ज़कात कैल्क्युलेटर

मेरे सहकर्मी श्री मंसूर अहमद आजकल रोज़ा रख रहे हैँ। इस रमज़ान के महीने में उपवास का प्रावधान है इस्लाम में – उपवास यानी रोज़ा। सुबह से शाम तक भोजन, जल/पेय और मैथुन से किनारा करने का व्रत।

श्री मंसूर अहमद मेरे डिप्युटी चीफ ऑपरेशंस मैनेजर हैं जो माल यातायात का परिचालन देखते हैं। अगर मैं ब्लॉग/ट्विटर/फेसबुक पर अपनी उपस्थिति बना सकता हूं, तो उसका कारण है कि ट्रेन परिचालन का बड़ा हिस्सा वे संभाल लेते हैं।

श्री मंसूर अहमद, उप मुख्य परिचालन प्रबन्धक, उत्तर-मध्य रेलवे, इलाहाबाद।

कल श्री मंसूर ने सवेरे की मण्डलों से की जाने वाली कॉंफ्रेंस के बाद यह बताया कि इस्लाम में ज़कात का नियम है।

ज़कात अर्थात जरूरतमन्दों को दान देने का इस्लाम का तीसरा महत्वपूर्ण खम्भा [1]। इसमें आत्मशुद्धि और आत्म-उन्नति दोनो निहित हैं। जैसे एक पौधे को अगर छांटा जाये तो वह स्वस्थ रहता है और जल्दी वृद्धि करता है, उसी प्रकार ज़कात (दान) दे कर व्यक्ति अपनी आत्मिक उन्नति करता है।

ज़कात में नियम है कि व्यक्ति अपनी सम्पदा (आय नहीं, सम्पदा) का 2.5% जरूरतमन्द लोगों को देता है। यह गणना करने के लिये रमज़ान का एक दिन वह नियत कर लेता है – मसलन रमज़ान का पहला या दसवां या बीसवां दिन। उस दिन के आधार पर ज़कात के लिये नियत राशि की गणना करने के लिये वैसे ही स्प्रेड-शीड वाला कैल्क्युलेटर उपलब्ध है, जैसा आयकर की गणना करने के लिये इनकम-टेक्स विभाग उपलब्ध कराता है! मसलन आप निम्न लिंक को क्लिक कर यह केल्क्युलेटर डाउनलोड कर देख सकते हैं। वहां ज़कात में गणना के लिये आने वाले मुद्दे आपको स्पष्ट हो जायेंगे। लिंक है –

 ज़कात कैल्क्युलेटर की नेट पर उपलब्ध स्प्रेड-शीट

मैने आपकी सुविधा के लिये यह पन्ना नीचे प्रस्तुत भी कर दिया है। आप देख सकते हैं कि इसमें व्यक्ति के पास उपलब्ध सोना, चान्दी, जवाहरात, नकद, बैंक बैलेंस, शेयर, व्यवसायिक जमीन आदि के मद हैं। इसमें रिहायश के लिये मकान (या अव्यवसायिक जमीन) नहीं आता।

श्री मंसूर ने मुझे बताया कि व्यक्ति, जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या 52 तोला चान्दी के बराबर या अधिक हैसियत है, उसे ज़कात देना चाहिये। लोग सामान्यत: अपने आकलन के अनुसार मोटे तौर पर ज़कात की रकम का आकलन कर दान देते हैं; पर यह सही सही भी आंका जा सकता है केल्क्युलेटर से।

ज़कात देने के बाद उसका दिखावा/आडम्बर की सख्त मनाही है – नेकी कर दरिया में डाल जैसी बात है। यह धारणा भी मुझे पसन्द आयी। [आपके पास अन्य प्रश्न हों तो मैं श्री मंसूर अहमद से पूछ कर जवाब देने का यत्न करूंगा।]

आप ज़कात कैल्क्युलेटर का पन्ना नीचे स्क्रॉल करें!


