नीरज जाट जी, डॉ अरविन्द मिश्र जी व आशा जोगलेकर जी के यात्रा-वृत्तान्तों का प्रभाव, बच्चों की घर में ऊबने की अकुलाहट और रेलवे के मॉडल स्टेशन के निरीक्षण का उपक्रम मुझे तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले ले गये।
बंगलोर से 150 किमी रेलयात्रा पर है धर्मपुरी, वहाँ से 40 किमी की रोड यात्रा पर होगेनेक्कल है।
दिन में स्टेशन के निरीक्षण के बाद जब होगेनेक्कल पहुँचे तो मनोहर दृश्यों ने सारी थकान खींच ली। थोड़ी गर्मी थी लेकिन कावेरी नदी का शीतल जल और उस पर बने जलप्रपात से उठी फुहारें सूर्यदेव को मध्यम राग छेड़ने का संकेत दे रही थीं।
कटोरीनुमा नावें पहली बार देखीं थीं। बाँस की बनावट के ऊपर वाटरप्रूफ मोटे पॉलीथिन की दो परतें और उस पर बिटुमिना का गाढ़ा लेप। क्षमता 10 व्यक्तियों की, भार 25-30 किलो और मूल्य 1500 रु मात्र। ऐसी देशी तकनीक के आगे आधुनिक मोटरबोटें हाँफती दिखायी पड़ती हैं। बैठकर लगा कि राउण्डटेबल कॉन्फ्रेन्स में बैठे हैं। बच्चों के साथ मैं भी उत्साहित था।
पहले नदी के प्रवाह के साथ प्रपात के ऊपरी भाग पर पहुँचे। पूरे वेग से गिरता जल, फुहार बना उड़ रहा था, दूधिया और उन्मुक्त, अपने आनन्द में उत्साहित। हम लोग दृश्य देखने में मगन थे, इस बीच हमारे खेवैय्या जी नाँव उठाकर प्रपात के निचले भाग में पहुँच चुके थे। अब बारी थी नीचे से जल प्रपात को देखने की। हम बढ़े प्रवाह के विरुद्ध, भय और उत्साह दोनों थे। दोनों बच्चे पर आश्चर्य से मुँह फाड़े वह अनुपम सौन्दर्य निहारने में व्यस्त थे। बहुत निकट पहुँच इतना रोमांचित हो गये कि फोटो उतारना भूल गये।
दोनो ओर खड़ी चट्टानों के बीच जल प्रवाह के साथ लगभग आधा किमी चलने के बाद हम लोग रेत के टापू पहुँचे। वहाँ पर तेल मालिश की भी व्यवस्था थी पर गर्मी के कारण उस सुख से वंचित रहना पड़ा। कावेरी के जल आमन्त्रण पर अस्वीकार न कर पाये और बच्चों के साथ लगभग एक घंटे जलक्रीड़ा करते रहे। बच्चों की बाहर निकलने की इच्छा ही नहीं थी । कई बार खदेड़ने के बाद सफलता मिली, पर आनन्द आ गया।
वापस उसी रास्ते से प्रवाह के विरुद्ध समय अधिक लगा। अपने खेवैय्या जी से बतियाये, वह तमिल में और हम हिन्दी में, बीच में हमारे कन्नड़ अनुवादक। कावेरी नदी का जल वितरण कर्नाटक व तमिलनाडु के बीच विवाद का विषय है। हमारे एक ओर कर्नाटक, दूसरी ओर तमिलनाडु, बीच में जीवनधारा कावेरी बहती हुयी, दोनों की प्यास बुझाती हुयी।
लौटकर ट्रेन में बैठते ही बच्चों को नींद आ गयी। उनके चेहरे का उत्साह नींद में भी दृष्टिगोचर था। मानो होंठ यह कहना चाह रहे हों कि दिनभर घर में रहना कितना ऊबाऊ है । घूम ले, जीवन में दिन है चार।
चर्चायन – ब्लॉगर इन ड्राफ्ट की Better Post Preview की सेवा बहुत काम की है। वर्डप्रेस.कॉम से तुलनीय। इसके माध्यम से लाइव पोस्ट सी दिखती है प्रिव्यू में।
यह पोस्ट बनाते समय ही उसके वास्तविक रूप में देख पाया। इसका प्रिव्यू लाइवराइटर के प्रिव्यू से बेहतर है!

