मेरा व्यवसाय – जी. विश्वनाथ का अपडेट


यह श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ की अतिथि पोस्ट है:

बहुत दिनों के बाद हिन्दी ब्लॉग जगत में फिर प्रवेश कर रहा हूँ। करीब दो साल पहले आपने (अर्थात ज्ञानदत्त पाण्डेय ने) मेरी अतिथि पोस्ट छापी थीं। विषय था – “जी विश्वनाथ: मंदी का मेरे व्यवसाय पर प्रभाव“।

अब पेश है उस सन्दर्भ में एक “अपडेट”।

श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ - यह उनकी अतिथि पोस्ट है।

दो साल पहले अपनी कंपनी का स्वामित्व किसी और को सौंपने के बाद हम अपनी ही कम्पनी में सलाहकार बन कर काम कर रहे थे। नये स्वामी आशावादी थे और जोखिम उठाने के लिए तैयार थे। उनकी आर्थिक स्थिति भी मुझसे अच्छी थी।

पर हालत सुधरी नहीं। और बिगडने लगी। दो साल से कंपनी चलाने का खर्च ज्यादा था और कंपनी की आमदनी कम थी। हमने अमरीकी प्रोजेक्ट और ग्राहकों पर भरोसा करना बन्द कर दिया। ७ साल के बाद हम देशीय ग्राहकों की सेवा नहीं कर रहे थे। कारण साफ़ था। वही काम के लिए हमें देशी ग्राहकों से आमदनी एक तिहाई या कभी कभी एक चौथाई ही मिलता था।

श्री विश्वनाथ के घर में ऑफिस का हॉल

पर, अब किसी तरह मैदान में डटे रहने के लिए, हम भारतीय कंपनियों से काम स्वीकार करने लगे। रेट कम होते हुए भी, काम की मात्रा (या “वोल्यूम”) अमरीका से मिले प्रोजेक्टों से कभी कभी दस गुना ज्यादा था। हमने सोचा किसी तरह कंपनी चलाने का खर्च यदि मिल जाए, तो हम डटे रहेंगे। मुनाफ़े के बारे में फ़िलहाल नहीं सोचेंगे। अमरीका में हालत सुधरने के बाद हम फ़िर उनसे सम्पर्क करेंगे। अमरीका में ग्राहकों की कमी नहीं थी। वही पुराने ग्राहक हमारे पास वापस आ जाएंगे, इसकी हमें पूरी उम्मीद थी। पर इस समय न तो वे लोग हमें अच्छे मुनाफ़े वाले प्रोजेक्ट देने में समर्थ थे और न ही हमें पुराने रेट पर काम देने के लिए तैयार थे। रेट कभी कभी घटकर आधा हो गया था, और हमारा खर्च इन सात सालों में दुगुना हो गया था। कभी कभी तो काम देते समय उनकी शर्त थी कि भले ही काम पूरा हो, पैसा हम आपको तब भेजेंगे जब हमें पैसा मिलेगा हमारे अपने ग्राहक से।

ज़ाहिर है कि हम ऐसी स्थिति में उनके साथ व्यवसाय जारी नहीं रख सकते थे।

एक बहुत ही बडी देशी कंपनी से हमें बहुत काम मिला था और पिछले पन्द्रह महीनों से हमने अपना सारा समय उनके प्रोजेक्टों पर ही लगा दिया। कमाई कम थी पर किसी तरह हम काम चलाते आए। कंपनी का नया मालिक, पैसे की कमी को अपनी जेब से निकालकर कंपनी को जीवित रखता था।

पर  ऐसी स्थिति कब तक चल सकती है? चार महीने पहले नये मालिक ने भी हाथ जोड लिया और कहा “अब बस. अब और नहीं” । कम्पनी बन्द करने का निर्णय लिया गया।

मुझे कोई खास नुकसान नहीं हो रहा था। बासठ की आयु में मैं तो “रिटायर” हो सकता था, पर मुझे अपने कर्मचारियों के बारे में सोचना पड़ा। कहाँ जाएंगे यह लोग इस आर्थिक मन्दी के समय?

