वर्डप्रेस पर मैने प्रारम्भ से देखा कि ब्लॉग पोस्ट लिखते ही उसके हिन्दी होम पेज पर पोस्ट ऊपर दीखने लगती है। वर्डप्रेस पर हिन्दी में बहुत कम लिखा जा रहा है। उत्कृष्टता की कोई स्पर्धा ही नहीं है। उसके अनुसार हिन्दी ब्लॉगिंग, ब्लॉगिंग समग्र के हाशिये पर भी नहीं है। बहुत लिद्द सी दशा! ![]()
हिन्दी में नेट पर कण्टेण्ट भी नहीं है और पाठक भी नहीं! जो पोस्ट कर रहे हैं स्वान्त: सुखाय कर रहे हैं। अधिकतर जो इण्टरनेट पर हिन्दी में है, वह बासी है। वह जो साहित्य के नाम पर पुस्तकों में ऑलरेडी है। इसके अलावा बहुत कुछ अनुवाद मात्र है – रुक्ष और सिर खुजाऊ; बिना वैल्यू-एडीशन के!
हिन्दी में जो केवल नेट पर है, वह (अधिकतर) इसलिये नेट पर है कि उसे छापक नहीं मिला। अन्यथा अखबार के हाशिये में छपना या बीन-बटोर कर नॉवेल्ला के रूप में छपना लेखक या ब्लॉगर को ज्यादा भाता है, बनिस्पत नेट पर होने के। यह तो देखा जा सकता है।
हिन्दी अखबार भले ही उत्कृष्ट न हों, पर जबरदस्त रीडरशिप रखते हैं। इसी तरह हिन्दी (या वर्नाक्यूलर) टेलीवीजन चैनल जबरदस्त दर्शक वर्ग रखते हैं। पर जब इण्टरनेट की बात आती है तो मामला इल्ले! हिन्दी जगत का इण्टरनेट पेनिट्रेशन कम है और बढ़ भी नहीं रहा उतनी तेजी से जितना कुल इण्टरनेट पेनिट्रेशन बढ़ रहा है।
सुना है चीनी भाषा में बायडू (Baidu) बहुत लोकप्रिय सर्च इंजन है। हिन्दी या भारतीय भाषाओं में वैसा कुछ नहीं है। हिन्दी का रफ्तार तो काफी पैदल है। जब सर्च इन्जन के उपयोग करने वाले नहीं होंगे और कण्टेण्ट नहीं होगा तो इण्टरनेट पर पूछ क्या होगी? ले दे कर गूगल कुछ पाठक भेज देता है। दाता की जै!
जब सर्च इंजन की बात चली तो मैने पाया है कि मेरा ब्लॉगस्पॉट वाला ब्लॉग अब भी सर्च इंजन के माध्यम से कहीं ज्यादा पाठक ला रहा है बनिस्पत वर्डप्रेस वाला ब्लॉग। कहीं गूगल अपनी रियासत की सामग्री को (किसी तरह से) प्रेफरेंशियल ट्रीटमेण्ट तो नहीं देता? मैं कई बार अपने ब्लॉगस्पॉट वाले ब्लॉग पर पुन: लौटने की सोचता हूं। पर सोचता तो मैं नेट पर दुकान बन्द कर यूं ही कुछ कण्टेण्ट नेट पर रखने की भी हूं – बिना पाठक की आशा के दबाव के!
एक चीज है – पहले मैं चुकायमान होने की आशंका से ग्रस्त हो जाया करता था यदा कदा। अब वह नहीं है। विचार बहुत हैं। हिन्दी में सम्प्रेषण पहले से बेहतर हो चला है। पर ब्लॉगरी से एक प्रकार की ऊब है – यदा कदा होने वाली ऊब।
अच्छा जी!

अपनी अपनी सोच है सर.. आप नकारात्मक सोचेंगे तो वही दिखेगा, और सकारात्मक सोचेंगे तो वह! दूसरों के बारे में मैं नहीं जानता हूँ, बस अपनी बात कहूँगा.. मैं कभी भी अखबारों में छपने के लिए कुछ भी भेजा नहीं हूँ, और शायद भेजूंगा भी नहीं.. सन 2007 में मेरे कुछ लेख ब्लॉग से मुझसे पूछे बिना उठाकर और मेरे नाम का जिक्र किये बिना छापे गए थे, और मैंने उनके विरोध में उनके संपादकों को पत्र भी लिखा था.. फिर दो सालों तक टंटा बना रहा, जिसकी मुझे खास परवाह नहीं.. मेरे जैसे लेखक जिन्हें अखबारों में छप कर कमाई करने से कोई मतलब नहीं है उन्हें मेरे ख्याल से अखबारों में छपने से भी अधिक मतलब नहीं होनी चाहिए(वैसे ये व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर करता है)..
