महानता से पगहा तुड़ा गंगा तट पर भागा। देखा कि तट के पास वाली मुख्य धारा में पानी और कम हो गया है। अब तो एक कुक्कुर भी आधा तैरता और आधा पैदल चलता पार कर टापू पर पंहुच गया। पानी कम होने के साथ किनारे छोडती गंगा माई की गंदगी और झलकने लगी।
आगे एक नाव पर कुछ लोग टापू से इस किनारे आते दीखने लगे। मेरे मोबाइल ने यह रिकार्ड किया –
तट पर आने के बाद सब्जी उगाने वाले नाव से उतार कर जमाने लगे अपनी बोरियां, गठरियां और झौव्वा-खांची।
इसी दौरान दो जवान शहरी आ पंहुचे उनसे तरबूज खरीदने। उन लोगों ने बताया कि तरबूज तो नहीं लाये हैं। पर एक जवान ने बताया कि यह है तो। जिसे वह तरबूज बता रहे थे, वह वास्तव में खरबूजा था। और उसके खुशीखुशी उन्होने तीस रुपये दिये। केवल गंगा किनारे यह अनुभव लेने से गदगद थे जवान लोग! कह रहे थे कि कम तो नहीं दिया दाम? अगर भारत में सभी ऐसे जवान खरीददार हो जायें तो मैं भी कछार में खेती करने लगूं!
आगे और दूर गया तो पाया कि गंगामाई मुख्य तट भी छोड़ रही थीं। लोग इस तट पर भी खेती करने लग गये थे। जहां देखो वहीं नेनुआ, ककड़ी, कोंहड़ा, लौकी, खरबूजा और तरबूज! सब ओर मड़ई, खांची, झौआ, नाव, ऊंट और पैदल गंगा पार करते बाल-जवान-महिलायें और कुकुर!
ऐसे में महानता गयी भाग बेबिन्द (बगटुट)!
गंगा किनारे सब्जी अगोरने को बनाई मड़ई –
ज्यादा ही चल लिया। वापसी में सांस फूल रही थी रेत में जूता घसीटते। पैर की एक उंगली में छाला भी पड़ गया। हां, वापसी में गाजर घास भी दिखी गंगा किनारे।
एक आदमी और कुछ औरतें नदी में हिल कर अपने अपने टोकरों में सब्जी लिये आ रहे थे। शाम घिर गई थी। लिहाजा चित्र धुंधला आया।
![]()
आपको लगता नहीं कि ब्लॉगिंग कितनी आसान चीज है!
यह पोस्ट मेरी हलचल नामक ब्लॉग पर भी उपलब्ध है।


खरबुज को तरबुज नई पीढी को सलाम .
LikeLike
छोरा गंगा किनारे वाला!
LikeLike
गंगा मैय्या गर्मियों में किनारा छोड़ दूर चली जाती है. तभी तो आपलोगों को खूब सब्जियां मिल पातीं हैं.
LikeLike
आप महान हैं जो महानता से पल्ला छुड़ाकर निकल लिये। लेकिन महानता बहुत चकड़ चीज है। आपका पीछा करती रहेगी। जब मौका पायेगी आपको जकड़ लेगी और पगहे में कसकर अपने थान पर खड़ा कर देगी।
LikeLike
@ गिरिजेश > ये बताइए गाजर घास को उखाड़ फेंके कि नहीं?नहीं, हंफनी छूट रही थी! और पौधे भी ज्यादा ही थे! :(
LikeLike
ये बताइए गाजर घास को उखाड़ फेंके कि नहीं?समस्या यही है कि जवान लोग अब खेती में कम ध्यान देने लगे हैं और बुजुर्ग लोग भाव का ध्यान रखने लगे हैं – बिकास कइसे हो !
LikeLike
@ दिनेश राय द्विवेदी ,यह ( ज्ञान भाई ) गंगा किनारे बैठ के ब्लागिंग करते हैं , बीच में आओ तो पता चले …:-)
LikeLike
हां…इतनी भी आसान नहीं …
LikeLike
वापसी में सांस फूल रही थी रेत में जूता घसीटते। पैर की एक उंगली में छाला भी पड़ गया।इतनी भी आसान नहीं।
LikeLike
पानी कम होने के साथ किनारे छोडती गंगा माई की गंदगी और झलकने लगी। पता नहीं यह गन्दगी किसकी है हमारी या गंगा माई की. और फिर गंदगी है तो झलकेगी ही.
LikeLike