
चार दिन पहले जवाहिर लाल गंगाजी की धारा के पास रेती में बैठा दिखा था। सामान्यत वह सवेरे घण्टा भर पण्डाजी की चौकी के बगल में कछार को छूते तट के करार की जमीन पर बैठा मुखारी करता पाया जाता था। पण्डा जी ने बताया कि एक दो दिन पहले उसकी फलाने परसाद से कहा सुनी हो गयी थी। संवेदनशील है जवाहिरलाल सो अपनी जगह से ही हट गया।
मैने उसके पास जा कर उसे मनाने की कोशिश की, पर नाकाम रहा। वह बोला – ईंही ठीक बा। हवा लागत बा। (यहीं ठीक है, हवा लग रही है।)

लुंगी पहने, गमछा कन्धे पर रखे और दांतों में मुखारी दबाये जवाहिरलाल को किसी से क्या? बातचीत करने को सूअर, कुकुर और बकरियां काफी हैं। फक्कड़ी! पर उसने मेरी मनौव्वल को सम्मान दिया। बात बदलते हुये, गमछा शरीर पर फटकारते हुये बोला – सरये, मच्छर इंहूं लागत हयें। बहुत होइ ग हयें। सम्मइ बंहिया चबाइ लइ ग हयें! (साले, मच्छर यहां भी लग रहे हैं गंगा की रेती में भी। बहुत हो गये हैं। समूची बांह चबा ले गये हैं।)
जवाहिरलाल के पास बैठा कजरा कुकुर निस्पृह भाव से बैठा रहा। मेरी साभ्रांतता से पूर्णत: अप्रभावित! मैं उन्हे छोड़ अपनी सैर पर निकल गया। वापसी में पण्डाजी ने कहा – आपने जवाहिर से बात कर ली, अच्छा किया।
[जवाहिर लाल के व्यक्तित्व को समझने के लिये पुराने लिंक पर जा पोस्टें पढ़ना फायदेमन्द होगा। वह शिवकुटी घाट का मुख्य चरित्र है।]
आज गंगाजी बहुत बढ़ गयी हैं। कछार की रेती गायब हो गयी है। जवाहिरलाल को अब हार कर अपनी पुरानी जगह बैठना होगा। अच्छा है!
बताते हैं संगम पर लेटे हनुमान जी के फाटक के समीप तक आ गयीं हैं गंगा माई। लगता है कई सालों बाद लेटे हनुमान जी को छू लेंगी।
जय गंगा माई!

पालागी गुरुवर, लाइव प्रसारण के लिए कोटिशः धन्यवाद , जवाहिरलाल को पूरी तरह से
पड़ कर जन नहीं लूँगा बेचनी बनी रहेगी .
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यह जान कर प्रसन्नता हो रही है कि आपको मेरा ब्लॉग पसन्द आ रहा है, गिरीश जी। धन्यवाद।
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पुरा डूब गया हूँ , कृपा कर के मेरे ग्रामर (याद नहीं हा रहा है हिंदी शब्द ..व्याकरण ) त्रुटी को
सुधार कर पड़ने का कस्ट करियेगा …गिरीश
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इस समय कई नदियों में जल-स्तर बढ़ रहा है, लेकिन आदमी है कि उसकी आंखों में जो शर्म का पानी होता है उसका स्तर निरन्तर गिरता ही जा रहा है, मौसम भले ही कैसा भी हो…
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जी हां। गंगाजी को मारने वाले उद्योग हैं, पर उससे ज्यादा आम आदमी हैं। वे नारा गंगाजी की जै का लगाते हैं पर हैं पूरे स्वार्थी।
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जवाहरलाल को कहिए ओडोमॉस लगाये
हिन्दी के प्यारे और शरारती एसएमएस
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ओडोमॉस? जवाहिर का बस चले तो या तो राख मल ले या फिर गंगाजी की रेती! 🙂
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जवाहिर जैसे हमरे भाग भी भयें कि आप हमसे भी बात करें कभी….अच्छा हो!!जय गंगा माई!
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आप से मिलने तो आये थे जी, स्टेशन! कलमाडी की तरह डिमेंशियाये क्यों जा रहे हैं आप! 😆
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इत्ता इत्ता दिन पर मिलियेगा…तो डिमेंशियायेंगे ही न!!! 🙂
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जवाहिर लाल से बात करना आसान काम है?
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द्विवेदी जी,
ज्ञान जी ने जवाहिरलाल को अच्छी तरह बाटली में उतारा है …. तभी वो उससे इतने सहज तरीके से मिल पाते हैं 🙂
वरना इस तरह के कैरेक्टर से इतना सहज हो बात करना हर किसी के लिये मुश्किल होगा।
ज्ञान जी की ‘बाटलीकरण’ पर आधारित पोस्ट यह रही 🙂
http://halchal.gyandutt.com/2009/10/blog-post_25.html
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द्विवेदीजी परिचित जरूर होंगे जवाहिरलाल से। काफी समय से उसके बारे में लिखा नहीं, तो शायद भुला गये हों! बात करने में वह कुछ विचित्र है जरूर!
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यही देखने आया था कि गंगा माई कितनी बढी..यहाँ अलर्ट ताकि कर दिया जाय !
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रोचक! मिश्र जी मेरे ब्लॉग की न्यूज वैल्यू भी है!
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लेटे हुए हनुमान के बारे में भी कुछ बताईये।
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लेटे हनुमानजी की एक विशाल प्रतिमा संगम स्थल पर वहां की धरती/रेत में है। पहले गंगा/यमुनाजी लगभग हर साल बढ़ कर उस प्रतिमा तक आती थीं, अब वह सिलसिला टूट गया है। इस बार कयास है कि गंगाजी लेटे हनुमानजी को छू लेंगी। आप यह फेसबुक पेज देखें।
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जवाहिर से बात हो गयी, सबका मन हल्का हो गया। अब इन मच्छरों का क्या किया जाये, जवाहर को काटा है!
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मच्छर अपनी जिन्दगी जियेंगे ही!
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शुभ प्रभात!
गंगा, रेती, मच्छर, जवाहिरलाल, पण्डाजी के साथ कजरा कुकुर का निस्पृह भाव और आपकी सभ्रांतता, पढना अच्छा लगा।
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धन्यवाद!
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आपने जवाहिर से बात कर ली, अच्छा किया।
आपने इसके बारे में हमको बता दिया और अच्छा किया।
जय गंगा माई! 🙂
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बताने के सिवाय ब्लॉगर क्या करे? 🙂
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