प्री-मानसून के प्रथम प्रात: में कालिदास को याद करता हूं। मोहन राकेश को भी याद करता हूं। क्यों? ब्लॉग़ पर कारण बताने की बाध्यता नहीं है। वैसे भी यह साहित्यिक ब्लॉग नहीं है। कल शाम आंधी आई और ओले पड़े। जिसके गांव में बंटाई पर खेती दे रखी गई है, वह तुरंत फोन लगा करContinue reading “प्री-मानसूनस्य प्रथमे प्राते:”
Monthly Archives: May 2011
श्वान मित्र संजय
कछार में सवेरे की सैर के दौरान वह बहुधा दिख जाता है। चलता है तो आस पास छ-आठ कुत्ते चलते हैं। ठहर जाये तो आस पास मंडराते रहते हैं। कोई कुत्ता दूर भी चला जाये तो पुन: उसके पास ही आ जाता है। कुत्ते कोई विलायती नहीं हैं – गली में रहने वाले सब आकारContinue reading “श्वान मित्र संजय”
पिलवा का नामकरण
जवाहिरलाल मुखारी करता जाता है और आस पास घूमती बकरियों, सुअरियों, कुत्तों से बात करता जाता है। आते जाते लोगों, पण्डा की जजमानी, मंत्रपाठ, घाट पर बैठे बुजुर्गों की शिलिर शिलिर बातचीत से उसको कुछ खास लेना देना नहीं है। एक सूअरी पास आ रही है। जवाहिर बोलने लगता है – आउ, पण्डा के चौकीContinue reading “पिलवा का नामकरण”
