द्रौपदी आज रिटायर हुई

दो साल पहले मैने दो पोस्टें लिखी थीं – दफ्तर की एक चपरासी द्रौपदी पर – १. बुढ़िया चपरासी और २. बुढ़िया चपरासी – द्रौपदी और मेरी आजी। उसे सन १९८६ में अपने पति के देहावसान के बाद अनुकम्पा के आधार पर नौकरी मिली थी पानी वाली में। लम्बे समय तक वह हाथरस किला स्टेशन पर काम करती थी। इस दफ्तर में पिछले चार साल से बतौर चपरासी काम कर रही थी। आज वह रिटायर हो गयी। उसके रिटायरमेण्ट के समय मै उसका चित्र खींचना भूला नहीं। 

देखने में वह छोटे कद की है – वैसी जैसे मेरी आजी लगा करती थीं। यह रहा उसका आज का चित्र – वह कुर्सी पर बैठी है और उसके विषय में लोग अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं।

द्रौपदी आज रिटायर हुई - रिटायरमेण्ट फंक्शन में बैठी द्रौपदी।
द्रौपदी आज रिटायर हुई – रिटायरमेण्ट फंक्शन में बैठी द्रौपदी।

रिटायरमेण्ट के अवसर पर उसे एक प्रशस्ति-पत्र, शाल, रामायण की प्रति और एक सूटकेस भेंट किया गया। वह यहीं मनोहरगंज की रहने वाली है। तीन मार्शल गाड़ियों में बैठ उसके परिवार वाले भी आये थे, इस समारोह में उपस्थित होने के लिये। मुझे बताया गया कि उसके गांव में आज भोज का भी आयोजन है – करीब चार सौ लोगों को न्योता दिया गया है।


आपको शायद पुरानी पोस्ट याद न हो। मैं वह पूरी पोस्ट नीचे पुन: प्रस्तुत कर देता हूं –

बुढ़िया चपरासी – द्रौपदी और मेरी आजी

( २० फरवरी २०११)

बुढिया चपरासी
गलियारे में धूप सेंकती बुढ़िया चपरासी

पिछली पोस्ट में मैने अपने दफ्तर की एक बुढ़िया चपरासी के बारे में लिखा था। आप लोगों ने कहा था कि मैं उससे बात कर देखूं।

मैने अपनी झिझक दूर कर ही ली। कॉरीडोर में उसको रोक उसका नाम पूछा। उसे अपेक्षा नहीं थी कि मैं उससे बात करूंगा। मैं सहज हुआ, वह असहज हो गयी। पर नाम बताया – द्रौपदी।

वह इस दफ्तर में दो साल से है। इससे पहले वह सन 1986 से हाथरस किला स्टेशन पर पानीवाली थी। पानीवाली/पानीवाले का मुख्य काम स्टेशन पर प्याऊ में यात्रियों को पानी पिलाना होता है। इसके अतिरिक्त स्टेशन पर वह अन्य फुटकर कार्य करते हैं।

वहां कैसे लगी तुम पानीवाली में? मेरे इस प्रश्न पर उसका उत्तर असहजता का था। वह अकारण ही अपनी साड़ी का आंचल ठीक करने लगी। पर जो जवांब दिया वह था कि अपने पति की मृत्यु के बाद उसे अनुकम्पा के आधार पर नौकरी मिली थी। उस समय उसका लड़का छोटा था। अत: उसे नौकरी नहीं मिल सकती थी। अब लड़का बड़ा हो गया है – शादी शुदा है।

इलाहाबाद के पास मनोहरगंज के समीप गांव है उसका। उसके पति पांच भाई थे। करीब दो बीघा जमीन मिली है उसे। लड़का उसी में किसानी करता है।जिस तरह से उसने बताया – संतुष्ट नहीं है किसानी से।

बाइस साल तक द्रौपदी अपने गांव से चार सौ किलोमीटर दूर हाथरस किला में नौकरी करती रही। अब भी लगभग पच्चीस तीस किलोमीटर टैम्पो से चल कर दफ्तर आती है। शाम को इतना ही वापसी की यात्रा! उसके अलावा मनोहरगंज से दो मील दूर है उसका गांव – सो रोज चार मील गांव और मनोहरगंज के बीच पैदल भी चलती है।

सरकारी नौकरी ने आर्थिक सुरक्षा जरूर दी है द्रौपदी को; पर नौकरी आराम की नहीं रही है। फिर भी वह व्यवहार में बहुत मृदु है। सवेरे आने में देर हो जाती है तो अपने साथ वाले दूसरे चपरासी को एक बिस्कुट का पैकेट उसके द्वारा किये गये काम के बदले देना नहीं भूलती।

ठेठ अवधी में बोलती है वह। खड़ी बोली नहीं आती। मैने भी उससे बात अवधी में की।

अपनी आजी याद आईं मुझे उससे बतियाते हुये। ऐसा ही कद, ऐसा ही पहनावा और बोलने का यही अन्दाज। “पाकिस्तान” को वे “पापितखान” बोलती थीं। मैं पूछ न पाया कि द्रौपदी क्या कहती है पाकिस्तान को!

