नवान्न

वैशाखी बीत गई। नवान्न का इन्तजार है। नया गेहूं। बताते हैं अरहर अच्छी नहीं हुई। एक बेरियां की छीमी पुष्ट नहीं हुई कि फिर फूल आ गये। यूपोरियन अरहर तो चौपट, पता नहीं विदर्भ का क्या हाल है?

Gyan451-001 नवान्न के बोरे पर बैठी, सहेजती मेरी पत्नीजी और गेंहूं के दाने परखते पिताजीGyan449

ज्वान लोग गूगल बज़ पर ध्रुव कमाण्डो कॉमिक्स आदान-प्रदान कर रहे हैं और मेरे घर में इसी पर चर्चा होती है कि कित्ते भाव तक जायेगी रहर। कहां से खरीदें, कब खरीदें, कितना खरीदें?! रहर की भाव चर्चा में तो सारा सामाजिक विकास ठप्प हो रहा है। 

खैर गेहूं तो आ रहा है। कटका स्टेशन पर लद गया है पसीजड़ में। कित्ते बजे आती है? शाम पांच बजे रामबाग। अभी हंड़िया डांक रही है। लेट है। रामबाग से घर कैसे आयेगा? चार बोरा है। तीन कुन्तल। साल भर चल जायेगा।

मेरे पत्नीजी इधर उधर फोन कर रही हैं। उनके अनुसार मुझसे तो यह लॉजिस्टिक मैनेजमेण्ट हो नहीं सकता। कटका पर चार बोरे लदाना (सुरजवा अभी तो कर दे रहा है काम, पर अगली बार बिधायकी का चुनाव लड़ेगा तब थोड़े ही हाथ आयेगा!), इलाहाबाद सिटी स्टेशन पर उतरवाना (स्टेशन मास्टर साहब का फोनै नहीं लग रहा), फिर रोड वैहीकल का इन्तजाम रामबाग से शिवकुटी लने का (सिंह साहब संझा साढ़े चार बजे भी तान कर सो रहे हैं – जरूर दोपहर में कस के कढ़ी-भात चांप कर खाये हैं!)।

और हम अलग-थलगवादी नौकरशाह यह पोस्ट बना ले रहे हैं और एकान्त में सोच रहे हैं कि कौनो तरीके से चार बोरी गोहूं घर आये तो एक ठो फोटो खींच इस पर सटा कर कल के लिये पोस्ट पब्लिश करने छोड़ दें। बाकी, गेंहूं के गांव से शहर के माइग्रेशन पर कौन थीसिस लिखनी है! कौन सामन्त-समाज-साम्य-दलित-पूंजीवाद के कीड़े बीनने हैं गेंहू में से। अभी तो टटका नवान्न है। अभी तो उसमें पड़े भी न होंगे।

गेंहूं के चारों बोरे आये। घर भर में प्रसन्नता। मेरी पत्नीजी के खेत का गेंहूं है।

हम इतने प्रसन्न हो रहे हैं तो किसान जो मेहनत कर घर में नवान्न लाता होगा, उसकी खुशी का तो अंदाज लगाना कठिन है। तभी तो नये पिसान का गुलगुला-रोट-लपसी चढ़ता है देवी मैय्या को!


मुझे वर्डप्रेस पर इण्टरेक्टिव टिप्पणी ज्यादा बढ़िया लग रही है। आप इस पोस्ट पर वर्डप्रेस में टिप्पणी कर देखें!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

24 thoughts on “नवान्न

  1. किसान जो मेहनत कर घर में नवान्न लाता होगा, उसकी खुशी का तो अंदाज लगाना कठिन है।पर उसकी यह खुशी कितने पल की है. मेहनत ही तो उसका है बाकी नवान्न तो कोई और खाता है.

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  2. और हम अलग-थलगवादी नौकरशाह यह पोस्ट बना ले रहे हैं और एकान्त में सोच रहे हैं कि कौनो तरीके से चार बोरी गोहूं घर आये तो एक ठो फोटो खींच इस पर सटा कर कल के लिये पोस्ट पब्लिश करने छोड़ दें।True blogger.. Let me say.. :)कौन सामन्त-समाज-साम्य-दलित-पूंजीवाद के कीड़े बीनने हैं गेंहू में से। अभी तो टटका नवान्न है। अभी तो उसमें पड़े भी न होंगे।मज़ाक मे ही कही गयी लेकिन बहुत बडी बात..अच्छा रहर और अरहर सेम ही है न? हमारे वहा अरहर की दाल खायी जाती है..आप उसी की बात कर रहे है शायद..? :।

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  3. @ Zeal – रबी (वसन्त) और खरीफ (पतझड़) अरबी शब्द हैं। रबी की फसल होली के बाद ही कटनी प्रारम्भ होती है। वैशाखी तक नवान्न आता है। इस के बाद भी कटाई चलती है। खेती-बाड़ी वाले अशोक पाण्डेय बेहतर बता सकते हैं पोस्ट लिख कर। :)

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  4. लाजिस्टिक मनेज्मेनटवा कैसे हुआ भला -इसको गोल कर गए !…..( million dollar question )गुलगुला-रोट-लपसी- आप भी कहाँ कहाँ की याद जिंदा कर देते हैं……..( ummm…..i'm nostalgic now . Gulgule se google tak ta safar ! )@ Gyan ji-Somewhere i read that 'rabi' and 'kharif' crop are harvested around diwali and holi respectively !…Can you kindly throw some light on it ?

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  5. गुलगुला-रोट-लपसी- आप भी कहाँ कहाँ की याद जिंदा कर देते हैं. खैर, गेहूँ पहुँच गया तो बधाई. साल भर की फुरसत भई शिवकुटी में.

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  6. आपकी पोस्ट से पता चला कि नवान्न का समय हो चुका है, क्योंकि हम तो यहाँ केवल आटा ही खरीद पाते हैं, नवान्न के लिये तो सोच भी नहीं सकते हैं, हाँ हमारे घर पर भी शायद लेने की सोच रहे हों, पर यहाँ जगह की कमी और पत्नी के खेत न होना भी वजह हो सकते हैं :)

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  7. हाँ इन दिनों गेहूं कोठिला(ड्रम ) में रखवाय रही हैं मेरी मैया भी -कहती हैं की इस बार कम हुआ है -हर बार यही कहती हैं -खाईये लपसी गुलगुला -अकेलवें के बजाय कभी कभी बाट वूट के भी खाया करिए न ! गेहूं चिंतन बढियां है -आधुनिक सरोकारों से बढियां जोड़ा है और लाजिस्टिक मनेज्मेनटवा कैसे हुआ भला -इसको गोल कर गए !

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  8. किसान की मेहनत का अंदाजा लगाया जा सकता है …जब गमले में खिले फूल और सब्जियां इतनी खुशी प्रदान करती हैं तो किसान की प्रसन्नता का भी अंदाजा लगाया जा सकता है …!!

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