[1] इस्लाम के पांच महत्वपूर्ण स्तम्भ – 

  1. श्रद्धा और खुदा के एक होने और पैगम्बर मुहम्मद के उनके अन्तिम पैगम्बर होने में विश्वास।
  2. नित्य नमाज़ की प्रणाली।
  3. गरीब और जरूरतमन्द लोगों को ज़कात या दान देने का नियम तथा उनके प्रति सहानुभूति।
  4. उपवास के माध्यम से आत्मशुद्धि।
  5. जो शरीर से सक्षम हैं, का मक्का की तीर्थ यात्रा।

[उक्त शब्द/अनुवाद मेरा है, अत: सम्भव है कि कहीं कहीं इस्लाम के मूल आशय के साथ पूरा मेल न खाता हो।]


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

29 thoughts on “ज़कात कैल्क्युलेटर

  1. इस्लाम के जो पांच स्तम्भ आपने लिखे हैं, ठीक बिलकुल वैसे ही हैं.”The Alchemist” में भी इनका ज़िक्र है. धर्म कोई भी हो सारांश सबका लगभग येही है. सब धर्म इश्वर में आस्था, भाई चारा, गरीबों की मदद, शांति का सन्देश देतें हैं. आपने जिस तरह से लिखा है वो एक छाप छोड़ जाता है. ..

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      1. अहमद साहब से पूछिए ‘क्या वक्फ बोर्ड ज़कात से प्राप्त दान का हिसाब रखता है?’ और यह भी कि कितने संपन्न मुस्लिम विधिवत ज़कात देते हैं? यदि चौथाई/आधे भी देते हों तो भारत में अधिकांश मुस्लिम परिवार बेहाली के शिकार क्यों हैं?

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        1. श्री मंसूर अहमद से तो मैं सोमवार को मिलने पर पूछूंगा, पर इस साइट पर एक पाकिस्तानी सज्जन जवाब दे रहे हैं –

          Many Muslims around the world either don’t pay Zakat, pay it reluctantly or cut corners to minimize the due amount. Some Muslims living in high tax areas feel Zakat overburdens them after paying direct and indirect taxes. This attitude is of course due to weakness in faith as many Muslims have not understood the principles of Zakat and what good it can do for the Muslim community.
          There is so much wealth in the Muslim world that if all Muslims, on whom Zakat is due, pay their fair share and it is distributed honestly to the deserving than no Muslim will face extreme poverty and hunger as we see in so many countries these days. It will also eliminate the need for Western aid which usually comes with strings attached and sometimes for the purpose of spreading Christianity.

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        2. मैं किताबों में लिखी बातों को अक्षरशः सच नहीं मानता, फिर भी सुधीजनों को बता दूँ कि १९९२ के कर्फ्यू के दिनों में इलाहाबाद के अपने घर के पास एक ग़रीब, मुस्लिम, सायकिल पंचर जोड़ने वाले को अन्य ग़रीब मुस्लिमों के घर पर चावल, गेंहू बांटते देखा है।

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  2. कैल्क्युलेटर के बारे में नई जानकारी मिली। लेकिन सभी के पास कैल्क्युलेटर नहीं होता। कोई प्रबंध समीति होगी जो दान लेकर जन सेवा करती होगी। उनका ज़कात निर्धारण वे समीतियाँ करती होंगी। या तय करती होंगी कि तुम्हें इतना ज़कात देना है। ज़कात किसे देते हैं यह आपने स्पष्ट नहीं किया।

    शुद्ध आय ही संपदा मानी जाती है। आर्थिक चिट्ठे में शुद्ध आय संपत्ति पक्ष में आता है। अतः यह कहना कि आय से ज़कात नहीं काटा जाता गलत है। हाँ, वर्ष के उस आय से जो संपूर्ण खर्चा काटकर शुद्ध बचती है, संपदा बनती है, उस आय से ज़कात काटा जाता है।

    बढ़िया पोस्ट के लिए आभार।

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    1. गरीब, जरूरतमन्द की बात कही थी श्री मन्सूर ने। बाकी उनसे पूछ कर बताऊंगा!