आपने लिखा “अधिकतर जो इण्टरनेट पर हिन्दी में है, वह बासी है। वह जो साहित्य के नाम पर पुस्तकों में ऑलरेडी है। इसके अलावा बहुत कुछ अनुवाद मात्र है – रुक्ष और सिर खुजाऊ; बिना वैल्यू-एडीशन के!” तो इस पर मैं यही कहूँगा की अपना दायरा बढ़ाएँ.. भले ही चंद ब्लॉग ही सही, मगर उस पर अच्छी सामग्री आपको मिलेगी.. मेरी बातों को अन्यथा ना लें, मगर मुझे अब भी याद है की आपने मोहल्ला और भड़ास मामले के बाद उन्हें ना पढ़ने की कसम खा ली थी.. उन दिनों मैं भी उन्हें पढ़ना पसंद नहीं करता था, फिर भी एक नजर मार लेता था कि शायद कुछ अच्छे लेख मिल जाएँ, और मुझे मिले भी.. पूर्वाग्रह किसी भी तौर से सही नहीं होता है..
वैसे मेरी समझ में ऐसी सोच रखने वालों की सबसे बड़ी समस्या यह है की वे ब्लॉग का मतलब साहित्य समझ बैठे हैं.. जैसे शुरुवाती दिनों में अधिकाँश अंग्रेजी में ब्लॉग लिखने वाले अंग्रेजी ब्लोगिंग का मतलब “टेक्नीकल लेखन” समझ बैठे थे(ये भारतीय परिप्रेक्ष्य में नहीं, विश्व के परिप्रेक्ष्य में लिख रहा हूँ).. क्योंकि पचास फीसदी से अधिक अंग्रेजी ब्लॉग उन दिनों टेक्नीकल ब्लॉग थे..
जहाँ तक बात है गूगल द्वारा blogspot को सर्च पर अधिक महत्त्व देने का तो उससे मैं सहमत नहीं हूँ.. आप सालों साल से blogspot पर लिख रहे हैं और wordpress पर शुरू हुए जुम्मा-जुम्मा चार दिन ही हुए हैं.. कम से कम दो साल इन्तजार कर लें, फिर इस पोस्ट को पुनः पढ़ें.. यह बात मैं एक IT Expert के तौर पर कह रहा हूँ..
(आज सुबह आपको बज्ज पर यह कमेन्ट लिखा था,अब यहाँ लिख रहा हूँ)
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मेरा तो पूरा विश्वास है कि हिंदी एक दिन इंटरनेट पर छा जाएगी। भारत का बाजार दुनिया भर की कंपनियों को लुभा रहा है। ये कम्पनियाँ भारत में आकर भारतीय भाषाओं में काम करने वालों की फौज भी तैयार कर रही हैं। आगे यह ट्रेन्ड बढ़ता ही जाएगा।
ब्लॉग के कारण हिंदी का प्रसार निश्चित रूप से बढ़ा है। इसे सार्थक और उपयोगी बनाने की जिम्मेदारी हम सब की है। सामूहिक प्रयास/कार्यक्रम आयोजन इस अभियान को अतिरिक्त संबल देता है।
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आपकी बात सही तो है पर 1. एक दिन मैंने टैक्सी में पाया कि ड्राइवर के आगे स्क्रीन लगा था जिसमें बीप के साथ संदेश आया AIRPORT PAHUNCHIYE WAHAN KOI GAADI NAHIN HAI. WAHAN PAHUNCHTE HI CONTROL ROOK KO BATAIYE. 2. एक और दिन मैंने, पान की दुकान पर एक मज़दूर लड़के को मोबाइल पर हिन्दी में आया SMS दिखाते हुए पाया.
पहला उद्धरण मुझे इलेक्ट्रानिक मीडियम पर हिन्दी की संभावनओं के बारे में आश्वस्त करता है तो दूसरा इसके प्रसार के बारे में सूचित करता है. कंप्यूटर अंग्रेज़ी के साथ ही जन्मा था, पर कंप्यूटर पर हिन्दी तो शायद अभी ठीक से पैदा भी नहीं हुई है… इसलिए इसे संभवत: समय अभी और चाहिये.
