झाड़ू


Photo0616_001कोई लड़का घाट की सीढ़ियों पर ट्यूबलाइट का कांच फोड़ता हुआ चला गया था। कांच बिखरा था। इसी मार्ग से नंगे पैर स्नानार्थी जाते आते हैं गंगा तट पर। किसी के पैर में चुभ जाये यह कांच तो सेप्टिक हो जाये।

सवेरे घूमने जाते समय यह मैने देखा। बगल से निकल गये मैं और मेरी पत्नीजी। वापसी में पाया कि वही दशा थी। पण्डाजी बुदबुदा रहे थे लड़कों की इस कारस्तानी पर। जवाहिरलाल निस्पृह भाव से दातुन किये जा रहा था।

हम भी कोस सकते थे जवान पीढ़ी को। पर चुप चाप लौटने लगे। अचानक मुझे कोटेश्वर महादेव जी के मन्दिर के पास एक गुमटी के नीचे एक झाड़ू दिखी। बस, औजार मिल गया। पहले मैने कांच बटोरना प्रारम्भ किया, फिर पत्नीजी ने बटोरा और मैने दूर झाड़ी में ले जा कर फैंका। पांच मिनट लगे हमें यह करते हुये। अगल बगल से लोग आते जाते रहे। मन्दिर और घाट पर आर्थिक रूप से आश्रित लोग देखते रहे।

आज पर्यावरण का कोई दिन है। हमने बस यह किया।

हिन्दू धर्म में कार सेवा का प्रचलन क्यों नहीं है। वह होता तो घाट की सीढ़ियों पर झाड़ू लगाना निकृष्ट काम नहीं माना जाता! :-(


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

24 thoughts on “झाड़ू

  1. काश, सब ऐसे ही कर लेते, कुछ दाग तो और कम हो जाते हमारे समाज पर।

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  2. @ हिन्दू धर्म में कार सेवा का प्रचलन क्यों नहीं है।

    -कोशिश की थी इसे प्रचलन में लाने की अयोध्या काण्ड के दौरान वी एच पी, बजरंग दल और बी जे पी ने- आपने वोट नहीं दिया तो उचित प्रतिफल के आभाव में इस सेवा को प्रचलन से अलग कर दिया गया. ( ध्यान दें कि सेवा तो सेवा ही कहलायेगी चाहे निःस्वार्थ हो या प्रतिफल की अपेक्षा में)

    दूसरी तरफ काले धन को धो पौंछ कर उजली राष्ट्रीय संपदा बनाने वाले कार सेवकों का जो हाल किया गया, भला कौन आयेगा ऐसी कार सेवा करने आगे.

    -आपका और श्रीमती रीता पाण्डे का कार्य उत्कृष्ट एवं अनुकरणीय है, हृदय से साधुवाद-

    एक कैमरा श्रीमती पाण्डे को भी उपलब्ध कराये जाये पाठकों की विशेष मांग पर. :)

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  3. सुंदर।

    ज्ञान जी, आपके ब्‍लॉग का हेडर मछुआरों जैसा लगता है, इसके बारे में कुछ सोचिए।

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    1. वे सब्जी उगाने वाले लोग हैं। उस पार से सब्जी लाने के लिये नाव का प्रयोग करते हैं।

      बहुत से उनमें मल्लाह होंगे। मछली भी पकड़ते हैं। मेरी बहुत सी पोस्टों के पात्र वे हैं! :)

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  4. खुदा खैर करे . आजकल सफ़ाई करने की कोशिश करने वालो को रात में पीटा जाता है

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  5. हिन्दू धर्म में कार सेवा का प्रचलन क्यों नहीं है।
    शायद वर्णाश्रम को कुछ लोगों ने कुछ काम न करने का ही पर्याय समझ लिया है….पता नहीं हम इंसान बनने की शुरूआत कब करेंगे.
    आप दोनों को साधुवाद. अच्छा लगी आपकी पहल.

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  6. करने वाले बहुत कम होते हैं, तमाशाबीन बहुत मिलेंगे॥ एक सामाजिक जिम्मेदारी निभाने के लिए बधाई भाई और भाभी जी को।

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  7. करते हैं लेकिन नगण्य संख्या में और हमारे धर्म में कोई बाइण्डिंग भी नहीं है, इसलिये. और इसके अलावा आलस और स्टेटस भी तो बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं…

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  8. पाण्डेय जी मुझे लगता है की कार्य कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता उसे करने वाला जरुर छोटा या बड़ा हो सकता है. छोटे लोग शायद झाड़ू लगाते इसलिए घबराते हैं क्योंकि उन्हें लगता है इसके बाद कहीं उन्हें झाड़ू लगाने वाला ही न समझ लिया जाय और स्थायी रूप से ये कार्य ही सौप न दिया जाय. उनके भविष्य की चिंता वर्तमान के संकट पर भरी पड़ती है और कांच यथा स्थान पड़ा रहता है तब तक जब तक की कोई ऐसा व्यक्ति न आये जिसे अपने भविष्य पर पूरा विश्वाश हो.

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