इतस्तत: कोयला (धनबाद, बोकारो, फुसरो)


GDP0695धनबाद भारत की कोयला-राजधानी है। मैं इसके आसपास के क्षेत्र – धनबाद-बोकारो-चास-फुसरो में हूं। कुछ जगहों से गुजरा, और कुछ के बारे में सुना – मतारी, निचितपुर, तेतुलामारी, महुदा, जांगरडीह, तुपकाडीह, मऊजा, जोगता, कतरासगढ़। यहां जमीन में जमीन कम कोयला ज्यादा है। कई कई जगह जमीन है ही नहीं, कोयला है। गंगा की बालू और दोमट मिट्टी को जीने वाले के लिये उसकी प्रवृत्ति अनुसार अलग अलग अनुभव देती है यहां की जमीन। जमीन के नीचे से निकले कोयले और सतह पर ऊबड़ खाबड़ खुरदारे पर हरे भरे परिदृष्य में कुछ है जो पास खींचता है।

मैं इस जगह से मोहित हो यहीं रहना चाहूंगा? शायद हां। शायद नहीं। सूखी कोयले की धूल सांस के सहारे ले कर आंतों तक पहुंचाना मुझे गवारा नहीं। और कितनी देर आप वातानुकूलन के सहारे रहेंगे। सही समय शायद बरसात का हो जब कोयले की धूल बैठ जाती हो। चौमासा किया जा सकता है इस इलाके में। उससे ज्यादा शायद नहीं, अगर जीविका बाध्य न कर दे।

GDP0731_001धनबाद से चलते समय ध्यान गया पानी की किल्लत और कोयले पर। लोग सड़क के किनारे म्यूनिसिपालिटी के नल से पानी लेते भीड़ में दिखे। कई जगह साइकलें दिखीं, जिनपर अनेक बालटियां या अन्य बर्तन टंगे थे। इसके अलावा साइकल पर फोड़ ( खदान से निकला कोयला जो कफी देर खुले में जलाने के बाद घरेलू इन्धन लायक बनता है) के गठ्ठर या बोरे ढ़ोते लोग दिखे।

करीब पचास लोग रहे होंगे अपने प्लास्टिक के डिब्बों के साथ पानी की प्रतीक्षा में और करीब 7 से दस क्विण्टल तक ले कर चलते होंगे ये लोग साइकल पर फोड़ को।

मुझे बताया गया कि कल कारखानों में काम करने वाले लोगों की किल्लत है इस इलाके में। लोग साइकल पर अवैध खनन का कोयला ढ़ो कर बहुत कमा लेते हैं कि कल कारखानों में बन्धी बन्धाई तनख्वाह पर काम करना उन्हे रुचता नहीं। और अवैध गतिविधि का आलम तो हर तरफ है। हर पचास मीटर पर एक साइकल पर फोड़ ढ़ोता आदमी दिखा। करीब पचीस तीस किलोमीटर पैदल चलता होगा वह साइकल के साथ। दिन की गर्मी से बचने के लिये सवेरे भोर में निकल लेता होगा। अवैध खनन की प्रक्रिया में जान जाने या चोट लगने का खतरा वह उठता ही है। प्रशासन के छोटे मोटे लोगों को दक्षिणा भी देता ही होगा।GDP0727_001

करीब डेढ़ साल पहले यहां आया था, तब भी कोयला ढ़ोने का यही दृष्य था। अब भी वही था। मेरी पत्नीजी कहती हैं, कितनी फोटो लोगे इन लोगों की। शायद सही कहती हैं – फोटो लेने की बजाय मुझे वाहन रुकवा कर उनसे बातचीत करनी चाहिये। पर ड्राइवर पांड़े रोकता ही नहीं। उसे गंतव्य पर पंहुचने की जल्दी है।

हम सभी गंतव्य की तरफ धकेल रहे हैं अपने आप को। न दायें देखते हैं, न बायें।

अजीब मन है मेरा – फोड़ का अवैध धन्धा करने वालों के प्रति मन में सहानुभूति जैसा भाव है जबकि गंगा के कछार में अवैध शराब बनाने वालों के प्रति घोर वितृष्णा। फोड़ का फुटकर व्यवसाय यूं लगता है मानो इण्डस्ट्रियल सिक्यूरिटी फोर्स और अवैध खनिकों- साइकल पर ले कर चलने वालों का, बहुत बड़ा ज्वाइण्ट सैक्टर का अवैध उपक्रम हो। भ्रष्ट व्यवस्था भी बहुत पैमाने पर रोजगार की जनक है। भ्रष्टाचार से लड़ने वाले जानते होंगे।

फोड़ फुटकर लिमिटेड

केन्द्रीय इण्डस्ट्रियल सिक्यूरिटी फोर्स और

अवैध खनिक गण का संयुक्त उपक्रम (सामाजिक मान्यता प्राप्त) 

लगता है समय बदलता है धारणायें। मैं अपने बदलते नजरिये पर खिन्न भी होता हूं और आश्चर्य चकित भी! पर नजरिये का क्या है, बदलते रहेंगे।

