झारखण्ड की नदी है दामोदर। सूर्य उसके पूर्वी छोर पर उगते रहे होंगे आदि काल से। उसी नदी के किनारे है एक बनता हुआ मन्दिर परिसर। वर्तमान समय में सूर्य का मुण्डन संस्कार हुआ वहां!
सूर्य यानी विवस्वान। विवस्वान यानी नत्तू पांड़े। पिछले महीने दो साल के हुये थे तो तय पाया गया था कि महीने भर बाद उनका मुण्डन करा कर उनकी चोटी निकाल दी जाये। पेट का बाल एक बार उतर ही जाना चाहिये।
बुद्धिमान बहुत हैं नत्तू पांड़े। रैबिट के बच्चे को मालुम है क्या बोलते हैं? आपको नहीं मालुम न! नत्तू को मालुम है बनी कहते हैं। जब बालक इतना बुद्धिमान हो जाये तो उसका मुण्डन करा ही देना चाहिये!
पर कोई भी संस्कार अब मात्र संस्कार भर नहीं रह गया है। आयोजन हो गया है। और माई-बाबू के लिये तो ईवेण्ट मैनेजमेण्ट में एक अभ्यासयोग। नत्तू के मम्मी-पापा ने ईवेण्ट मैनेजमेण्ट में मुण्डन के माध्यम से मानो पी.एच.डी. कर ली! वाणी (मम्मी) ने जगह जगह घूम कर शॉपिंग की। विवेक (पिता) ने सारे लॉजिस्टिक इंतजाम किये। चूंकि अतिथि गण बोकारो आने वाले थे, सो उनके रहने, भोजन और अन्य सुविधाओं का इंतजाम किया नत्तू के बड़े पापा और बड़ी मां ने।
नत्तू की दादी पूरे कार्यक्रम की अधिष्ठात्री थीं और उनके बाबा, बिकॉज ऑफ बीइंग मेम्बर ऑफ पार्लियामेण्ट, पूरे कार्यक्रम के मुखिया कम चीफ गेस्ट ज्यादा लग रहे थे। समय पर आये। कार्यक्रम की समयावधि गिनी और उसके बाद मुण्डन स्थल के पर्यटन स्थल के रूप में विकास की योजनाओं की घोषणायें कर निकल लिये। सांसद जी की घोषणायें – एवरीवन वॉज़ फीलिंग ह्वाट यू कॉल – गदगद! मैं तो बहुत प्रभावित हूं कि वे सभी से सम्प्रेषण कैसे कर पाते हैं, उस व्यक्ति के स्तर और उसकी अपेक्षाओं के अनुरूप। बिना अपनी बौद्धिक या सामाजिक स्तर की सुपीरियारिटी ठेले!
उनके कार्यकलाप को सूक्ष्मता से देखने के बाद अगले जनम में जो कुछ बनना है, उस लम्बी लिस्ट में एक मद और जुड़ गया – सांसद बनना है!
मुण्डन का स्थल – दामोदर हैं नेपथ्य में |
श्री रवीन्द्र पाण्डेय स्थान के विकास पर कहते हुये |
खैर, अपनी बात की जाये! दमोदर के तीर पर रमणीय वातावरण था। स्थान किसी “बनासो देवी” के मन्दिर परिसर के रूप में विकसित किया जा रहा था। एक पीपल का पेड़ था नदी किनारे। बहुत वृद्ध नहीं था। उसके चबूतरे पर हम लोग उतर कर बैठे। मन्दिर की धर्मशाला के दो तीन कमरे बन चुके थे। उन कमरों से दरी-चादर निकाल कर हम लोगों के लिये बिछाई गयी थी। मन्दिर बन रहा था। दीवारें खड़ी हो गयी थीं और कगूरे के लिये बल्लियां ऊर्ध्व-समांतर जमाई जा चुकी थीं।
मुण्डन समारोह दो-ढ़ाई घण्टे चला। विवस्वान की आजी के कहे अनुसार सब विधि विधान से पूजा-पाठ संकल्प हुआ। बाकी लोग कुनमुनाये कि लम्बा खिंच रहा है! पूजा के बाद नाऊ ने जब कैंची चलानी चाही विवस्वान के बालों पर तो वह इतना रोया-चिल्लाया, मानो कोई उसके गले पर प्रहार कर रहा हो। गाना-बजाना-टॉफी-कम्पट से उसे फुसलाया गया। अंतत: जब उसका रोना नहीं रुका तो पण्डित रवीन्द्र पांड़े, उसके बब्बा ने नाऊ को डपटा, कि जितना कट गया है उतना काफी है, बस!
