मेरी ट्रेन कानपुर से छूटी है। पूर्वांचल की बोली में कहे तो कानपुर से खुली है। खिड़की के बाहर झांकता हूं तो एक चौड़ी गली में भैसों का झुण्ड बसेरा किये नजर आता है। कानपुर ही नहीं पूर्वी उत्तरप्रदेश के सभी शहरों या यूं कहें कि भारत के सभी (?) शहरों में गायें-भैंसें निवसते हैं।Continue reading “शहरी भैंसें”
Monthly Archives: Sep 2012
बरसात का उत्तरार्ध
कल शाम गंगाजी के किनारे गया था। एक स्त्री घाट से प्लास्टिक की बोतल में पानी भर कर वापस लौटने वाली थी। उसने किनारे पर एक दीपक जलाया था। साथ में दो अगरबत्तियां भी। अगरबत्तियां अच्छी थीं, और काफी सुगंध आ रही थी उनसे। सूरज डूब चुके थे। घाट पर हवा से उठने वाली लहरेंContinue reading “बरसात का उत्तरार्ध”
ठहरी हुई नाव और सतरंगा मोरपाखी
यह एक उपन्यास है। औपन्यासिक कृति का पढ़ना सामान्यत: मेरे लिये श्रमसाध्य काम है। पर लगभग पौने दो साल पहले मैने श्रीमती निशि श्रीवास्तव का लिखा एक उपन्यास पढ़ा था – “कैसा था वह मन”। उस पुस्तक पर मैने एक पोस्ट भी लिखी थी – कैसा था वह मन – आप पढ़ कर देखें! अबContinue reading “ठहरी हुई नाव और सतरंगा मोरपाखी”
खजूरी, खड़ंजा, झिंगुरा और दद्दू
शुरू से शुरू करता हूं। मिर्जापुर रेस्ट हाउस से जाना था मुझे झिंगुरा स्टेशन। मिर्जापुर से सीधे रास्ता है नेशनल हाई-वे के माध्यम से – ऐसा मुझे बताया गया। पर यह भी बताया गया कि वह रास्ता बन्द है। अत: डी-टूर हो कर जाना होगा वाया बरकछा। सवेरे मैने विण्ढ़म फॉल देखा था। यह नहींContinue reading “खजूरी, खड़ंजा, झिंगुरा और दद्दू”