आजी तो अंत तक समझती रहीं कि बिजली के तार में कोई तेल डालता है कहीं दूर से – जिससे बल्ब और पंखा चलते हैं। पर द्रौपदी बिजली का मायने कुछ और जरूर समझती होगी।

मनोहरगंज
मनोहरगंज

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

16 thoughts on “द्रौपदी आज रिटायर हुई

  1. दिल्ली जैसे बड़े शहरों के कई दफ्तरों में हर महीने का आखिरी दिन आैर जगह नियत है जहां उस महीने रिटायर होने वालों को विदा कर दिया जाता है. गेंदे की माला, रिटायर होने वालों के लिए कुर्सियां, मुख्य अतिथि, भाषण, फ़ोटोग्राफ़र, चाय समोसा बगैहरा की एक ड्रिल है, जो तय है, बस जितने आदमी रिटायर हो रहे होते हैं, उतने से ही गुणा कर दिया जाता है. जिस किसी के डिपार्टमेंट का कोई रिटायर होता है वहां से कुछ लोग आ जाते हैं. बाक़ी किसी को कोई फ़ुर्सत नहीं. वहां कुछ एेसी कहावते हैं कि अगर किसी की कुर्सी खाली मिले तो वह छुट्टी पर होगा,या वह ट्रांसफ़र हो गया हो गया होगा, यह वह रिटायर हो गया होगा या फिर मर गया होगा… दुनिया एेसे भी चल रही है. छोटे श्हरों में स्थिति कहीं बेहतर है.

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  2. सहसा लगता है कि कल आज जैसा नहीं रहेगा, रिक्त कैसे भरेगा, दृश्य अदृश्य हो जायेगा। द्रौपदीजी को शुभकामनायें, २६ वर्ष तक परिवार को सशक्त रूप से सम्हाल कर रखा है उन्होंने, अब परिवार उन पर पूरा ध्यान दे।

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  3. अनुकंपा आधार पर नियुक्ति देने में शायद रेलवे का कोई मुकाबला नहीं, अपने कर्मचारियों के विपत्तिग्रस्त परिवारों को यह एक बहुत बड़ा सहारा होता है। कभी बैंकों में भी ऐसी नियुक्ति स्वाभाविक थी, लेकिन अब हालात बहुत बदल चुके हैं। आशा है रेलवे ने अपना यह मानवीय चेहरा अब तक बचा रखा होगा।

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    1. अनुकम्पा के आधार पर नियुक्ति और मैडीकली डी-केटेगराइज्ड लोगों को वैकल्पिक जॉब देने को रेलवे में पूरी गम्भीरता से लिया जाता है।

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  4. Good one sir….she reminds me of my great grand mother…and organizing a farewell for her… was indeed a great effort….

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  5. पुरानी पोस्ट भी पढ़ी, दुबारा पढ़ कर अच्छा लगा .
    मेहनत तो करनी पड़ी पर ख़ुशी है कि एक सम्मानजनक जीवन जिया द्रौपदी ने
    द्रौपदी को आगामी जीवन की शुभकामनाएं .

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    1. I think it is a matter of our conscious, which is holy and therefore jerk us to inform that we are not doing any thing good for humanity.

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  6. सर , पता नहीं क्युओं , किसी के रिटायर होने के बारे में पड़ कर थोडा सा दुःख होता है , मेरे पिता जी के रिटायर होने पर मुझे दुखद अनुभव हुआ क्यूँ कि पिता जी एक अध्यापक थे , जीवन भर इमानदारी की नौकरी करने के बाद रिटायर होने के समय , पेंशन के कागज बनवाने के लिए उन्हें मैंने परेशान होते हुए देखा है , और किस तरह बाबुओं को कागज पूरे करने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है , उम्मीद है रेलवे के ऑफिस में ऐसा नहीं होता होगा . द्रौपदी जी को भविष्य के लिए शुभकामनाएं

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    1. मेरे ख्याल से रिटायरमेण्ट मामलों में रेलवे में भ्रष्टाचार नहीं है। कम से कम सीधे सीधे मामलों में तो नहीं ही है, जिनमें अन्तिम दिन रिटायरमेण्ट के कागज और पैसे के चेक के साथ विदाई मिलती है।
      इण्डीवीजुअल मामलों में “बाबूगिरी” से इन्कार नहीं किया जा सकता।

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  7. रिटायरमेन्ट लड़की के ससुराल जाने की तरह है. अब सामाजिक कर्तव्यों दायित्वों के निर्वहन का समय आ गया द्रौपदी का.

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    1. समारोह में कुछ असहज थी, पर अपने आप को बहुत अच्छी तरह कण्डक्ट कर रही थी द्रौपदी। आशा है आगे का समय अच्छा गुजरेगा उसका…

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  8. उनसे जुड़ी पोस्टें पढ़ी थीं हमने। आज दोबारा बांची। दौप्रदी का आगे का समय ठीक से बीते। मंगलकामना है यही।

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    1. कॉरीडोर में दिख जाने पर वह सावधान खड़ी हो कर हाथ जोड़ नमस्ते करती थी – नमस्कार साहेब कहते हुये। कल वह नहीं दिखेगी…

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