महानता से छूटा तो गंगा को भागा

महानता से पगहा तुड़ा गंगा तट पर भागा। देखा कि तट के पास वाली मुख्य धारा में पानी और कम हो गया है। अब तो एक कुक्कुर भी आधा तैरता और आधा पैदल चलता पार कर टापू पर पंहुच गया। पानी कम होने के साथ किनारे छोडती गंगा माई की गंदगी और झलकने लगी।

Gyan472 (Small)

आगे एक नाव पर कुछ लोग टापू से इस किनारे आते दीखने लगे। मेरे मोबाइल ने यह रिकार्ड किया –

तट पर आने के बाद सब्जी उगाने वाले नाव से उतार कर जमाने लगे अपनी बोरियां, गठरियां और झौव्वा-खांची।

Gyan475 (Small) इसी दौरान दो जवान शहरी आ पंहुचे उनसे तरबूज खरीदने। उन लोगों ने बताया कि तरबूज तो नहीं लाये हैं। पर एक जवान ने बताया कि यह है तो। जिसे वह तरबूज बता रहे थे, वह वास्तव में खरबूजा था। और उसके खुशीखुशी उन्होने तीस रुपये दिये। केवल गंगा किनारे यह अनुभव लेने से गदगद थे जवान लोग! कह रहे थे कि कम तो नहीं दिया दाम? अगर भारत में सभी ऐसे जवान खरीददार हो जायें तो मैं भी कछार में खेती करने लगूं!

Gyan481 (Small) आगे और दूर गया तो पाया कि गंगामाई मुख्य तट भी छोड़ रही थीं। लोग इस तट पर भी खेती करने लग गये थे। जहां देखो वहीं नेनुआ, ककड़ी, कोंहड़ा, लौकी, खरबूजा और तरबूज! सब ओर मड़ई, खांची, झौआ, नाव, ऊंट और पैदल गंगा पार करते बाल-जवान-महिलायें और कुकुर!

ऐसे में महानता गयी भाग बेबिन्द (बगटुट)!

Gyan485 (Small) गंगा किनारे सब्जी अगोरने को बनाई मड़ई –

Gyan484 (Small)ज्यादा ही चल लिया। वापसी में सांस फूल रही थी रेत में जूता घसीटते। पैर की एक उंगली में छाला भी पड़ गया। हां, वापसी में गाजर घास भी दिखी गंगा किनारे।

Gyan483 (Small)एक आदमी और कुछ औरतें नदी में हिल कर अपने अपने टोकरों में सब्जी लिये आ रहे थे। शाम घिर गई थी। लिहाजा चित्र धुंधला आया।

Gyan487 (Small)Gyan488 (Small) आपको लगता नहीं कि ब्लॉगिंग कितनी आसान चीज है!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

42 thoughts on “महानता से छूटा तो गंगा को भागा

  1. आपकी ये पोस्ट हमने बज़ पर पढ़ ली थी और वहीं टिप्पणी भी कर दी थी. सारांश ये है कि सरकार जब हदबंदी और चकबंदी जैसे सभी उपाय करके भी गरीबों को ज़मीन नहीं दिला पायी तो ये काम गंगा माई ने सहज ही कर दिया. लोगों ने उन पर तरह-तरह के अत्याचार किये, लेकिन फिर भी उनकी महिमा देखिये… ज़मीन छोड़कर गरीब-गुरबों की खेती के लिये जगह उपलब्ध करा रही हैं. कहीं-कहीं अतिक्रमण भी हुआ है, पर इलाहाबाद में गोविन्दपुर में मैंने भी बहुत करीब से इसी तरह गंगातट पर खेती होते देखी है.
    ब्लॉगिंग निश्चित ही बहुत आसान काम है…सहजता से जो बात कही जाती है, वह अधिक असरदार होती है… आस-पड़ोस में आपको ऐसी बहुत सी घटनायें मिल जाती हैं, जो कहीं न कहीं किसी बड़ी समस्या से जुड़ी होती हैं… कुछ लोग ऐसे मिल जाते हैं, जिनके अन्दर ऐसे गुण मिल जाते हैं, जिनकी चर्चा शास्त्रों में की गयी होती है… ऐसे लोगों से बहुत कुछ सीखने को मिल जाता है…और ये सब हम घर बैठकर अपने मित्रों से शेयर कर सकते हैं.