एक बार विदेश में, मैंने भारतीय मुद्रा दिखाते हुए किसी को बताया था कि देखिये इस नोट पर 15 भारतीय भाषाओं में इसका मूल्य लिखा है. मेरी मुद्रा तक पर केवल किसी एक ही भाषा में नहीं लिखा जा सकता तो किसी एकमात्र भारतीय भाषा का होना तो स्वप्न सा ही लगता है. गुटबाजी के अलावा हिन्दी की एक त्रासदी और भी है कि यह किसी घाट की नहीं. समझी तो चहुंओर जाती है पर उससे कहीं कम ठेठ बोली जाती है. ज्यूं ज्यूं हिन्दीभाषी तरक़्क़ी करता जाता है स्वयं तो अंग्रेज़ीमय होता ही जाता है, उसके बच्चे तक क कबूतर के बजाय ए फार एप्पल से शुरू करते हैं….बहुत कॉप्लीकेटिड है इंटरनेट पर हिन्दी की बात..
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अजी बहुत लोग पढते हे हिन्दी ब्लाग, हां टिपण्णियां कम देते हे, क्योकि कई लोगो को जो ब्लाग से बाहर हे उन्हे शायद टिपण्णी देनी नही आती या वो हिन्दी मे लिख नही पाते, लेकिन हिन्दी के ब्लाग पढते बहुत लोग हे… इस लिये हिम्मत ना हारो….
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सही भाटिया जी – हिम्मत तो हारनी नहीं। बाकी कुछ हारने को है नहीं!
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एक जमाना वह भी था जब हम लंबी लंबी चिट्ठियाँ लिखते थे, दोस्तों को, रिश्तेदारों को।
पढ़ने वाला तो केवल एक था।
फ़िर भी लिखते जाते थे।
आजकल ब्लॉग के माध्यम से पढने वाले कई ज्यादा मिल जाते हैं।
आपके तो कई पाठक हैं।
मैं कई ऐसे चिट्ठाकारों को जानता हूँ जिनके ४ या पाँच से ज्यादा पाठक नहीं होंगे!
(उनमे से मैं भी एक था, और बाकी चिट्ठाकार के परिवार के सदस्य जो मज़बूर होकर पढते थे!)
बस कुछ ही महीनों में यह लोग मैदान छोडकर चले गए।
हमें विश्वास है कि आप ब्लॉग जगत में long distance runner साबित होंगे।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
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धन्यवाद विश्वनाथ जी। और उस लॉंग डिस्टेंस में आपकी पोस्टें बाकायदा होंगी।
बहुत समय से अतिथि पोस्ट लिखी नहीं आपने।
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इंटरनेट पर हिन्दी की हालत सुधरने में समय लगेगा. मेरे देखते ही तीन सालों में बहुत कुछ हुआ है.
वर्डप्रेस का हिन्दी पेज ऑटोमैटिक है. कई बार उसमें हिंदी के वर्डप्रेस पोर्न ब्लौगों के लिंक आ जाते हैं जिन्हें मैं शिकायत करके हटवाता रहता हूँ.
आपके इस ब्लौग की अच्छे से इंडेक्सिंग होने में छः-आठ महीने लग जायेंगे. गूगल फिर भी ब्लौगर को ही प्रमुखता देगा. दोनों ब्लौगों में एक ही सामग्री का होना भी एक सर्च समस्या है. आप चाहें तो ब्लौगर की सामग्री डिलीट कर सकते हैं पर ऐसा तभी करेंगे जब यहीं टिकने का मन होगा.
अखबार का ठोसपन अभी लुभाता है. आप नाई की दूकान पर बैठकर दूसरे के हाथ से कुछ पन्ने मांगकर फ़ोकट में पढ़ सकते हैं. उसके छपने से लेकर बंटने तक उसमें इतने हाथ लग चुके होते हैं कि लोग उसे इज्ज़त देने लगते हैं. हम लोगों के यहाँ अभी भी कागज़ को पैर लगने पर माथे से लगाने का चलन है. कम्प्युटर के साथ मैंने ऐसा होते नहीं देखा.
ब्लौगों से मन ऊब रहा है. अपने ब्लौग से भी. लेकिन लोग अब भरपूर प्रसंशा और इज्ज़त देने लगे हैं इसलिए कुछ दिनों के लिए भी इससे अलग होने का मन नहीं करता. आजकल अन्य ब्लौग पढना और टिपण्णी देना तो वैसे कम हो गया है. कम-से-कम मेरे पास तो पोस्टों की तंगी नहीं होगी. हर दो-तीन दिन में एक अच्छी पोस्ट कहीं से अनुवाद करके ठोंक देते हैं. आपने सही कहा कि सार्थक लेखन का कोई विकल्प नहीं है.
