भीष्म का अभिशाप यह था कि उन्होने जिस कलह से कुल को बचाने के लिये अपने सुखों की बलि देते हुये भीष्म प्रतिज्ञा ली, उसी कुल के संहार महाभारत के प्रथम सेनानायक बने। जिस कुल की कलह कम करने के लिये अपना मुँह नहीं खोले, उसी कुल का पूर्ण विनाश युद्धक्षेत्र में लेटे हुये देखे। इस विषय पर अध्याय लिखे जा सकते हैं कि भीष्म का कितना दोष था। मन पर मानता नहीं है कि कोई बुजुर्ग जो श्रेष्ठ था, वह उस समय भी मौन क्यों साधे रहा जब सबके नेत्र उनकी ओर टिके थे। भविष्य के किस कोने से यह घटना बिना उत्तर दिये निकल जाने दी जायेगी?
देश के साथ भी यही हो रहा है। दुर्योधनों की ईर्ष्यायें चहुँ ओर छिटक छिटक विनाशोन्मुख हैं, समाज के भीष्म अपनी व्यक्तिगत निष्ठायें समेटे बैठे हैं। जिनकी वाणी में ओज है, वे भविष्य के संकोच में बैठे हैं।
हम सबको एक दिन भीष्म का दायित्व निभाना है। जब पीढ़ियाँ हमारा मौन ऐसे विषयों पर देखेंगी, जहाँ पर बोलना अनिवार्य था, कोसे जाने के अतिरिक्त और क्या निष्कर्ष होगा हमारा। यह उद्गार व्यक्तिगत नहीं, सार्वजनिक हैं और अपने भविष्य के दायित्वों की कठिन प्रारूप सज्जा है। क्रोध था, व्यक्त हुआ, पर यदि यह अगला महाभारत बचा सके तो यह भी सात्विक माँनूगा मैं।
भीष्म उठ निर्णय सुनाओ (03-04-10)
द्रौपदी के चीर की तुम चीख सुनते क्यों नहीं,
विदुर की तुम न्यायसंगत सीख सुनते क्यों नहीं,
पाण्डवों का धर्मसंकट, जब मुखर होकर बह रहा,
यह तुम्हारा कुल कराहे, घाव गहरे सह रहा,
धर्म की कोई अघोषित व्यंजना मत बुदबुदाओ,
भीष्म उठ निर्णय सुनाओ।
राज्य पर निष्ठा तुम्हारी, ध्येय दुर्योधन नहीं,
सत्य का उद्घोष ही व्रत , और प्रायोजन नहीं,,
राज्य से बढ़ व्यक्ति रक्षा, कौन तुमसे क्या कहे,
अंध बन क्यों बुद्धि बैठी, संग अंधों यदि रहे,
व्यर्थ की अनुशीलना में आत्म अपना मत तपाओ,
भीष्म उठ निर्णय सुनाओ।
हर समय खटका सभी को, यूँ तुम्हारा मौन रहना,
वेदना की पूर्णता हो और तुम्हारा कुछ न कहना,
कौन सा तुम लौह पाले इस हृदय में जी रहे,
किस विरह का विष निरन्तर साधनारत पी रहे,
मर्म जो कौरव न समझे, मानसिक क्रन्दन बताओ,
भीष्म उठ निर्णय सुनाओ।
महाभारत के समर का आदि तुम आरोह तुम,
और अपनी ही बतायी मृत्यु के अवरोह तुम,
भीष्म ली तुमने प्रतिज्ञा, भीष्मसम मरना चुना,
व्यक्तिगत कुछ भी नहीं तो क्यों जटिल जीवन बुना,
चुप रहे क्यों, चाहते जब लोग भीषणता दिखाओ,
भीष्म उठ निर्णय सुनाओ।
ध्वंस की रचना समेटे तुम प्रथम सेनाप्रमुख,
कृष्ण को भी शस्त्र धर लेने का तुमने दिया दुख,
कौन तुमको टाल सकता, थे तुम्हीं सबसे बड़े,
ईर्ष्यायें रुद्ध होती, बीच यदि रहते खड़े,
सृजन हो फिर नया भारत, व्यास को फिर से बुलाओ,
भीष्म उठ निर्णय सुनाओ।

भीष्म उठ निर्णय सुनाओ।कविता गूँजती है देर तक अच्छी कविता
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from the poem 'The Second Coming' of W. B. Yeats:-Things fall apart; the centre cannot hold;Mere anarchy is loosed upon the world,The blood-dimmed tide is loosed, and everywhereThe ceremony of innocence is drowned;The best lack all conviction, while the worstAre full of passionate intensity.
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शिव जी का आश्चर्य सहज /वाजिब है -बहुत ही जबरदस्त कविता ,धर्म इतिहास का युगबोध लिए हुए प्रशंसनीय साहित्यिक शिल्प की कालजयी रचना
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बहुत ही बढ़िया कविता. प्रवीण जी की लेखन-शैली, शब्दों का प्रयोग और कविता की बुनावट अद्भुत है. (मुझे इस बात पर आश्चर्य है कि अभी तक किसी ने कविता के बारे में कुछ नहीं कहा.)
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Dr. Mahesh Sinha (via e-mail)- जब चहुँ ओर कौरव ही कौरव का राज हो तो क्या कहें भीष्म , भीष्म हैं भी क्या
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भीष्म तब भी चुप थे और अब भी चुप हैं। लोहा तो अर्जुनों और भीमों को ही लेना होगा।
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आप कुछ हटकर है बंधुवर।ध्वंस की रचना समेटे तुम प्रथम सेनाप्रमुख,कृष्ण को भी शस्त्र धर लेने का तुमने दिया दुख,कौन तुमको टाल सकता, थे तुम्हीं सबसे बड़े,ईर्ष्यायें रुद्ध होती, बीच यदि रहते खड़े,सृजन हो फिर नया भारत, व्यास को फिर से बुलाओ,भीष्म उठ निर्णय सुनाओ।
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अगर ब्लाग जगत में किसी के ऊपर भीष्म का चरित्र पूरी तरह निभता और फबता है तो वे अपने ज्ञानदत्त जी हैं आज यह आत्मालाप है भीष्म काभीष्म खुद को बार बार ललकार रहे हैं की तुम अब निर्णय सुना ही दो -देखिये कब से होते हैं मुखरित भीष्म ! प्रतीक्षा हमको भी बड़ी है ,विभीषिकाएँ मुह बाये खडी हैं!
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आज के भीष्म तो सस्ते चावल देकर, सब्सिडी आदि देकर अकर्मण्य बना दिये गए हैं । लो भई अपना पेट भरो, लूटमार मत करो बाकी तो सब कुछ खाने को हम हैंगे ।
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आज भी भीष्म चुपचाप सब कुछ देख रहे है. शायद यह आवाह्न काम आये.
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