प्रधान, पोखरा, ग्रीस और पुर्तगाल

मैं पिछले महीने में प्रधान जी से कई बार बात करने का यत्न कर चुका। हर बार पता चलता है कि पोखरा (तालाब) खुदा रहे हैं। लगता है नरेगा की स्कीम उनका बहुत समय ले ले रही है। सरकार बहुत खर्च कर रही है। पैसा कहीं से आ रहा होगा।

हर वैसी स्कीम जो कम से कम लागत जितना उत्पाद नहीं करती – और सारी सोशल स्कीमें ऐसी हैं – यह शंका मन में जगाती हैं। हमारे वर्तमान द्वारा हो रहा आर्थिक विकास या भविष्य की जेनरेशन को सरकाया गया कर्जा – कौन पेमेण्ट कर रहा है इन स्कीमों के लिये?

अभी शिक्षा के अधिकार की स्कीम चलने वाली है। सरकार और खर्च करेगी। उसका पैसा भी कहीं से आयेगा।

अखबार में पढ़ता हूं कि ग्रीस और पुर्तगाल में कुछ चक्कर हो गया है। सरकार के जारी बॉण्ड मिट्टी के भाव हो गये हैं। बिजनेस स्टेण्डर्ड की हेडलाइन है – "Markets offer slide show".सारे शेयर मार्केट इण्डेक्स ढीले हुये हैं। स्टेण्डर्ड और पूअर की रेटिंग ग्रीस के बारे में BBB+ से BB+ (जंक) हो गयी है। यह चेतावनी भी है कि सरकारी बॉण्ड का मूल्य ३०% बन सकता है। ग्रीस मिश्र और अजरबैजान सरीखा हो गया है बॉण्ड के मामले में!

ग्रीस और पुर्तगाल ने बॉण्ड जारी कर मिले पैसे को समाज के भले के लिये खर्च ही किया होगा।

Economix मैं न्यूयॉर्क टाइम्स के ब्लॉग Economix में यह पढ़ता हूं – Can Europe Save Itself? उसके अनुसार लगता है कि यूरोप की सरकारों ने आड़े सीधे तरीके से बॉण्ड जारी किये हैं कमर्शियल बेंकों के माध्यम से। अब लोन चुकाने में ग्रीस, पुर्तगाल, स्पेन आयरलैण्ड और इटली को मशक्कत करनी है।

प्रधान जी का पोखरा भी भारत को कुछ ऐसी दशा में तो नहीं ले जायेगा? यहां बॉण्ड तो जारी नहीं हुये। फिर भी हल्की कसमसाहट होती है मन में। हर वैसी स्कीम जो कम से कम लागत जितना उत्पाद नहीं करती – और सारी सोशल स्कीमें ऐसी हैं – यह शंका मन में जगाती हैं।  हमारे वर्तमान द्वारा हो रहा आर्थिक विकास या भविष्य की जेनरेशन को सरकाया गया कर्जा -  कौन पेमेण्ट कर रहा है इन स्कीमों के लिये?

कभी कभी लगता है कि इन्जीनियरी की बजाय अर्थशास्त्र पढ़े होते तो बेहतर समझ पाते!

विश्लेषक मान रहे हैं कि दुनिया भर के ग्रीस संकट का असर अभी और होगा। इसका सीधा असर देसी बाजारों पर पड़ता रहेगा। स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स ने मंगलवार को ग्रीस के ऋण की रेटिंग बहुत कम कर दी थी। इसके अलावा पुर्तगाल की रेटिंग में भी कमी कर दी गई।

एजेंसी ने बॉन्डधारकों से कहा कि अगर ग्रीस में कर्ज का पुनर्गठन किया जाता है तो उन्हें अपने आरंभिक निवेश का केवल 30 फीसदी वापस मिल पाएगा। यूरो 1999 में लागू हुआ था और उसके बाद से यह मुद्रा चलाने वाले किसी भी देश का निवेश ग्रेड पहली बार कम किया गया है।

~ यूनान के तूफान से बाज़ार हुए हलकान, बिजनेस स्टेण्डर्ड में।


यह पोस्ट मेरी हलचल नामक ब्लॉग पर भी उपलब्ध है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

10 thoughts on “प्रधान, पोखरा, ग्रीस और पुर्तगाल

  1. मनरेगा …….. मज़्दूरो को नाकारा बनाने वाली एक योजना . इस योजना मे गान्व के रोज़गार सेवक से लेकर बहुत ऊपरी अफ़सरो तक की आमदनी की गारन्टी है . मज़दूर मिल नही रहे खेती के लिये,गन्ने की खुदायी ,मैन्था की नराई , भुसे की उठवाइ बाकी है .

