
हम लोग मेरे लड़के के विवाह के लिये मिर्जापुर की ओर बढ़ रहे थे। कई कारों में परिवार के लोग। परस्पर मोबाइल सम्प्रेषण से तय पाया गया कि गोपीगंज के आगे चील्ह में जहां गंगाजी का पुल पार कर मिर्जापुर पंहुचा जाता है, वहां रुक कर चाय पीने के बाद आगे बढ़ा जायेगा।
चील्ह में सभी वाहन रुके। एक गुमटी वाले को चाय बनाने का आर्डर दिया गया। गुमटी पान की थी, पर वह चाय भी बनाता था। गुमटी में पान मसाला के पाउच नेपथ्य में लटके थे। एक ओर बीकानेरी नमकीन के भी पाउच थे। सामने पान लगाने की सामग्री थी।

चाय इतने बड़े कुल्हड़ में वह देता था, जिससे छोटे कुल्हड़ शायद बना पाना एक चुनौती हो कुम्हार के लिये। एक टीन के डिब्बे में कुल्हड़ रखे थे। मैने उससे पूछा – कितने के आते हैं ये कुल्हड़?

अपनी दुकान की चीजों की लागत बताने में हर दुकानदार थोड़ा झिझकता है, वैसे ही यह भी झिझका। फिर बोला – बीस रुपये सैंकड़ा की सप्लाई होती है।
दिन भर में कितने इस्तेमाल हो जाते हैं?
कोई कोई दिन दो सौ। कोई कोई दिन तीन सौ।
तब तो तुम्हारी ज्यादा आमदनी चाय से होती होगी? पान से भी होती है?
वह युवा दुकानदार अब मुझसे खुल गया था। बोला – चाय से भी होती है और पान से भी।
मैने पीछे लगे पानमसाला के पाउच दिखा कर कहा – इनसे नहीं होती? ” इनसे अब बहुत कम हो गई है। पहले ज्यादा होती थी, तब ये आगे लटकाते थे हम, अब पीछे कर दिये हैं। अब दो तीन लड़ी बिक पाती हैं मुश्किल से।”
उसे मैने सुप्रीम कोर्ट के आदेश – पानमसाला प्लास्टिक के पाउच में नहीं बेचा जा सकता – के बारे में बताया। “अभी भी पूरी तरह कागज का पाउच नहीं है। कागज के पीछे एक परत है किसी और चीज की।” – उसने मुझे एक पाउच तोड़ कर दिखाते हुये कहा।
उसकी चाय अच्छी बनी थी – आशा से अधिक अच्छी। दाम भी अच्छे लिये उसने – चार रुपये प्रति छोटा कुल्हड। पर देने में कोई कष्ट नहीं हुआ हम लोगों को – बारात में जाते समय पर्स का मुंह वैसे भी आसानी से खुलने लगता है!
चलते चलते मैने उससे हाथ मिलाया। नाम पूछा। सुशील।
उससे आत्मीयता का परिणाम यह हुआ कि जब हम अगले दिन विवाह के बाद लौट रहे थे तो पुन चील्ह में चाय पीने सुशील की गुमटी पर रुके। जाते समय सांझ हो गयी थी, सो गुमटी का चित्र नहीं लिया था। आते समय सवेरे के नौ बज रहे थे। चित्र साफ़ आया।
साथ चलते अजय ने पूछा – अब सुशील भी ब्लॉग पर आ जायेगा?
मैने जवाब दिया – देखता हूं। ब्लॉग आजकल उपेक्षित सा पड़ा है। उसपर जाता है सुशील या फ़ेसबुक या ट्विटर पर। अन्तत: पाया कि सुशील “मानसिक हलचल” पर ही जमेगा।

पिछली टिप्पणी शायद खो गयी, इसलिये एक बार फिर से बधाई स्वीकारिये!
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खुशखबरी के लिये आपको हार्दिक बधाई! अजय जी ने सवाल पूछकर अच्छा किया, सुशील से परिचय हुआ।
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शादियाँ में काहे नहीं बुलाये पत्नी उलाहना दे रही हैं कि अकेले ही सारा लेडुआ खा गए ?
नव दंपत्ति को शुभकामनायें !
पत्नी इसी बहाने मायका हो आतीं -भुनभुना रही हैं !
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यह उलाहना बहुत से लोग देंगे।
मैं एक छोटी सी बारात चाहता था – ५-१० लोगों की। लिहाजा सिर्फ़ कुटुम्ब के लोग ही थे। तब भी ३५-४० हो गये।
किफ़ायत, बिना दहेज, साधारण.. इन सब के मेल के कारण बहुत से लोग भुनभुना रहे हैं। क्या किया जाये?
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अब तो सुशील की चाय पिने का दिल कर रहा है
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यात्रा-डायरी के ऐसे छोटे-छोटे नोट्स, रोजमर्रा की जिन्दगी की विस्तृत कथाऍं बडी ही सहजता से कह जाते हैं।
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साधारण पात्रों को असाधारण रूप से प्रस्तुत करने का जो हुनर आपके पास है वो और किसी के पास नहीं…बेटे के विवाह की बधाई हमसे स्वीकारें…मिलने पर आपसे लड्डू हम स्वीकारेंगे…
नीरज
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it is a rare occasion to see a paan gumti also selling cups of tea!
multitasking ka zamana aa gaya hai ab!
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dadda sochta hoon ‘gaon’ jate waqt kabhi allahabad me hum bhi apse mil loon ……. is-se itta to hoga hi ke mujhe apke blog pe jagah mil jayega aur apke blog ko ek post “mithlanchal ka sanjay”
mangalik karya ke anek subhkamnayen cha badhaieeyan
pranam.
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और कित्ता स्थान लोगे भाई ‘मिथिलांचल के संजय’?
टिप्पणियाँ पाने के लिए साम-दाम-दंड-भेद अपनाते हम हिन्दी ब्लोगर्स के बीच हमारा नामराशि ‘दधीचि ‘ से कम नहीं, टिपियाता है लेकिन औरों से कुछ लेता नहीं|
सोचा था तुम पर एक पोस्ट लिखने की, अब फैसला मुल्तवी| तुम्हारी इच्छा बड़े कैनवास की है:))
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संजय अद्भुत चरित्र होते हैं – महाभारत में भी, जिन्दगी में भी, ब्लॉग में भी और टिप्पणी में भी! 🙂
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सुशील को भी बधाई…. मानसिक हलचल पर ‘स्पेशल अप्पिरेंस’ वाला रोल मिला 🙂
शुभकामनाएं.
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मैं इंतेज़ार में था कि कब आएगी पोस्ट अंततः ख़त्म हुआ; वरना तो ऐसा लगाने लगा था कि आपको अपने one liner की छवि ज़्यादे अच्छी लग रही है ब्लॉगर वाली छवि से.
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