अब सर्च वाकई बेहतर है. मैंने “हीहीफीफी” सर्च किया तो 0.12 सेकंड्स में चार रिज़ल्ट आये. चारों आपके ही ब्लौग से :)
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बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है कि आपकी अपेक्षायें क्या हैं। जब मैने हिन्दी में नेट पर शब्द उकेरना प्रारम्भ किया था – और साढ़े चार साल होने को आये – तब अपेक्षा थी कि सब एक्स्पोनेंशियल नहीं तो एक्स घात 3 की रफ्तार से तो बढ़ेगा ही। पर पढ़ने वालों की बढ़ोतरी लीनियर रही है।
और तो और आपकी अपेक्षा जहां उत्कृष्ट पाने की होती है, वहां भी बहुधा इंसिपिड – या धूसर मिलता है। लगता है, नेट पर सामग्री प्रस्तुत करने को लोग गम्भीरता से नहीं लेते। प्रशंसा और इज्जत – वह शायद है। पर एक लेवल पर आ कर वह बहुत लुभाती नहीं!
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इज्ज़त… उधार की है.
लोग गालियाँ भी बक जाते हैं. मेरी पत्नीश्री आश्चर्य करतीं हैं, “आपको गाली देकर इन्हें क्या मिलता है?”. फिर मेरी मुस्कराहट देखकर उन्हें यह कहने का बहाना मिल जाता है, “आप एन्टीक पीस हो, सच में!”:)
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बात केवल ब्लॉगिंग की नही , अपितु समग्र इन्टरनेट की है कि इस पर अभी अंग्रेजी – भाषी लोगों का ही आधिपत्य है . हिंदी भाषी धीरे धीरे इन्टरनेट की तरफ रुख कर रहे हैं. अभी भी आम जन ( हिंदी भाषी इन्टरनेट उपभोक्ता ) को ब्लॉगिंग कि ज्यादा जानकारी नहीं है . जिनको हुई है वो ब्लॉग रीडर बन रहे हैं . भविष्य में वही आम जन ब्लॉगर भी बनेंगे.
कोई भी आते ही तेजी से तभी लोकप्रिय होती है जब हम उसके विज्ञापन सुबह अखबार में , दोपहर को रेडियो में और रात को टी वी में पढते सुनते देखते हैं और ब्लोगिंग में ऐसा तो होने से रहा . ये तो माउथ पब्लिसिटी के द्वारा ही फ़ैल रही है तो इस में टाइम तो लगेगा ही .
फिलहाल लाइट चली गयी है बाकी बाद में……
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सही हिमांशु जी, सवाल हिन्दी भाषियों के हिन्दी में नेट-पेनीट्रेशन का है। और माउथ पब्लिसिटी की बजाय सर्च-इंजन पब्लिसिटी होनी चाहिये। वह स्तर पर नहीं हो पा रही।
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युग परिवर्तन के दौर में ऐसी मानसिक हलचल स्वाभाविक है. मुझे तनिक भी आश्चर्य नहीं हुआ पढ़कर.
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युग परिवर्तन? रीयली?
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मैं तो इस विषय में आशावादी हूँ।
आने वाले वर्षों में जब टैब्लेट पी सी आम बन जाएंगे, जब सस्ते दामों में उपलब्ध होंगे, जब इंटेर्नेट पर ३जी आम हो जाएगा, तब “पेनेट्रेशन” (कम्प्यूटर का और इंटर्नेटका) बढेगा।
प्रिन्टेड मीडिया में हिन्दी के पाठक अंग्रेजी से अधिक है।
इंटर्नेट पर क्यों नहीं हो सकता? समय दीजिए। धीरज रखिए।
और हाँ, आप ब्लॉग्गिंग करते रहिए। ऊब जाने की बात मत कीजिए।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
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आपके जैसे प्रशंसक हैं तो ऊबेंगे, तो भी जायेंगे कहां विश्वनाथ जी!