प्रवीण जी आप की पोस्ट पर इतने सुंदर चित्र देख कर अपना भी मन कर रहा है कि कावेरी के शीतल जल का मजा हम भी लूट पाते। बढ़िया विवरण। आप के यात्रा वृत्तान्त से हमारे अंदर का कीड़ा भी कुलबुलाने लगा है। जल्द ही कुछ लिखेगें।
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खूबसूरत विवरण ! निःसन्देह पोस्ट प्रिव्यू की सुविधा काफी बेहतर है यह !
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सुन्दर और मनोहारी वर्णन। कुछ-कुछ ईर्ष्यालु बनाता हुआ। मन शीतल हुआ… अस्तु।
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होगेनेक्कल पहुँचे तो मनोहर दृश्यों ने सारी थकान खींच ली। थोड़ी गर्मी थी लेकिन कावेरी नदी का शीतल जल और उस पर बने जलप्रपात से उठी फुहारें सूर्यदेव को मध्यम राग छेड़ने का संकेत…. हम बढ़े प्रवाह के विरुद्ध, भय और उत्साह दोनों थे। दोनों बच्चे पर आश्चर्य से मुँह फाड़े वह अनुपम सौन्दर्य निहारने में व्यस्त थे। बहुत निकट पहुँच इतना रोमांचित हो गये कि फोटो उतारना भूल गये।…. एक ओर कर्नाटक, दूसरी ओर तमिलनाडु, बीच में जीवनधारा कावेरी बहती हुयी, दोनों की प्यास बुझाती हुयी… घूम ले, जीवन में दिन है चार।….जैसे एक कविता, जो दिलो-दिमाग पर पूरी तरह छा गयी हो। भाषआ कावेरी के जल की तरह बहती हुई। सुन्देर पोस्ट। बधाई।
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आनंद आ गया सर जी। इन खूबसूरत नजारों का दीदार कराने का शुक्रिया।क्या हमें ब्लॉग संरक्षक की ज़रूरत है?नारीवाद के विरोध में खाप पंचायतों का वैज्ञानिक अस्त्र।
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बहुत सही कहा है…..घूम ले, जीवन में दिन है चार।सच मे ऐसी यात्राएं मन को नयी उर्जा से भर देती हैं….आज के भागम भाग जीवन मे बहुत कुछ ऐसा है जिसे हम जी नही पाते और जब तक पुर्सत मिलती है तो शक्ति जवाब दे जाती है….
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कटोरीनुमा नावों को काफी पहले किसी दक्षिण भारत की फिल्म में देखा था। एक उत्सुकता यह भी है कि लोग जब इसपर एक ओर से सवार होते होंगे तो क्या यह डगमगा कर एक ओर करवट नहीं ले लेती होगी या कि इसमें जाकर बैठने के लिए बाहर किनारे पर कोई विशेष चूबतरा आदि बना होगा जिसपर से सीधे इस कटोरीनुमा नाव में उतरा जा सकता हो ? यात्रा विवरण सुंदर है साथ ही फोटो भी जानदार।
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44-45 डिग्री तापमानवाले इन दिनों में, पोस्ट के चित्रों ने 'तर' कर दिया। ऐसी नदियॉं तो अब दिखाई भी नहीं देतीं।लगा, जल्दी में ही वर्णन लिखा है। अधूरा सा लगता है। मन नहीं भरा।
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ज्ञानदा, क्या विवरण और विस्तृत नहीं हो सकता था? वैसे शीर्षक पढ़ते ही दूसरे साथी ब्लागर के आपके साथ होने का खयाल आया था और पानी में बच्चों के साथ किलोल करते वे नजर भी आए। आपने टिप्पणी बक्से में सुधार कर अच्छा किया, वर्ना में भयंकर बौखला चुका था। उम्मीद है यात्रा के कुछ पड़ाव और होंगे।
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hujur aapne to lalcha diya is garmi me, raipur ki garmi……..mashallaah, man hota hai ki kahi bhaag jaye aisi hi kisi jagah par jaha aap gaye the aur ghanto dube rahe khelein, pani me jaise aap ne mahaj 1 ghante kiya…sahch kahu to vakai ojha jee ke kathan se sehmat hone ko dil chah raha hai ki boss aap jala rahe ho is garmi me jal ki post likh kar….
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