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    1. जो सहज है, आसान है, निसर्ग के समीप है, वही प्रभावी है!
      दुरुह पाणित्यपूर्ण तो अपनी महिमा के बन्धन में जकड़ा रह जाता है! :)

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  2. यह वर्डप्रेस पर मामला जम गया लगता है !
    अब दोनों ब्लॉग्स की टिप्पणियाँ इकट्ठी मिल जातीं तो ठीक रहता ! वहाँ डिस्कस ने निराश किया, नहीं तो वहीं यह जुगाड़ हो जाता ! कुछ और सोचिए न ऐसा उधर के लिए !

    गंगा माई का प्रभात-दर्शन हमें भी सुलभ है यहाँ इस ब्लॉग पर ! आभार ।

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    1. ब्लॉगस्पॉट टेम्प्लेट में परिवर्तन की सुविधा बेहतर देता है। देर सबेर वहां भी टिप्पणी की सुविधा में बदलाव की अपेक्षा की जा सकती है। इण्टरेक्टिव वेब ३ तकनीकी की जरूरत है यह।
      आगे आगे देखते हैं क्या होता है! :)

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  3. आते आते देर हुई यहाँ , पर जानकारी बढ़ जाती है देर से आने पर !( बरास्ते टीप )
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    मन में हो रहा था कल से ही ‘चलो रे मन गंगा यमुना तीर’ , यहाँ आया और सुकून मिला !
    चित्र-वीथी में खूब अंख-भिन्ड़ाई की , फोटो बड़ी होती तो और अच्छा लगता !
    आपके पास की गंगा तब भी ठीक हैं पर दिल्ली की यमुना की स्थिति ‘बरनि न जाय’ !
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    सोचिये वे लोग तो ‘खर्बुज्झे’ बोलने पर कुछ बूझ ही नहीं पायेंगे – :)
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    आपको और चाची जी को विवाह – वर्षगाँठ की अनेकानेक बधाइयां !
    जिस ‘कटका’ स्थान का आपने जिक्र किया है अगर वह सुल्तानपुर वाला है तो
    वहाँ तक अपने घर से बाया साइकिल लम्बी यात्रा कर चुका हूँ ! क्या पता वही हो !

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    1. धन्यवाद अमरेन्द्र। यह कटका स्टेशन वाराणसी के पास इलाहाबाद-वाराणसी खण्ड पर भदोही जिला में है।
      जवान लोग – अपने अल्प ज्ञान के बावजूद बड़े शरीफ-भले लोग थे। नयी पीढ़ी ऐसी संवेदना सम्पन्न हो तो भारत का भला तय है!

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  4. जन्मदिवस की ढेरों बधाईयाँ एवं शुभकामनाएँ।

    बकिया यह सब आपकी पोस्ट में देखकर…सरल की बजाय यह लगने लगा है कि ब्लॉगिंग कितनी कठिन है. कितना सजग रहना होता है टहलते हुए भी. फिर वो पैर के छाले…. हिम्मत जबाब दे रही है हमारी तो .. :)

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    1. धन्यवाद।
      ब्लॉगिंग और गाना गाना तो आपके बायें हाथ का खेल है – अनूप शुक्ल ने कहीं कहा था (शायद)। :)

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  5. Happy Anniversary Sir !! :) Hope you get a ’Butter Scotch’ today :P

    हेडर और नयी थीम दोनो ही अच्छे लग रहे है… ये फ़ोटो उस सफ़ल गंगा सफ़ाई अभियान का ही है न ?

    @श्रीष – आपको भी धन्यवाद, वरना ज्ञान जी बचकर निकल जाते.. अभी ट्रीट मागने के चान्स तो बनते है :)

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    1. धन्यवाद! आज तो हलवा ही मिला! :)
      ओह, थीम तो यूं ही लगाई थी, वापस कर दी। :(

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  6. गंगा के तीर की इतनी सुन्दर सचित्र सैर करवाने का शुक्रिया.वैसे इतना आभास है कि चित्रों में ही यह ख़ूबसूरत लग रहा है…सामने देखने पर गंगा की ऐसी दशा दुखी कर देती है.

    आपको एवं रीता भाभी को वैवाहिक वर्षगाँठ की अनेकों बधाइयां .

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    1. पता नहीं! गंगा की दशा दुखी भी करती है, तो सुकून भी देती है – मां की तरह। खाली समय में वहां जाने का मन करता है।
      हां, बहुत धन्यवाद।

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  7. और भूला पहली बार में, इसलिए इस कृतज्ञता ज्ञापन को भी क्षमायाचना सहित अर्पित करता हूँ श्रीश पाठक जी को, जिन्होंने आपकी इस विवाह-वर्षगाँठ से अवगत कराया हमें। बहुत-बहुत आभार श्रीश जी आपको, समय से इस बात को प्रकाश में लाने के लिए।

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