मुण्डन के पहले नत्तू पांड़े |
मुण्डन के दौरान नत्तू पांड़े |
कुल मिला कर जैसे भेड़ का ऊन बुचेड़ा जाता है, नत्तू का मुण्डन उसी तरह सम्पन्न हुआ। बाल उतर गये। बुआ लोगों ने अपने आंचल में रोपे। पण्डित और नाऊ-ठाकुर दच्छिना पाये। जय श्री राम।
कुछ दूर खड़े गरीब बच्चे यह संस्कार देख रहे थे। मेरे मन में उन्हे दक्षिणा देने का विचार आया। शुरू किया तो दो-तीन थे। पर पैसा देने लगा तो कुकुरकुत्ते की तरह कई अवतरित हो गये। बच्चे ही नहीं, किशोर भी आ मिले उनमें!
रात में विवेक-वाणी ने रात्रि भोज दिया। उसमें बच्चों के मनोरंजन के लिये मदारी बुलाया गया था। सबसे बढ़िया मुझे वही लगा। उसके प्रहसन में बन्दर (मिथुन) दारू-गांजा पी कर जमीन पर लोटता है, पर अंतत: बन्दरिया (श्रीदेवी) उससे शादी कर ही लेती है।
दारू-गांजा सेवन करने के बाद भी श्रीदेवी मिलती है। जय हो मदारीदेव!
आसनसोल और धनबाद मण्डल के दो वरिष्ठ रेल अधिकारी सांसद महोदय के दामाद हैं – मनोज दुबे और विनम्र मिश्र। मेरा ब्लॉग यदाकदा ब्राउज़ कर लेते हैं। उनका कहना था कि एक पोस्ट अब नत्तू पांड़े के मुण्डन पर आयेगी और एक मदारी पर। जब कोई इतना प्रेडिक्टेबल लिखने लगे तो उसके पाठक कम होने लगेंगे जरूर। लिहाजा मैं मदारी पर अलग से पोस्ट गोल कर दे रहा हूं! :)


इस मामले में मेरे दोनों ही बच्चों ने पूरा सहयोग किया, यद्यपि मेरे माता-पिता बताते हैं कि मैंने बाल उतारने वाले सज्जन के मुंह पर नाखूनों से रेखायें बना दी थीं.
मनुष्य का लालच एक दिन उसे निगल जायेगा, आज मानव नदी, जंगल, पहाड़ सब खाता जा रहा है, कल प्रकृति उसे निगलेगी साबुत-सालिम.
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अपना मुण्डन तो मुझे भी याद नहीं। पर इस संस्कार में उत्सव का तत्व तो बहुत होता है। उसकी स्मृतियां बहुत पहले की हैं।
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तो ब्राह्मण का एक और संस्कार हो गया… सिम्बोलिक ही सही हुआ तो है… वैसे अब पूरे बाल उतारने चाहिए… इससे बुद्धि को हवा लग सकेगी :)
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आपके बाल रहित फोटो से प्रेरणा ली जा सकती है सिद्धाथ जी – ब्राह्मण, विद्वान और सिर मुंडाया हुआ!
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अब खोपड़ी में आयेंगे बुद्धिदायक बाल, तब चमकेगा चेहरा शैतानी के तेज में।
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वाह! बुद्धिदायक बाल! एक नये ब्राण्ड का तेल चलाया जाये – नवरतन तेल की तर्ज पर बुद्धिदायक तेल! उसके ब्राण्ड अम्बेसडर के रूप में आइंस्टीन की बाल बिखराये फोटो रखी जाये।
खोला जाये एक ज्वाइण्ट वेंचर?! :)
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नत्तू पाण्डेय भी मुड़ गये ! वाह! बधाई!
आप अपनी तमाम चाहतों की एक लिस्ट बनाकर प्राथमिकतायें तय करके एक पोस्ट में डाल दें। ताकि हम भी इकट्ठे शुभकामनायें दे सकें। :)
बाकी चकाचक है!
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इच्छायें हैं। इच्छाओं का क्या। अब कहें कि सुकुल से बेहतर और लम्बा लिखना प्राथमिकता है तो होगा नहिये न! :lol:
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कामनाएं और शुभकामनाएं पूरक सी हैं ! नत्तू जी तो अब पूर्णतया परिचित हो चुके हैं ! बधाई ! ;)
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सुकुल से बेहतर लिखने की इच्छा तो बहुत दिन से पूरी हो रही है लगातार! लम्बा लिखना बचा था सो वो भी हो गया। कम से कम एक इच्छा तो पूरी हो ली। बकिया के बारे में बताया जाये! :)
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बहुत गदगदानुभूति हो रही है बन्धु! कम से कम एक मनई तो है जो हमारी इच्छा-लिस्ट उगलवाना चाहता है। नहीं तो ब्लॉग जगत में जिसे देखो, अपनी ही इच्छा-लिस्ट ठेलता पाया जाता है! :lol:
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सारे परिवार को बधाई .. नत्तू पांडेय को आशीर्वाद .. “बनासो देवी” के मन्दिर परिसर के पर्यटन स्थल के रूप में विकास होने के बारे में जानकर अच्छा लगा .. वहां से हमारे निवास स्थान की दूरी छह किमी से अधिक नहीं है !!