हमने इस देशी कम्पनी (जो हमारे सबसे बडे और मुख्य ग्राहक थे) से कह दिया कि अब हम और काम स्वीकार नहीं कर सकते और दिए हुए काम को पूरा करके हम कंपनी बन्द कर रहे हैं।

और हमारा भाग्य  अचानक फ़िर खुल गया। इस बड़ी देशी कंपनी ने हमें “शट्टर डाऊन” की अनुमति नहीं दी। इस कम्पनी वाले प्रतिपूर्ति बढाने के लिए तैयार नहीं थे क्योंकि इसमे कुछ अंदरूनी अडचनें थी। पर हमारे काम से वे खुश थे और हमारी सेवाओं को जारी रखना चाहते थे। वे भी हर प्रोजेक्ट के लिए अनेक एजन्सियों से “कोटेशन” माँग-माँग कर, फ़िर इन्वोइस प्राप्त करके पेमेंट करते करते ऊब गए थे और इस विशेष काम के लिए अपनी ही एक टीम बनाने की योजना बना रहे थे। इस योजना के तहत वे हमें “टेकओवेर” करने के लिए राजी हो गए।

पिछले तीन चार महीने से इस टेकओवर की औपचारिकताएं जारी थीं (और अब भी चल रही हैं)। दिसम्बर २०१० से, हमारी कंपनी का सारा खर्च वे लोग उठा रहे थे और हम “नो प्रॉफ़िट नो लॉस” के हिसाब से कम्पनी को चला रहे थे।

अब १ अप्रैल २०११ से मेरे सभी कर्मचारी इस कंपनी के परमानेन्ट कर्मचारी बन गए हैं। मुझे एक साल के लिए नियुक्ति मिल गई है और मैं सलाहकार बनकर अपना काम जारी रखूंगा। अब तक मेरा कार्यालय मेरे घर में ही स्थित था और फ़िलहाल हम यहीं से काम करते रहेंगे। कुछ महीने बाद, जब इस बडी कंपनी के बेंगळूरु में स्थित सभी विभाग एक ही इमारत में “रीलोकेट (स्थानापन्न)” होंगे, तब हमें भी वहीं जगह मिल जाएगी। तब तक मकान मालिक की हैसीयत से, मैं अपने घर को इस कंपनी को किराए पर दे रहा हूँ। इस उम्र में जो भी आमदनी मिलती है, बोनस है। जब तक आमदनी होती है, होने दो। अगले साल की चिंता हम अभी नहीं करेंगे।


ऑक्सफोर्ड का रोड्स स्कॉलर नकुल

एक और अपडेट, मेरे बेटे नकुल के बारे में।

अगले महीने में वह ऑक्स्फ़र्ड युनिवर्सिटी से अपनी एम.फिल. (M Phil) की पढाई पूरी कर रहा है।

उसे वहीं ऑक्स्फ़र्ड युनिवर्सिटी में पी.एच.डी. (PhD) की सीट मिल गयी है और Clarendon Scholarship भी प्राप्त हो गयी है।

ईश्वर की कृपा है, यह सब। अब रिटायरमेंट एक दो साल के लिए स्थगित कर सकता हूँ और नकुल की भी कोई चिन्ता नहीं। आशा करता हूँ कि मेरा स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा, वही ईश्वर की कृपा से।

आप सब तो मेरे ब्लॉग जगत के अच्छे मित्र और शुभचिन्तक रहे हैं सो, अपनी खुशी आप सब से बाँटना चाहता हूँ।

आपके सभी पाठकों को मेरी शुभकामनाएं

जी विश्वनाथ


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

19 thoughts on “मेरा व्यवसाय – जी. विश्वनाथ का अपडेट

  1. prerana-dayi post……..hamare liye……..is post me jo ‘manovriti’ dekhi ja rahi hai…..o nischay hi……….anukarniya evam prasansniya hai……..bahut sundar…..abhar………..

    pranam.

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  2. सच कहो ,सच सहो ,अपना तो यही नारा है .बाकि सिद्धार्थ जोशी जी ने एक दम सही कहा .[ pitashivkripa.org ]

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    1. जहां तक मेरी सोच है, विश्वनाथ जी के यहां सभी कुछ भग्वद्कृपा से शुभ ही हो रहा है!

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  3. भगवान जब एक रास्ता बंद करता है तो दूसरा खोल देता है।
    विश्वनाथ जी ने धैर्य और सदाशय से अपना काम जारी रखा। राह निकलती गयी।
    उनकी तपस्या का सबसे बड़ा फल तो ‘नकुल’ है।

    हमारी शुभकामनाएँ।

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  4. अपने कर्मचारियों के प्रति आपकी चिंता और बेहतरीन सेवाओं ने कंपनी नहीं तो रोजगार को बचाने में महत्‍वपूर्ण रोल अदा किया। नीयत सही हो तो भविष्‍य सही होता है। बेहतर भविष्‍य की शुभकामनाओं के साथ…

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  5. विश्वनाथ जी को इतने दिन बाद देख कर अच्छा लगा. सब बढ़िया ही होगा, अनेक शु्भकामनाएँ.

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