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    2. श्री मन्सूर जी ने बताया कि गरीब/जरूरतमन्द चयन के लिये पहले अपने किसी गरीब/जरूरतमन्द रिश्तेदार, फिर अपने पड़ोसी, वह न होने पर मदरसा, जिसमें विद्यार्थी हॉस्टल में रह कर शिक्षा पाते हैं – को यह जकात दिया जा सकता है। वह न होने पर किसी अन्य गरीब/जरूरतमन्द का चयन हो सकता है।

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  3. अमरीका में, उत्‍तराधि‍कारी को उत्‍तराधि‍कार में प्राप्‍त संपत्‍ति‍ पर 35 प्रति‍शत कर देना होता है, इस तरह उसके पास केवल 65 प्रति‍शत संपत्‍ति‍ ही बचती है. उस समाज में बराबरी लाने का ये उनका अपना तरीक़ा है…

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  4. अमरीका में, उत्‍तराधि‍कारी को उत्‍तराधि‍कार में प्राप्‍त संपत्‍ति‍ पर 35 प्रति‍शत कर देना होता है. उत्‍तराधि‍कारी को 65 प्रति‍शत संपत्‍ति‍ ही बचती है. उस समाज में बराबरी लाने का ये उनका अपना तरीक़ा है…

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  5. सोचते हैं कि जोड़ के देखें कि कित्ते बचे! :)

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  6. अच्छा हुआ कि अपन को कैलकुलेटर इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं पड़ती वर्ना तो कित्ते ठुक जाते आज !

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    1. जकात और दान-धर्म तो समाज में पैरासाइटों (पोंगा-पंडितों, मुल्ला-मौलवियों, फादर-पादरियों इत्यादि इत्यादि…) को पालने पोसने का ही काम करते हैं, और इसे डिजाइन ही इस तरह मुलम्मा लगाकर किया गया है कि धर्मभीरू आदमी फंसता ही फंसता है. शुक्र है कि हममें भी यह भीरुता नहीं आई है.

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      1. बिल गेट्स या वारेन बफेट की दान वृत्ति को किस कोण से लिया जायेगा?

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        1. मैं धर्म आधारित जबरिया दान धर्म की बात कर रहा हूँ :)

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        2. ओह, मुझे अभी यह नहीं पता चला कि ज़कात न देने पर इस्लाम क्या दण्ड देता है, अगर देता है, तो!

          [पनिशमेण्ट के बारे में गूगल सर्च कर पता चला कि कुराअन में नर्क में दण्ड की बात है – कुछ वैसा ही जैसा पुराणों में कुम्भीपाक नरक छाप वर्णन है। … और हिन्दुओं में कुम्भीपाक की कितने लोग फिक्र करते हैं?]

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      2. जनाब रवि साहब , सच्चा धार्मिक व्यक्ति वो होता है जो
        ये माने की जो कुछ उसे मिला है इश्वर ने ही दिया है
        और जब सब कुछ इश्वर अल्लाह का ही है तो उसमे से केवल 2.5 % गरीब जरुरत मंद को देना कितना बड़ा बोझ होगा
        हर इन्सान पर जकात फ़र्ज़ नहीं है , केवल उस पर है जो इस काबिल हो
        और ज़कात किसी मुल्ला या मदरसों को नहीं दी जाती
        ज़कात के पैसो पर पहला हक गरीब मजलूम का है
        वो बात अलग है की आज के कल युग में धर्म को अपना कर्म मान कर चलने वाले लोग है कहा , लेकिन फिर भी कई है , में हर साल ज़कार ऐडा करता हु और मेने देखा है की ये पैसा उस लोगो के लिए क्या मायने रखता है जिनको दिया जाता है
        अगर आपको लगता है की ज़कात देना भीरुता है तो ये आपके अपने विचार है , वरना इश्वर ने सबको एक जेसा नहीं बनाया
        किसीको धन दिया किसीको मन दिया और फिर आज़माइश है की
        आप चीजों को कीस नज़रिए से देखते है
        में ब्लॉग लिखने वाले की तहे दिल से इज्जत करता हु

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