इस क्षेत्र में साइकल का सवारी के रूप में कम, सामान ले जाने के रूप में अधिक प्रयोग होता है। साइकल पर लोग कम्यूट करते नहीं दिखे; पर फोड़, पानी, नये बर्तन, मुर्गियां, फेरी का और घरेलू सामान ले जाते बहुत दिखे। लोगों के पांवों की बजाय साइकल ज्यादा काम करती दीखी।

टाटा मैजिक, मार्शल या ट्रेक्स जैसे चौपहिया वाहन में थन तो मुझे नहीं दिखे पर उन्हे दुहा बहुत जाता है। बहुत से ये वाहन डबल डेक्कर दिखे। ऊपर भी लोग बैठे यात्रा कर रहे थे। ऊपर जो यात्रा करता है, वह भगवान के ज्यादा करीब लगता है। भगवान उसे जल्दी बुला भी लेते होंगे अपने पास। एक वाहन पर तो नीचे और ऊपर एक बैण्ड पार्टी जा रही थी। अपने साज सामान और वर्दी से लैस थे बजनिये। मुझे पिछले वाहन से फोटो लेते देख हाथ हिला हिला कर बाई-बाई करने लगे वे। कौन कहता है कि लोग फोटो नहीं खिंचाना चाहते। शर्त बस यह है कि फोटो खींचने वाला निरीह सा जीव होना चाहिये!

GDP0732_001सड़क के किनारे ओपन कास्ट माइंस से निकले कोयले के मलबे के पहाड़ दिखे। उनपर वनस्पति उग आई है और सयास वृक्षारोपण भी किया जा रहा है। वन विभाग की गतिविधियों ने मुझे बहुत प्रभावित किया। बांस की खपच्चियों से नये रोपे बिरवों के लिए सड़क के किनारे थाले और बाड़ मनोहारी थे। उत्तर-प्रदेश होता हो एक ओर से वन विभाग खपच्चियां   लगाता और दूसरी तरफ से भाई लोग उखाड़ कर समेट ले जाने का पुनीत कर्म करते, सतत। यह झारखण्ड यूपोरियन पुण्य़ात्माओं से संक्रमित नहीं हो पाया है अब तक! केवल मधु कोड़ा जैसे महान ऋषि भर हैं जो जनता को व्यापक स्तर पर अपना आर्यत्व नहीं सिखा सके हैं।

ओह, नहीं। यह पोस्ट तो ज्ञानदत्त पांड़े की पोस्ट साइज से बड़ी हो गयी है। कोई यह न कहने लगे कि चुरातत्व का कमाल है यह।

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मैं पुरानी दो पोस्टें उद्धृत करना चाहूंगा –

फोड़ का फुटकर व्यवसाय 

कतरासगढ़ 


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

28 thoughts on “इतस्तत: कोयला (धनबाद, बोकारो, फुसरो)

  1. ऊपर जो यात्रा करता है, वह भगवान के ज्यादा करीब लगता है- क्या दर्शन है सर जी इस वाक्य में…

    बाकी तो विवरण बेहतरीन, ऑबजर्वेशन सूक्ष्म, विचार व्यापक एवं पोस्ट की लम्बाई उचित है. बधाई.

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  2. लकड़ी की खपच्चियाँ शायद इसलिए सुरक्षित हैं कि वहाँ जलाने के लिए कोयला उपलब्ध है। बाकी मधु कोड़ा का नाम लेकर आपने वहाँ की असलियत का इशारा कर ही दिया है। यूपोरियनों को खामखा बदनाम करने की क्या जरूरत? ये तो टुच्ची चोरी करके नाम खराब करते हैं। बड़े कोयला माफ़िया तो उधरिच होंगे।

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    1. मनोवृत्ति का प्रश्न है। यूपोरियन माहौल में संखिया भी खुला पड़ा रहे तो लोग उसे भी चुरा ले जायें! खपच्ची क्या चीज है! यही मनोवृत्ति अगर झारखण्ड में हो तो खपच्चियां नजर ही न आयें! :-(
      और माफिया? एक ढ़ेला उठाओ, दो निकलते हैं यहां भी!

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  3. देश के चेहरे पर बिजली सी मुस्कान लाने वाले, स्वयं निस्तेज हैं, विडम्बना ही है।

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  4. इतः ततः का प्रयोग यहां-वहां के अर्थ में और सामान्‍यतः संधि कर ‘इतस्‍ततः’ प्रयुक्‍त होता है. यहां शीर्षक में अलग ढंग से प्रयोग किया जाना देख कर ठिठका. (भाषा और संस्‍कृत का खास कुछ अध्‍ययन नहीं है मेरा, अभ्‍यास से जो कुछ समझ पाता हूं, उसी के आधार पर ध्‍यान आकृष्‍ट करा रहा हूं.)

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  5. चकाचक पोस्ट है जी।
    भ्रष्टाचार की महिमा अपरम्पार है!
    फ़ोटो खींचने वाला अपने को निरीह बताने पर काहे तुला है जी! :)

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