मोहिन्दर सिंह गुजराल

Mohinder Singh Gujral

रेलवे का कोई अधिकारी और विशेषत: रेलवे यातायात सेवा का अधिकारी स्वप्न देखता है अपने काम में श्री मोहिन्दर सिंह गुजराल की बराबरी करने का। श्री गुजराल भारतीय रेलवे के अध्यक्ष थे 1980-83 के समय। उससे पहले वे पश्चिम रेलवे के महाप्रबन्धक थे।

सन 1980 का समय कठिन था। श्रीमती गांधी ने आर्थिक सुधार के लिये कुछ पहल की थी। रेलवे से अपेक्षायें थीं। रेलवे की मालढुलाई का स्टॉक विविध प्रकार का था। मालगाड़ियां ज्यादा लम्बी दूरी तय नहीं कर पाती थीं। जितना वे चलती थीं, उससे ज्यादा समय मार्शलिंग यार्डों में बिताती थीं!

गुजराल जी ने अध्यक्ष बनने पर अपनी पुरानी ख्याति के अनुरूप चमत्कारिक परिवर्तन किये। माल गाड़ियां लम्बी दूरी तय करने लगीं। वैगनों की उपलब्धता में चमत्कारिक सुधार हुआ और उसके फलस्वरूप रेलवे का लदान/आमदनी में आशातीत विस्तार हुआ।

जब मैने रेलवे ज्वाइन की तब श्री गुजराल रेल सेवा से निवृत्त हो चुके थे। मैं उनसे एक बार मिला हूं। उस समय मैं कोटा रेल मण्डल का वरिष्ठ मण्डल परिचालन प्रबन्धक था। श्री गुजराल पास के गड़ेपान/भौंरा के चम्बल फर्टिलाइजर के सलाहकार थे। वे हमारे मण्डल रेल प्रबन्धक महोदय से मिलने आये थे। चूंकि उनकी चर्चा में चम्बल फर्टिलाइजर का यूरिया परिवहन का मुद्दा होना था, मण्डल रेल प्रबन्धक महोदय ने मुझे बुला लिया था बैठक के लिये।

उस समय मेरे सामने भी चम्बल फर्टीलाइजर के लदान के लिये वैगनों की किल्लत हुआ करती थी। मैं छोटी दूरी के यातायात के लिये कोटा की वैगन वर्कशाप से निकले किसी भी तरह के खुदरा वैगनों की रेल बना कर उनको लदान के लिये दे दिया करता था। वह रेक शिवजी की बारात सरीखी लगती थी – कोई कवर्ड, कोई खुला, कोई मिलीटरी के वाहन लादने वाला और कोई शेरपा वैगन! पर जो भी वैगन मिलता, चम्बल फर्टीलाइजर वाले लोड करते थे।

मुझे लगा कि यह रेलवे यातायात की स्थापित विज्डम के खिलाफ था, अत: गुजराल महोदय अपनी अप्रसन्नता जरूर जाहिर करेंगे। यद्यपि वे रिटायर हो चुके थे, हम सब के मन में उनकी बहुत इज्जत थी। कुछ खौफ भी था।

खैर, गुजराल जी ने कोई अप्रसन्नता जाहिर नहीं की और जहां तक मुझे याद आता है, मेरी प्रशंसा ही की।

पर थे वे बड़े पक्के सरदार जी! जाते जाते मुझे कोने में बुला कर धीरे से बोले – काका (बच्चे), भौंरा के यार्ड में एक वैगन तीन महीने से पड़ा है, जरा देख लेना!

गुजराल अगर रेल सेवा में होते तो तीन महीने से अनाथ पड़े वैगन की बात पर अधिकारियों की ऐसी तैसी कर देते…

खैर, मैं सन 1996 में उनसे हुई यह मुलाकात सदैव याद रखूंगा।

गत चार मई को श्री गुजराल का निधन हो गया है। आज जो रेलवे की दशा है, उसमें एक नये गुजराल की सख्त जरूरत है।

श्री महिन्दर सिंह गुजराल को हृदय से श्रद्धांजलि।

(आप बिजनेस स्टेण्डर्ड में यह लेख पढ़ें।)

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

14 thoughts on “मोहिन्दर सिंह गुजराल

  1. प्रेरक व्यक्तित्व!! विनम्र श्रद्धांजलि।

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  2. गुजराल जी को हार्दिक श्रध्दांजलि. २० दिन से ज्यादा हो रहे हैं कोई नई पोस्ट नहीं है. क्या बात है? स्वास्थ्य तो ठीक है न?

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    1. स्वास्थ्य इतना बढ़िया नहीं, पर इतना खराब नहीं कि न लिखा जा सके। :-(
      यत्न करता हूं!

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  3. गुजराल साहब के बारे में जानकर अचछा लगा ऐसे लोगों की वजह से ही सरकारें चलती हैं केवल खडी नही रहती । गिरती तो बिलकुल नही । पर आपने भी काम को फोकस में रख कर माल डुलाई के लिये हर तरह के वैगन इस्तेमाल करके काम पूरा किया आप जैसे कर्मठ अधिकारियों को नमन ।

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