आखरी सुम्मार

मन्दिर को जाने वाली सड़क पर एक (अन)अधिकृत चुंगी बना ली है लुंगाड़ो नें। मन्दिर जाने वालों को नहीं रोकते। आने वाले वाहनों से रोक कर वसूली करते हैं। श्रावण के महीने में चला है यह। आज श्रावण महीने का आखिरी सोमवार है। अब बन्द होने वाली है यह भलेण्टियरी।

आज सवेरे-सवेरे एक स्कूटर सवार को रोका। तीन की टीम है। एक आठ-दस साल का लड़का जो सडक के आर पार की बल्ली उठाता गिराता है; एक रिंगलीडर; और एक उसका असिस्टेण्ट।

स्कूटर के पीछे बैठी महिला वसूली पर बहुत चौंचियायी।

घूमने के बाद वापसी में आते देखा। रिंगलीडर स्टूल पर बैठे थे। पिच्च से थूक कोने में फैंकी। प्रवचे – आज आखरी सुम्मार है बे! आज भो**के पीट पीट कर वसूलना है।

पास में ही बेरोजगारी के खिलाफ ईमानदार अभियान का पोस्टर पुता था दीवार पर! Last Monday


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

27 thoughts on “आखरी सुम्मार

  1. किस काम के लिये वसूली कर रहे हैं?रसीद पर लिखा तो होगा ही। या थाने में जमा करने के लिये भाडे के हैं?खींच कर कान के नीचे दो झापड लगाने थे। स्टूल, बल्ली छोडकर भाग जाते।प्रणाम

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  2. रिंग लीडर को देख कर लग रहा है कि मार्निंग-वाक करते-करते स्टूल पर बैठे गया…बेरोजगारी मिटाने के बारे में बच्चा किताब लिख सकता है. आखिर सावन के बाद भादों भी आता है. उसमें भी कोई न कोई सुम्मार मिल ही जाएगा.

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  3. यहाँ बेंगळूरु में भी एक नया "रैकट" और "न्यूसेन्स" शुरू हुआ है।कुछ महीनों से, हिजड़ों का एक गुट ट्रैफिक सिग्नल पर रुकी हुई वाहन चालकों को परेशान करते आए हैं।जबरदस्ति अपनी दुआएं देने की ज़िद्द करते हैं और पैसा एंठते हैं। महिलाओं को परेशान नहीं करते। हम अघेड उम्र वालों को भी छोड देते हैं पर नौजवानों को काफ़ी परेशान करते हैं। पिंड छुडवाने के लिए कुछ लोग कुछ रुपये दे देते हैं। बारी बारी से ये गुट नगर की अन्य ट्रैफ़िक सिग्नलों पर ढेरा जमाते हैं। पुलिस कर्मचारी देखते रहते हैं और कुछ करते भी नहीं।

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