टेप लगाये हैं? ऐसा तो नहीं है!

मैं तो बहुत प्रसन्न होऊं, जब मेरा मोबाइल, फोन, दफ्तर की मीटिंगें और कॉन्फ्रेंस आदि बन्द हो जायें – कम से कम कुछ दिनों के लिये। यह विशफुल थिंकिंग दशकों से अनफुलफिल्ड चल रही है। वह अगर फुलफिल हो जाये और रचनात्मकता के अन्य क्षेत्र मिलें तो शायद यह ब्लॉग-स्लॉग का चार्म कम हो। शायद अपनी सफलता के क्षेत्र का सामान्य ओवर-अभिव्यक्ति का जो हाई-वे है, उससे इतर आदमी अपनी पगडण्डी बना चलना चाहता है। पर शायद ही – निश्चित नहीं कह सकता।

यह स्फोट समझ नहीं आता। पता नहीं समझशास्त्री क्या कहते हैं इस बारे में!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

33 thoughts on “अभिव्यक्ति का स्फोट

  1. मैं तो बहुत प्रसन्न होऊं, जब मेरा मोबाइल, फोन, दफ्तर की मीटिंगें और कॉन्फ्रेंस आदि बन्द हो जायेंसत्य वचन! ठलुआई का अलग ही आनंद है.

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  2. आजकल आपके ब्लौग में लगाये जा रहे चित्रों के बारे में कहना था. ये पूरे ब्लर दिखाई देते हैं जब तक इनपर माउस पॉइंटर नहीं ले जाएँ. खुली-खुली पोस्ट में इनका ब्लर दिखना सुहाता नहीं.क्या कारण है इसका?

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  3. अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बनता जा रहा है अंतर्जाल |मुझे तो लगता है शाम ७ब्जे से रात दस बजे तक बिजली ही चली जाय|तो घर में नये नये व्यंजन बनाने कि विधिया तो आदान प्रदान कर लेगी घर से बाहर निकलकर हम लोग ,कम से कम षड्यंत्रों के रचने कि क्लास में तो नहीं बैठना पड़ेगा |कही मेरे अभिव्यक्ति ब्लॉग पर तो नहीं है ये आपकी पोस्ट ?हाहाहा ..

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  4. देव ,@ क्या बोल रहीं हैं वे?——— यही तो रहस्य है , अबूझ और बूझनीय दोनों !@ अभिव्यक्ति क्या सभ्य-साभ्रान्त-भद्र-एलीट की भाषाई एलिगेंस का नाम है या ठेल ठाल कर मतलब समझा देने का?——— कौन कहता है कि कुरूपता(?) का सौन्दर्य नहीं होता ! '' जेहि मुख देखा तेहि हंसा '' वाले जायसी को लीजिये !काशी नाथ सिंह के असी घाट का वर्णन भी तो कुछ सच ही कहता है , कोई देखे चाहे न देखे !@ यह स्फोट समझ नहीं आता।'' जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगाकुरेदते हो जो अब राख, जुस्तुजू क्या है | '' ( ग़ालिब )…… सबको पता है कि यह राख ही कुरेद रहा है पर वह ऐसा न करे तो क्या करे !जाने कौन कुदरती जुस्तजू है जिसे ले कर पिला रहता है ! .. और यह सवाल बार बार उठता है , और कह लीजिये जवाब भी — ''हर एक बात पे कहते हो तुम के 'तू क्या है ?तुम ही कहो के यह अंदाज़-ए-गुफ्तगू क्या है ?'' ( ग़ालिब )

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  5. सुबह से दो बार टिप्पणी लिखने की सोची, लेकिन समझ ही नहीं आया कि क्या लिखूं। कम्बख्त अभिव्यक्तियां भी कभी कभी गच्चा देने लगती है :)

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  6. अभिव्यक्ति क्या सभ्य-साभ्रान्त-भद्र-एलीट की भाषाई एलिगेंस का नाम है या ठेल ठाल कर मतलब समझा देने का?..इसकी व्याख्या तो तो काफी दुष्कर है सर जी.

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  7. अभिव्यक्ति तो कर ही रहे हैं लोग..वैसे तो हमरे हियाँ की गोरी पनघट पर मिलती नहीं, ई लोग जाड़ा में घट होतीं हैं, नज़रे नहीं आतीं और गर्मी में घाट पर होती हैं इसीलिए …ई ऑप्शन तो हइये नहीं है हमरे लिए….यह कमबखत पनघट हमारे यहां है ही नही जी घर मै नल लगा है . लेकिन यहां गोरिया तो गले पडती है खुब चाहे जाडा हो या गर्मी जी

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  8. इसमें तो कोई शक नहीं,अभिव्यक्ति के माध्यम कम से कमतर होते जा रहें हैं. सब लोग सिमटते जा रहें हैं, उसपर यह ब्लॉग एक बढ़िया ऑप्शन लेकर आया है. कुछ सृजनात्मक लेखन भी हो जाता है,क्यूंकि पढनेवाले मिल जाते हैं.

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