लल्लू

हमें बताया कि लोहे का गेट बनता है आलू कोल्ड स्टोरेज के पास। वहां घूम आये। मिट्टी का चाक चलाते कुम्हार थे वहां, पर गेट बनाने वाले नहीं। घर आ कर घर का रिनोवेशन करने वाले मिस्तरी-इन-चार्ज भगत जी को कहा तो बोले – ऊंही त बा, पतन्जली के लग्गे (वहीं तो है, पतंजलि स्कूल के पास में)!

यानी भगत जी ने हमें गलत पता दिया था। पतंजलि स्कूल कोल्ड स्टोरेज के विपरीत दिशा में है।

GDP977-001 अगले दिन उन गेट बनाने वाले सज्जन को वे हमारे घर ले आये। उन्होने नाम बताया – लल्लू।

बस लल्लू? पूरा नाम क्या है? उन्होने कहा कि यही है, सब उन्हे लल्लू के नाम से जानते हैं।

पूरी बात करने पर हमने दस हजार रुपये का बयाना दिया। उनका नाम दर्ज किया मोबाइल में। एक बार फिर पूछा मैने – नाम लल्लू भर है? अब उन सज्जन ने दस हजार की गड्डी जेब में डालते हुये कहा – “वैसे नाम नसीम अहमद है। पर सब लल्लू के नाम से ही जानते हैं।”

मैं समझ गया; हिन्दू बहुल क्षेत्र में नसीम अहमद मुस्लिम होने के कारण अपने ग्राहक खोना नहीं चाहते। लिहाजा लल्लू हैं।

लल्लू चलने को हुये। उनके नमस्ते करने पर मेरी पत्नीजी ने कहा – अरे, जरा रुकिये, पानी तो पीते जाइये।

वे रसोई में गयीं, लल्लू जी के लिये जलपान लाने को। इस लिये कि लल्लू यह न समझें कि लल्लू से नसीम अहमद होते ही वे घर के दाना-पानी के अयोग्य हो गये!

एक समाज बने जिसमें नसीम अहमद को लल्लू कहाने की जरूरत न पड़े।     


अनुराग शर्मा (स्मार्ट इण्डियन) जी ने मेरा पगड़ी युक्त चित्र भेजा है। बकौल रीता पाण्डेय, बहुत जम रही है पगड़ी।

Gyandutt Turban 

एक बार मेरे सहकर्मियों नें इन्दौर में पहनाई थी पगड़ी। पर वह चित्र कहीं इधर उधर हो गया।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

36 thoughts on “लल्लू

  1. एक समाज बने जिसमें नसीम अहमद को लल्लू कहाने की जरूरत न पड़े। बहुत सही .. वैसे फोटो अच्‍छी है !!

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  2. हम भी आप जैसे हैं इस मामले में। काम धन्धे में मेरा कोई धार्मिक prejudice नहीं है। मेरा चहेता दर्जी, मुसलमान था। घर बनाते समय मेरा इलेक्ट्रिशियन और प्लम्बर भी मुसलमान ही थे। उन्हें अपना नाम बदलने की आवश्यकता नहीं थी। काम में इतने पक्के और सक्षम थे कि सब उनकी सिफ़ारिश करते थे।पर यह अवशय सच है कि हम जैसे लोग ज्यादा नहीं हैं। कभी कभी, कुछ नगरों में या इलाकों में मुसलमान होना एक handicap होता है। अब यह विवाद का प्रश्न हो सकता है कि इस के लिए जिम्मेदार कौन है? वे या हम?पगडी में आप जच रहें जी। शायद photoshop का कमाल है?शुभकामनाएंजी विश्वनाथ