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संगीता जी, आप भविष्य में बनासो धाम जा कर बताइयेगा कि सांसद महोदय ने वहां कुछ करवाया या नहीं! :)
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बधाई नत्तू पाण्डेय के झण्ड की। यहाँ हरियाणा में पंजाबी में मुण्डन को झण्ड कहते हैं और इसका बड़ा महत्व है।
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धन्यवाद श्रीश, आपके माध्यम से नया शब्द पता चला – झण्ड!
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अच्छा तो अब पता चला की “झंड हो गयी” का मतलब क्या है
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Well, if Niraj ji, you have name AGHORI it is fascinating!
मेरे ब्लॉग में एक पात्र है अघोरी। विलक्षण, पर वैसा नहीं जैसे आप हैं मित्र!
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लोजी नत्तु के बाल भी कटवा डाले.. लेकिन मुंडन के बाद वाले नत्तु पांडे नहीं दिखे?
“जब बालक इतना बुद्धिमान हो जाये तो उसका मुण्डन करा ही देना चाहिये!” जय हो!
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पूर्ण मुण्डन तो तीन दिन बाद नत्तू की आजी ने किया! उस समय मैं था नहीं वहां। वाणी को बोलता हूं चित्र भेजे!
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जब कोई इतना प्रेडिक्टेबल लिखने लगे तो उसके पाठक कम होने लगेंगे जरूर। लिहाजा मैं मदारी पर अलग से पोस्ट गोल कर दे रहा हूं
Anurag ji ne bahut sahi kaha hai , unki baat se mai bhee sahamat hoon.
to pathako ki bhari demand par aap ek post madari par bhee likh hi dijiye .
दारू-गांजा सेवन करने के बाद भी श्रीदेवी मिलती है
aab kya kaha jaye , jada kuch kah bhee nahi sakate
abhee mere paas option hai , lagta hai daaru pina suru kar hi dena chahiye :-) :-)
अगले जनम में जो कुछ बनना है, उस लम्बी लिस्ट में एक मद और जुड़ गया – सांसद बनना है!
aap issi janam me try kariye , sayad desh ka kuch bhala ho jayega .
kabhee kabhee to mujhe bhee josh aa jata hai ki sab kuch chod kar politics join kar loon . vaise Allahabad me Dr. Milan Mukharji ne bhee election lada tha . hame to bahut umeed thee unase , but vo haar gaye the .
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दारू गांजा से मिली श्रीदेवी क्या काम की! इस ऑप्शन की सोचना भी मत गौरव! :-)
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इस पोस्ट में आम भारतीय परिदृष्य उभरता है। मुझे अपने और अपने बेटे के मुंडन संस्कारों का स्मरण हो आया। सांसद बनना आप ने अगले जन्म की सूची में लिख लिया यह अच्छा है। वैसे रिटायरमेंट के बाद बनने वाली सूची क्या वेटिंग में चली गयी है क्या या वहाँ नो रूम हो गया है?
सांसद का आपने मनभावन रूप ही देखा है। उस के पीछे के नियोजन संयोजन शायद नहीं देखे।
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मैने श्री रवीन्द्र पाण्डेय की पिछले चुनाव में की गई मेहनत देखी है। झारखण्ड में भाजपा हार रही थी और वे अपने बूते पर जीते। अगर जीतने का इतना बड़ा संकल्प न होता, तो सम्भव ही न होता। उतना जद्दोजहद का माद्दा शायद मुझमें नहीं ही है!
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@एवरीवन वॉज़ फीलिंग ह्वाट यू कॉल – गदगद! मैं तो बहुत प्रभावित हूं कि वे सभी से सम्प्रेषण कैसे कर पाते हैं, उस व्यक्ति के स्तर और उसकी अपेक्षाओं के अनुरूप।
अरे वे भी तो ग्रैंडपा हैं आपकी तरह, सो सम्प्रेषण भी करते हैं (आपकी तरह)। पोस्ट बहुत अच्छी लगी। जहाँ तक प्रेडिक्टेबिलिटी का सवाल है, “कैसे लिखा जायेगा” ज़्यादा महत्वपूर्ण है ” क्या लिखा जायेगा” से। मदारी प्रकरण वाली पोस्ट तो आनी ही चाहिये – सचित्र हो तो सोने में सुहागा।
Thanks in anticipation!
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यह आपने बहुत महत्वपूर्ण बात कही –
इसी प्रसंगमें ही नहीं, अन्यथा भी याद रखने की चीज़।
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