किसी ने कछार में खेत की बाड़ बनाने में एक खोपड़ी लगा दी है। आदमजात खोपड़ी। समूची। लगता है, जिसकी है, उसका विधिवत दाह संस्कार नहीं हुआ है। कपाल क्रिया नहीं हुई। कपाल पर भंजन का कोई चिन्ह नहीं।
भयभीत करती है वह। भयोत्पादान के लिए ही प्रयोग किया गया है उसका।
कछार में घूमते हुये हर दूसरे तीसरे देख लेता हूँ उसे। जस की तस टंगी है उस बल्ली पर। कई चित्र लिए हैं उसके।
आपके लिये ये दो चित्र प्रस्तुत हैं-