एक शाम की रपट

आज शाम जल्दी घर लौटना हो गया। यह साल में एक या दो ही दिन होता है। मैने अपना बेटन लिया और गंगा किनारे चल दिया। चाहता था कि धुंधलका होने से पहले गंगा जी तक पंहुच जाऊं तो जल्दी में कैमरा लेना भी भूल गया। पर जेब में मोबाइल फोन था, कामचलाऊ चित्र खींचने के लिये।

धुंधलका नहीं हुआ था, पर दूर संगम किनारे लाइटें जल गयी थीं। शिवकुटी घाट से यह तीन चार किलोमीटर दूर होगा – कौआ उड़ान के हिसाब से। अब अगले शनिवार को यत्न करूंगा वहां जाने का।

दूर दिखती संगम क्षेत्र की लाइटें!
दूर दिखती संगम क्षेत्र की लाइटें!

खेत में चिरंजीलाल दिखे। उनका आधे से ज्यादा खेत तो पानी बढ़ने के कारण नष्ट हो चुका है। उन्होने बताया कि बचे हुये में भी गंगा किनारे के एक तिहाई पौधे तो मरे बराबर हैं। उनकी जड़ों में काफी पानी आ गया है। किनारे से डेढ़ सौ गज दूर हट कर भी एक खेत बनाया है उन्होने जिसमें गड्ढा खोदने पर पानी मिल गया है और उसमें पौधे ठीक ठाक हैं। इसके अलावा नदी उसपार बोया है गेहूं। उसकी फसल भी अच्छी नहीं है। इस साल बारिश बहुत बाद में हुई, सो कुछ नुक्सान हो ही गया पानी की कमी से।

कुल मिला कर गंगा में पानी छोड़ना, किसी बन्धे की टूट से ज्यादा पानी आ जाना और बारिश की कमी से चिरंजीलाल की फसल अच्छी नहीं हो पाई इस साल। पिछली साल उन्होने बताया था कि वे जब खेती नहीं कर रहे होते तो बढ़ई का काम करते हैं। इस साल उस काम पर उनकी निर्भरता ज्यादा रहेगी।

चिरंजीलाल के खेत के आगे वह जगह है जहां दो दिन पहले तक कच्ची शराब का कारखाना चलता था। आज वहां कोई नहीं था। भट्टी हट चुकी थी। अधजली लकड़ियां पड़ी थीं। वातावरण में शराब की गंध थी। जमीन में गाड़ कर शराब जरूर दबी होगी वहां पर। धुंधलका हो चला था। फिर भी उस जगह का चित्र मैं ले पाया।

कच्ची शराब बनाने का क्षेत्र। अधजली लकड़ियां। छोटे ढूह के नीचे संभवत: शराब दबी है।
कच्ची शराब बनाने का क्षेत्र। अधजली लकड़ियां। छोटे ढूह के नीचे संभवत: शराब दबी है।

कच्ची शराब की बात चली तो अपने मित्र का सुनाया एक चुटकला याद आ गया। एक कस्बाई नौजवान अंग्रेजी बोलने की कोचिंग क्लास में ट्रेनिंग ले रहा था। उसने सोचा अपनी मंगेतर को अंग्रेजी बोल कर इम्प्रेस करे। अकेले में उससे बोला – अंग्रेजी चलेगी?

लड़की शरमाई, मुस्कुराई। बोली – साथ में नमकीन और काजू हों तो देसी भी चलेगी! :lol:

मेरे ख्याल से उनका चुटकला शायद समय से पहले का है। आज से दस साल बाद यह शायद ज्यादा सहज लगे।


वापसी में देखा तो अंधेरा हो चला था। संगम की लाइटें और भी चमकदार हो गयी थीं। वातावरण में सर्दी नहीं थी। पैदल चलने से पसीना हो आया था। घर आते आते मैं थक गया था!

वापसी में देखा तो अंधेरा हो चला था। संगम की लाइटें और भी चमकदार हो गयी थीं।
वापसी में देखा तो अंधेरा हो चला था। संगम की लाइटें और भी चमकदार हो गयी थीं।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

8 thoughts on “एक शाम की रपट

  1. खादर में तो देसी ही चल रही है चकाचक.. :)

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  2. चुटकुला आज भी दमदार है।

    और “कौवा-उड़ान का हिसाब” बातचीत में इस्तेमाल करने लायक है। :)

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