अनिल की इस साल की उपज

उस पार से उपज ला कर ऊंट पर लादता किसान परिवार।

आज शाम रविवार होने के कारण गंगातट पर चला गया। शाम को लोग ज्यादा होते हैं वहां और रविवार के कारण और भी थे। कोटेश्वर महादेव पर सब्जियां बिक रही थीं। कछार की निकली – नेनुआ, लौकी, कोन्हड़ा, छोटा तरबूज, करेला, ककड़ी  …

घाट पर एक परिवार देखा जो उसपार से कई बोरे नाव से ला कर उतरा था और वे बोरे ऊंट पर लाद रहा था। दो जवान लोग, एक आधा-तीहा घूंघट वाली महिला और दो छोटी फुदकती बच्चियां। बहुत सनसनी में थीं बच्चियां। बड़े भी। इस साल की अपनी उपज उसपार से ला कर घर जाने की तैयारी में थे। एक बड़ी बोरी का अनाज दो बोरी में किया जिससे ऊंट पर लादने में सही रहे। अनाज पलटने का काम इस प्रकार से कर रहे थे वे कि कोई ठीक से देख न पाये कि क्या और कैसा है।

निश्चय ही साल भर की फसल पर वे नहीं चाहते थे; कि कोई नजर लगे।

मैने कई कोण से नाव, उनके और ऊंट के चित्र लिये। लगभग बीस पच्चीस चित्र। सांझ होने को थी। सूरज डूबने जा रहे थे फाफामऊ के पुल के उस पार।

बड़े आदमी ने बच्चियों को ललकारा – जाउ घरे। सोझ्झई सोझ जाये। नाहीं त मारब गोदा गोदा! (जाओ घर। सीधे सीधे जाना। नहीं तो डण्डा डण्डा मारूंगा।)

कुछ देर बाद वे दोनो आदमी भी ऊंट लाद कर चल दिये। पहले मैं उनके आगे चल रहा था, फिर उस बड़े से बात करने के लिये ऊंट के पीछे हो लिया।

… पर मुझे पक्का यकीन है, अगले साल भी अनाज तो बोयेगा ही वह। साल भर की खुराकी कैश क्रॉप की भेंट नहीं चढ़ाने देगी उसकी पत्नी या उसकी परिस्थितियां। अनाज तो साल भर के बीमे के बराबर है।

बड़े का नाम है अनिल। उसपार से जितनी अनाज की उपज हुई है वह लगभग तीन फेरा लगायेगा ऊंट ले जाने को। अनिल ने बताया कि फसल अच्छी हुई है। “पर फसल के चक्कर में आदमी की गत बन जाती है। मुझे ही देख लीजिये, मानो कबाड़ से निकला होऊं! आज ही समझ लीजिये सवेरे का निकला हूं, थक कर चूर हो गया था, तो वहीं सो गया। शाम तीन बजे उठा तो खाना खाया!” अनिल यह कह तो रहा था, पर उसकी आवाज में संतोष और प्रसन्नता दोनो झलकते थे। वह बीड़ी फूंक रहा था, जिसकी गन्ध मेरे नथुनों में जा रही थी। और कोई समय होता तो मैं अलग हट गया होता तुरंत। पर तब साथ साथ चलता गया बात करते। और एक बार तो इतना प्रसन्न हुआ कि अनिल की पीठ पर हाथ भी रख दिया। पता नहीं क्या समझा होगा अनिल ने!

ढ़ाई कदम साथ साथ चलने पर लोग मित्र हो जाये हैं, मैं तो उसके साथ चार-पांच सौ कदम चला, सो मित्र ही हुआ उसका।

रास्ते में अपने जोड़ीदार से अगले साल की खेती के मनसूबे शेयर कर रहा था अनिल – समझो कि अगली साल ई सब नहीं, सब्जी ही बोजेंगे उस पार। … पर मुझे पक्का यकीन है, अगले साल भी अनाज तो बोयेगा ही वह। साल भर की खुराकी कैश क्रॉप की भेंट नहीं चढ़ाने देगी उसकी पत्नी या उसकी परिस्थितियां। अनाज तो साल भर के बीमे के बराबर है।

आस पास की खेती करने वाले लोगों से बोलता बतियाता चल रहा था अनिल। आज महत्वपूर्ण दिन जो था उसके लिये।

मैने पूछा, अब क्या करोगे? उसने जवाब दिया कि इस पार सब्जी बो रखी है। उसकी देखभाल तो चलेगी। कुल मिला कर अभी दो महीने के लिये गंगाजी की शरण में खेती का काम है उसके पास। फिर शायद नाव काम आये मछली पकड़ने में!

बहुत प्रसन्नता हुई अनिल से मिल कर। आपको भी हुई?

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

8 thoughts on “अनिल की इस साल की उपज

  1. अनिल से मिलकर बड़ी खुशी हुई जी !!!
    किसान की फसल अच्छी होना, पूरे देश के लिए खुशहाली की बात है |
    उसे भी वैसी ही खुशी हुई होगी अपने मेहनत के रंग लाने पर, जैसे कभी कभी ठीक-ठाक रेटिंग मिल जाने पर एक आई-टी इंजिनीयर को होती है :) :) :)

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  2. अनिल को उसके श्रम का अर्थ मिला, जाड़ों की कड़कड़ाती ठंड में खेतों में पानी डालना और गर्मियों में फसल काटना, ऐसी ही कठिनताओं से भरी है खेती।

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  3. अहा! अनिल का अहसास क्या रहा होगा, महसूसने को मन होता है, आखिर ऐसे अनिल को दोस्त कम ही मिलते हैं।

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  4. और एक बार तो इतना प्रसन्न हुआ कि अनिल की पीठ पर हाथ भी रख दिया। पता नहीं क्या समझा होगा अनिल ने!

    हम्‍म
    बात करते करते कि‍सी के भी कंघे पर हाथ रख देने की आदत मेरी भी है…. मुझे भी सोचने की ज़रूरत है

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