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  2. क्या ज्ञान जी इतने साल से रेल को रास्ता दिखा रहे हैं ये भी नहीं पता पैसा कहाँ से आयेगा .ये इस देश के अलालों को इनाम देकर दुबारा गुलाम बनाया जा रहा है . जिससे वो अगले चुनाव में अपनी बली खुद चढ़ा सकें.नेता का खाता वन वे रहता है वो अपनी जेब से कुछ नहीं देता .आज ही पढ़ा लालू 6वा वेतन आयोग माँग रहा है अपने और अपने बंधु बंधवों के लिए. 8000 वेतन और 1 लाख पेंशन (हर्जाना)क्योंकि महिला आरक्षण से नौकरी तो चली जाएगी .किस बात के पेंशन मिलती है इन चोट्टो को ?

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  3. कभी कभी लगता है कि इन्जीनियरी की बजाय अर्थशास्त्र पढ़े होते तो बेहतर समझ पाते! एक अर्थशास्त्र जो ऊपर बेठा है उस ने कोन सा किला फ़ता कर लिया जी.

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  4. स्कीम जो कम से कम लागत जितना उत्पाद नहीं करती – और सारी सोशल स्कीमें ऐसी हैं – यह शंका मन में जगाती हैं।मान्यवर यह है अर्थशास्त्र की बात को मुफ्तवादी/साम्यवादी/समाजवादी सोच वाले नहीं समझते. वेड़ा गर्ग होगा.

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  5. कभी कभी लगता है कि इन्जीनियरी की बजाय अर्थशास्त्र पढ़े होते तो बेहतर समझ पाते!अर्थशास्‍त्र पढे लिखों की समझ में भी नहीं आ रहा है कुछ .. योजनाओं से क्‍या होता है .. मजबूत व्‍यवस्‍था चाहिए !!

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  6. "सरकार और खर्च करेगी। उसका पैसा भी कहीं से आयेगा।"…. हमें अपना विकास तो दिखाई दे रहा है लेकिन जिस ब्याज के बारूदी पहाड़ पर हमारी अर्थव्यवस्था बैठी है वो निश्चित ही चिंता का विषय है… इसके लिए सरकार की नीतियों को दोषी मानें कि स्कीमों का दोहन करने वाली व्यवस्था को …

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  7. अकाल रहत कार्य और इस मनरेगा में जो कार्य हो रहे है वे कच्चे कार्य हो रहे है जैसे पोखर खुदवाना , कच्ची सड़कें बनवाना आदि , इनमे जमकर भ्रष्टाचार होता है , बहुत ही कम गांव के प्रधान होंगे जो इन स्कीमों में सही विकास कार्य करवा पाते हों |एक बार अकाल राहत कार्यों में हमारे गांव में मेट बने लड़के ने सख्ती कर दी कि जो यहाँ कार्य करने आएगा उसे पूरा कार्य करना पड़ेगा , इस पर सभी दलितों ने मिलकर कार्य का ही बहिष्कार कर दिया | उन्हें तो सिर्फ वहां आकर नाम लिखवाने की ही मजदूरी चाहिए थी | इन योजनाओं की हालत यह है कि गांवों में लोग कामचोर बन जा रहे है कोई भी मेहनत नहीं करना चाहता | जब कोई ऐसी स्कीम नहीं होती तब भी ये लोग मजदूरी करने नहीं जाते और प्रधान या पटवारी व ग्रामसेवक के आगे पीछे घूमते रहते है ये पता करने के लिए कि नयी स्कीम कब आ रही है |कुल मिलकर देश में इन स्कीमो के चलते निठल्लों की फ़ौज खड़ी हो रही है वहीँ कांग्रेस खुश है कि इन नरेगा की बदोलत उसका वोट बैंक बढ़ रहा है |जय हो भारतीय राजनीती व सरकारी प्रबंधन की |

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  8. "हर वैसी स्कीम जो कम से कम लागत जितना उत्पाद नहीं करती" निश्चित ही कई आशंकाए उत्पन्न करती है ..नरेगा नहीं मनरेगा ज्ञान जी ,यह हमारे गले की हड्डी बन गया है !

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