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  3. लल्लू की बात हमें सोचने पर मजबूर करती है।सहमत हूँ आपसे। यहाँ भी हमने अनुभव किया है कि यदि आप मुसलमान हैं तो किराये के लिए घर मिलना मुश्किल होता है।लल्लू तो एक छोटा आदमी हैबडे बडे फ़िल्मी सितारों का क्या?युसुफ़ खान दिलिप कुमार कहलाता है।और भी कई ऐसे लोग होंगे जो अपना muslim identity छुपाते तो नहीं पर घोषणा भी नहीं करते।यहाँ बेंगळूरु के residential localities में कई सारे general provision stores है।इनमे कुछ दुकान केरळ के मुसलमानों के हैं। देखने में मुसलमान बिल्कुल नहीं लगते।न कोई दाढी, और न कोई skull cap. आप इन दुकानों को आसनी से पह्चान सकते है।एक तो हर शुक्रवार दोपहर को दुकान बन्द रहता है। दुकान का नाम से भी आप पहचान सकते हैं।यदि दुकानदार हिन्दू है तो दुकान का नाम होगा गणेष स्टोर्स, या मंजुनाथा स्टोर्स, या राघवेंद्र स्टोर्स या लक्ष्मी वेंकटेशेवरा स्टोर्स। यदि दुकानदार मुसलमान है तो जाहिर है के एसे नाम तो संभव नहीं। पर मुसलमान होने की घोषणा भी नहीं करते। उनके दुकानों के नाम रॉयल स्टोर्स, नैशनल स्टोर्स, नोबल स्टोर्स, सिम्ला स्टोर्स, क्वालिटी स्टोर्स वगैरह होते हैं।…continued —

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  4. अभी पंचायत चुनाव से आया तो जिस मुस्लिम बहुल गावं में कर्तव्य निभा रहा था वहां वोटर्स के नाम कुछ ऐसे ही थे !मजनू पुत्र मंगली असलम पुत्र जयपान भूरा पुत्र रोशन अहमद ……… सभी पहनावे से मुस्लिम ही थे !(….आपकी पोस्ट जैसा कुछ अंदेशा होता तो पूरी वोटर लिस्ट याद कर आते )बकिया पगड़ी तो अच्छी लग रही है ….. जी !

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  5. सभी शान्तिप्रिय जन इस जाति और धर्म के विष से बचना चाहते हैं। कई अपने नाम के आगे सरनाम नहीं लगाते हैं, यदि लगाते हैं तो प्रतीकात्मक।पूछा उन ठेकेदारों से जाये जिन्होने यह वातावरण विषाक्त कर दिया है।

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  6. लो जी. हमारे पुराने फ़्लैट को अच्छू मियां ने उमाशंकर मिश्र नाम बताकर किराये पर ले लिया, और तो और उन्होंने बाकायदा इसी नाम से वकील का कागज़ भी बनवाया. फिर एक दिन पिताजी किसी काम से फ्लैट अचानक ही पहुँच गए तो पता चला कि 'उमाशंकर' जी नमाज़ पढने गए हैं. पिताजी का बिगड़ना तो लाजिमी था ही, लेकिन फर्जी नाम से मकान किराए पर लेने के कारण.फिर पिताजी को याद आया कि जब 'उमाशंकर' जी हर महीने किराया देने आते थे तब वे हमेशा चुप रहते थे और उनके साथ अक्सर आने वाला उनका एक हिन्दू दोस्त ही बकबक किया करता था!दूसरी बात. हमारे घर में भी एक मौसेरे भाई 'लल्लू' ही हैं. जब उनकी रेलवे में नौकरी लगी तब यवतमाल ट्रेनिंग के लिए जाने लगे पर उनकी भोली माँ हर तरफ यही सूचना देती रहीं कि उनका बेटा वियतनाम जा रहा है.श्रीमती रीता पाण्डेय जी की राय के विपरीत, पगड़ी तो थोपी हुई ही लग रही है जी.

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  7. एक समाज बने जिसमें नसीम अहमद को लल्लू कहाने की जरूरत न पड़े।लल्लू जैसे छद्म-नाम को तो धर्मनिरपेक्ष नाम का प्रथम पुरस्कार मिलना चाहिये।

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