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सुकुल चचा की बात से सहमत… हिंदी अभी नयी है… नेट पर अच्छा और ज्यादा कंटेंट न होने का एक बड़ा कारण है कि अच्छे और ज्यादा पाठक नहीं हैं… जब कोइ पढ़ने वाला ही नहीं तो क्यों लिखे कोइ… एक से बढे एक हिन्दी भाषी ब्लोगर हैं जो अंग्रेजी में उच्च गुणवत्ता के ब्लॉग लिख रहे हैं और उनपर पाठकों की भरमार है. .. उन्हें पता है कि हिन्दी में उन्हें उतने पाठक नहीं मिलेंगे तो नहीं लिख रहे… हिन्दी में दो तरह के लोग लिख रहे हैं.. एक तो वो जो अंग्रेजी से ज्यादा हिन्दी में लिखने में सहज महसूस करते हैं.. और दूसरे वो जो हिन्दी के प्रति कुछ ज्यादा ही मोह रखते हैं…. दूसरी बात कि हिन्दी में, अपने क्षेत्र में विशेषग्यता रखने वाले लोग उसपर ब्लॉग लिखें यह प्रवृति अभी नहीं आयी है… यहाँ लोग मल्टी-टैलेंटेड हैं :) कई कारण हैं.. एक तो हमारी सरकार के आईटी विभाग की भी कृपा है जो सिर्फ सी-डैक जैसी कुछ संस्थाओं को हिन्दी भाषा पर आईटी रिसर्च के लिए पैसा देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं…
गूगल के पक्षपात वाली बात पर कहूँगा कि आपको गलतफहमी हुई है.. एक बार आपके वर्डप्रेस ब्लॉग पर काम लायक सामग्री आ जाए तो ब्लागस्पाट की कोइ औकात ही नहीं उसके सामने.. वर्डप्रेस का सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन सबसे बेहतर है….. थोड़ा टाइम दीजिए फिर देखियेगा…
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न नेट यूजर लेखक हैं, न पाठक। विशेषज्ञ लेखन को पाठक और भी नहीं हैं।
बायडू के समकक्ष हिन्दी सर्च इंजन न होना अपनी जगह।
कण्टेण्ट के लिये सरकार/सरकारी विभाग का मुंह जोहना ठीक नहीं। सरकार हिन्दी में वैसे ही गन्द मचा रही है। नेट पर न मचाये तो ठीक!
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मेरा मानना है कि आज नेट पर अधिकाँश लोग विशेषज्ञ सामग्री के लिए ही सर्च करते हुए ही ब्लोग्स तक पहुँचते हैं.. विशेषज्ञ सामग्री से मेरा मतलब विभिन्न सम-सामयिक मुद्दों से लेकर बागवानी और कूकिंग तक पर लिखने वाले ब्लोगों से है.. हिन्दी भाषी सोचता है कि हिन्दी में तो कुछ काम का मिलेगा नहीं.. अंग्रेजी में ही सर्च करो… ब्लोगर सोचते हैं कि हिन्दी में तो कोई गंभीर पढता ही नहीं, अंग्रेजी में ही लिखो या फिर हिन्दी में हल्का-फुल्का ही लिखो…
तुरंत-फुरंत पाठक भले न आयें पर अगर नेट पर हिन्दी को स्थापित होना है तो विशेषज्ञ सामग्री से ही वह संभव है…
सरकारी विभाग का जिक्र मैंने कंटेंट के सिलसिले में नहीं उनकी आईटी पॉलिसीज के सन्दर्भ में किया.. जैसे आपने बाईदु का जिक्र किया, मैं कोरिया जैसे एक छोटे देश का उदाहरण दूंगा.. यहाँ naver.com और daum.net दो सर्च इंजन कम पोर्टल्स हैं जिन्हें तीन चौथाई से ज्यादा कोरियाई प्रयोग करते हैं.. कोरियाई भाषा में पर्याप्त मात्रा में हर विषय पर कंटेंट मिल जाता है वहाँ.. यहाँ बिजनेस करने के लिए हर अंतर्राष्ट्रीय कंपनी को कुछ नीतियों को मानना पड़ता है जो कोरियाई भाषा के नेट पर प्रसार के हित में होती हैं.. इसीका नतीजा है कि कोरियाई जैसी कम लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा में गूगल और माइक्रोसोफ्ट जैसी कंपनियों की सारी सेवाएं और सोफ्टवेयर ‘अंग्रेजी वाली गुणवत्ता’ में उपलब्ध हैं…
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और हाँ यह लिखना भूल गया कि कोरियाई सर्च इंजनों को प्रोमोट करने और उनको बेहतर बनाने में यहाँ की सरकार ने बड़ी मदद की…
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महत्वपूर्ण टिप्पणी सतीश। और बड़ा स्पष्ट हो गया कि १. उत्कृष्ट सर्च इन्जन २. विशेषज्ञ मूल सामग्री ३. (शायद) स्तरीय एनसाइल्कोपीडिया का हिन्दी नेटीकरण और बेहतर भाषाई नेट पेनीट्रेशन का खेल है यह।
मात्र हीहीफीफी/सोशल नेटवर्किंग का नहीं।
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“मात्र हीहीफीफी/सोशल नेटवर्किंग का नहीं।”
…मात्र गुटबाजी और औकतबाज़ी का भी नहीं:-)
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एक ही बात है। :)
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