चिरंजीलाल


अपने घड़े नीचे रख इत्मीनान से बतियाने लगे चिरंजीलाल।

चिरंजीलाल अपने खेत में पानी देते दिखे। अर्से से उस खेत में कोई नहीं दीखता था। सूखता जा रहा था। वार्तालाप का ट्रिगर मेरी पत्नीजी ने किया। और चिरंजीलाल जी बताने लग गये।

वे काफी समय से इस पार के खेत में ज्यादा नहीं, गंगा के उस पार के खेत में काम करते थे। गेंहू और सरसों निकली है उस पार। भगवान की कृपा है – साल भर का खाने भर को हो गया है। बारह बोरा गेंहू और दो बोरा सरसों। इस पार तो उनका लड़का देखता था। वही जो कुछ थोड़ी बहुत सब्जी हुई, निकालता था।

दो दिन पहले अरविन्द मिला था  मुझे। कछार में अपने खेत की ओर जा रहा था। मुझे देख रुक कर बोला था – इस साल खेती  बढ़िया नहीं हुई। नदी उसपार से पलटी ही नहीं!  नदी के पहले उतार में रेत भर आई थी कछार में। और रेत में ताकत नहीं है। खाद देनी पड़ी ज्यादा। खेती में लागत भर निकली, पर फायदा नहीं हुआ। सब्जियों के दाम भी बहुत नहीं चढ़े। अब नेनुआ चल रहा है मार्किट में। हम लोग थोक में बेचते हैं तो बारह का रेट लगता है। इतनी मेहनत में बारह का रेट कुछ भी नहीं है।

अरविन्द और चिरंजीलाल में अपेक्षाओं के स्तर का बहुत अंतर है!

अब तो महीना पन्द्रह दिन की और है यह खेती। खेती के काम से निपट कर बढ़ई का काम करेंगे चिरंजीलाल। सब तरह की चीजें बना लेते हैं।

रीता पाण्डेय उनसे फर्नीचर बनवाने के मनसूबे बनाने लगती हैं।

इस बार गंगाजी में पानी बहुत है।

गंगाजी की जलराशि देख बहुत आनन्द आता है। पर कछार में खेती करने वालों का मत उलटा ही है।

इस पानी ने बहुत नुक्सान किया है। चिरंजी लाल हाथ से दिखाते हैं – आप वो बीच की जमीन देख रहे हैं (पानी में जरा सा उभार भर था वह) – वहां जिसके हिस्से की है, उसने तीन बार बोया और तीनों बार गंगा में बढ़े पानी ने बरबाद कर दिया। उस पार बहुत खेती दलदल बनने से खतम हो गयी।

चिरंजीलाल ने खबर दी – एक अफसर आया है जिसने फाफामऊ पुल पर खत्ता (चिन्ह) लगा दिया है और रोज नापता है कि पानी उससे कम न होने पाये। पानी खूब छोड़ रहे हैं टिहरी डैम से।

मैं बहुत प्रसन्न था कि गंगाजी में इस साल पानी काफी है शिवकुटी में गंगा-यमुना के संगम के पहले ही। पर चिरंजीलाल दुखी हैं कि पानी ज्यादा होने से खेती कम हुई। शायद यह अपेक्षानुसार न होने का फल है। गंगामाई को प्रेडिक्ट न कर पाना खेती का गणित बिगाड़ देता है। अगर उन्हे पता होता कि पानी ज्यादा रहेगा तो शायद दूसरे प्रकार से खेती करते और फसल और अच्छी लेते!

ऐसी अनेक नावें दिखती हैं इधर उधर आती जाती।

उस पार आप कैसे जाते हैं। आपके पास नाव है?

“मेरे पास नहीं है, पर दो तीन लोग मिल कर एक नाव से काम चलाते हैं। शुरू में मैं रोज सवेरे इस पार काम कर साइकल से उस पार जाता था फाफामऊ पुल के रास्ते। नाव तो बारह हजार की आती है। हम लोग नाव का इस्तेमाल खेती के लिये ही करते हैं। उसके बाद उठाकर घर में रख लेते हैं। कभी कभी सलोरी में बाढ़ आने पर नाव लगती है काम पर। एक नाव (रखरखाव के अनुसार) दस बारह साल चलती है।”

बारह हजार में नाव! अगर यहां रहना है तो मैं एक अच्छी नाव रखने की सोच सकता हूं। एक अच्छी नाव और ड्राइवर के तौर पर दिहाड़ी पर एक नाविक! खूब गंगाजी में घूमा जा सकता है। “वाह,” पत्नीजी कहती हैं – “देखो-देखो, ख्वाब देखने में क्या जाता है”!

खड़े हुये हैं हीरालाल। यह नवम्बर'2009 का चित्र है।

और आप लोगों के साथ दाढ़ी-बाल रखे आदमी  होते थे हीरालाल। कोई मन्नत मान कर केश बढ़ाये थे उन्होने। आजकल कहां हैं?

“वो भी खेती कर रहे हैं। (एक खेत की तरफ दिखा कर) वो उनका खेत है। अभी भी मन्नत पूरी नहीं हुई। बाल बढ़ा ही रखे हैं उन्होने।”

हीरालाल ने हमसे कहा था कि मन्नत लगभग पूरी होने को आई है। यह नवम्बर’2009 की बात है। डेढ़ साल और गुजर गये। लगता है पूरी नहीं  हो पाई मन्नत।

हमें भी उस पार ले चलिये कभी! बचपन में ही बैठे थे नाव पर।

“आप कभी सवेरे आइये। चले चलेगें।”


चिरंजीलाल को मैं डेढ़ डेढ़-दो साल पहले देखा करता था। इस लिये शुरू में उन्हे पहचान न पाया। पर यह जानने पर कि वे चिरंजीलाल हैं, स्मृति ताजा हो आयी। उन्हे मैने आगे बढ़ गले से लगा लिया। गले लगाने पर देखा कि हम लोगों के बीच एक और स्तर का अपनापा आ गया है।

कितने ही ऐसे गंगापुत्र हैं, जिनसे अपनापा होता जा रहा है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

35 thoughts on “चिरंजीलाल

  1. रबर-वबर वाली बेकार है| आपने जो चुनी है वही सही है| कम से कम इस वीडीयो को देखकर तो यही लगता है| ;)

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    1. वाह! वैतरणी में हो यह नाव तो सशरीर लावलश्कर के साथ स्वर्ग जाना संभव हो जाए! :)

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  2. चिरंजीलाल जी के बारे पढ कर अच्छा लगा, ओर आप ने उसे गले लगाया यह बहुत अच्छा लगा, आज कल अच्छे पलस्टिक की नाव बजार मे मिल जाती हे जिस मे चार पांच लोग आराम से बेठ जाते हे, खाली नाव का वजन २ किलो से कम ही होगा, हवा भरो ओर उस नाव को चला लो, वापिस आने पर उस की हवा निकाल दो ओर बगल मे दबा कर घर वापिस ले आओ, ओर इस नाव के संग चापू भी होता हे, यहां सस्ते वाली ३० € के करीब मिल जाती हे ओर टिकाऊ भी होती हे,भारत मे तो ओर भी सस्ती होगी , आप वैसी ही एक ले ले, ओर मजे से गंगा माई की सेर करे.

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  3. किसका दुख देखा जाए! किसान का अपना दुख है और गंगा मैया का अपना कष्ट है. दोनों में से किसी के भी प्रति कठोर नहीं हुआ जा सकता है. क्योंकि दोनों आज के समाज के सबसे सताए हुए वर्गों में हैं. मैं उनकी सोचने लग गया जो इन दोनों को सताने में लगे हैं.

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    1. वैसे कुल मिला कर ये खेती करने वाले गंगामाई के प्रति कृतज्ञ ही हैं! और अधिकांशत: संतुष्ट भी!

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  4. गंगा की गोद में सदियों से ही ये प्रेमपगे सम्बन्ध पल्लवित होते आये हैं। चित्र तो स्वयं में गंगा के सौन्दर्य को व्याख्यायित कर रहे हैं।

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  5. गंगा मैया के बारे में ब्लॉग पर लिखकर आप हमें भी पुण्य दिलवा रहे हैं,

    वैसे कभी कभी ऐसे विचार हमारे मन में भी आते हैं, जैसे आपके मन में नाव को लेकर आते हैं, हमारे मन में हिमालय को लेकर आते हैं।

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  6. गंगा लाईव ………. कमाल है. हम तो अगर गंगा किनारे जाये तो सब्जी तरकारी उपहार स्वरूप मिल जाती है .
    औए एक बात हमारे यहा के अधिक्तर लोग गंगा की पावन भूमि पर देशी शराब का भी खूब उत्पादन करते है

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    1. शराब बनती है, सरकार को मायोपिया है। या मोतियाबिन्द। दिखाई नहीं देती!

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  7. बहुत सुंदर ! शायद गंगामाई के बारे में पढकर ही कुछ पुण्य हमें लग जाये। पूरी बडी नाव की क्या आवश्यकता है? इलाहाबाद के आसपास तो जलराशि में ऊंची नीची लहरें भी नहीं होंगी। ऐसी कयाक लीजिये जिसमें आप और नत्तू पांडे साथ में बैठ सकें और खुद ही खेयेगें तो स्वास्थ्य भी अच्छा बना रहेगा। पालीमर की बनी कयाक को खेना भी बडा आसान होता है।

    नीरज

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      1. पता करता हूं कि ऐसी अंगरेजी चीज यूपोरियन जगह पर मिलती है या नहीं! थोड़ी मन्हगी होगी, तो भी खरीद लूंगा।
        तैरना नहीं आता। इस उम्र में सीखने का यत्न करना चाहिये? पक्का सोच नहीं पा रहा।

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        1. रहने भी दीजिये. लाख रुपये से कम की तो ये आएगी नहीं. चोरी चली जायेगी और कोई प्लास्टिक के भाव बेच देगा!

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        2. खरीद कर अपडेट दीजिये, मैं आपके साथ गंगा विहार की योजना बनाता हूँ :)

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  8. आप तो गंगातीर रहकर धन्य हुए ही, गांगेय-ब्लॉगिंग का प्रसाद हमें भी इसी प्रकार बाँटते रहिये।

    यदि सम्बद्ध सरकारी विभाग किसानों को विश्वास में लेकर काम करें तो उत्पादन भी बढेगा और प्राकृतिक आपदाओंकी विभीषिका भी कम होगी। जनता से असम्पृक्त/पृथक रहकर जन-धन की अपार हानि कर रहे हैं यह अधिकारीगण।

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