“मोदी पसन्द है। पर लोग उसे बनने नहीं देंगे!”

लोकभारती में कल सयास गया। दफ़्तर से लौटते समय शाम के सात बज जाते हैं। सिविल लाइन्स से उस समय गुजरते हुये मैने हमेशा लोकभारती को बन्द पाया। इस बीच पुस्तकें खरीदने का काम भी इण्टरनेट के माध्यम से चला। अत: लोकभारती गये सात आठ महीने हो गये थे।

कुछ दिन पहले द हिन्दू में पढ़ा कि मुंशी प्रेमचन्द की विरासत संभाले हुये दो तीन लोग हैं। उनमें से प्रमुख हैं श्री उदय प्रकाश। उदय प्रकाश जी की जिस पुस्तक का द हिन्दू ने जिक्र किया था वह है – The Walls of Delhi, प्रकाशक Hachette (2013)|

मैं हिन्दी के लेखक को अन्ग्रेजी में नहीं, हिन्दी में पढ़ना चाहता था। अंग्रेजी में तो फ़्लिपकार्ट पर खरीद लेता। हिन्दी में भी वहां उनकी कुछ पुस्तकें थीं, पर मैने सोचा कि पुस्तकें उलट-पलट कर खरीदी जायें। अत: लोकभारती जाने की सोची।

श्री दिनेश ग्रोवर, लोकभारती, इलाहाबाद के मालिक।
श्री दिनेश ग्रोवर, लोकभारती, इलाहाबाद के मालिक।

लोक भारती में दिनेश जी मिले। अपनी जगह पर बैठे हुये। श्री दिनेश ग्रोवर का जिक्र मेरे ब्लॉग में कई बार आया है। उनसे पहली मुलाकात को साढ़े पांच साल हो चुके

अब वे तिरासी वर्ष के होने वाले हैं (उनका और मेरा जन्मदिन एक ही है! वे मुझसे पच्चीस साल बड़े हैं।)। पर उस उम्र में उनके जैसी ऊर्जा किसी में दिखना एक बहुत ही सुखद अनुभव है। न केवल उनमें ऊर्जा है, वरन वे घटनाओं, स्थानों और विषयों के बारे में बहुत गहन जानकारी भी रखते हैं और अपने विचार भी।

वहां मैने लगभग पांच सौ रुपये की किताबें खरीदीं। उसके अलावा दिनेश जी ने पिलाई कॉफी। उस काफी पीने के समय उनसे विविध चर्चा भी हुई।

मैने पूछा – आप किसे प्रधानमन्त्री के रूप में देखना चाहेंगे?

देखना तो मैं मोदी (नरेन्द्र मोदी) को चाहूंगा। पर उसे बनने नहीं देंगे। उसकी पार्टी वाले ही नहीं बनने देंगे!

अच्छा?!

पार्टी में तो बाकी को वह संभाल ले, पर अडवानी को संभालना मुश्किल है। अडवानी की अपनी लालसा है प्रधान मन्त्री बनने की। … मीडिया को तो बिजनेस वाले चलाते हैं। वे सारे मुंह पर तो मोदी के समर्थन की बात करते हैं, पर अन्दर ही अन्दर काटने में लगे हैं। टाटा को छोड़ दें, तो बाकी सारे मोदी से बेनिफिट तो लेना चाहते हैं; उसकी सख्ती कोई झेलना नहीं चाहता।

बीजेपी में ही ज्यादा तर एम.पी. नहीं चाहते मोदी को। सब जिस ढर्रे पर चल रहे हैं, उसे बदलना नहीं चाहते। राष्ट्रवादी मुसलमान मोदी को वोट देगा। … मुझे लगता है मोदी सबको एक आंख से देखेगा। पर ये बाकी सारे मोदी को नहीं बनने देना चाहते।

देश को जरूरत सख्त आदमी की है। मोदी का विकास का अजण्डा बहुत सही है। पर पॉलिटिक्स में जो लोग हैं और बिजनेस में जो लोग हैं, उनको यह नहीं चाहिये।

अच्छा, मानो परसेण्टेज की बात करें। रुपया में कितना आना सम्भावना लगाते हैं आप मोदी के प्रधानमन्त्री बनने की?

दिनेश जी ने थोड़ा सोचा, फिर कहा –

… पच्चीस पैसा भी नहीं।

अच्छा? चार आना भी नहीं?

लोग बनने नहीं देंगे।

दिनेश जी बहुत आशावादी व्यक्ति हैं। बहुत हंसमुख और बहुत जीवन्त। तिरासी साल के व्यक्ति में एक जवान आदमी का दिमाग है। पर इस मामले पर वे बहुत ही पक्के दिखे कि लोग बनने नहीं देंगे।

बीजेपी में मोदी बाकी सब को संभाल ले, पर अडवानी को नहीं संभाल पायेगा। अडवानी की जोड़ तोड़ का पार नहीं पायेगा। उसके अलावा जितने और हैं – सबकी फैमिली पल रही हैं। मुलायाम-लालू फैमिली बढ़ा रहे हैं। उन सबको पसन्द थोड़े ही आयेगा कि एक आदमी परिवार की बात के खिलाफ़ जाये।

फ़िर सब यह सोचते हैं कि और कोई आये तो एक टर्म या उससे कम का होगा। उसके बाद भी कुछ जोड़ तोड़ की पॉसिबिलिटी रहेगी। मोदी आया तो तीन टर्म के लिये बैठ जायेगा। इतने लम्बे समय के लिये कोई कमान देना नहीं चाहता…

श्री दिनेश ग्रोवर, मेरी पुस्तकों का बिल बनाते हुये।
श्री दिनेश ग्रोवर, मेरी पुस्तकों का बिल बनाते हुये।

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मैं सोचता हूं कि अभी कुछ भी हो सकता है। पर दिनेश जी ने जो कहा, वह मैने आपके सामने रखा। क्या होगा, समय बतायेगा। यह जरूर है कि दिनेश जी की बात को हल्के से नहीं लेना चाहिये।


टेलपीस-

कविता, तुम मरोगी। 
फेसबुक पर 
कट्टे और तोपें
जब तुम्हे दागने लगेंगे
तब तुम हो जाओगी बुझा कारतूस। 
कविता, तब तुम मरोगी!

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

16 thoughts on ““मोदी पसन्द है। पर लोग उसे बनने नहीं देंगे!”

  1. पोस्ट ने कई बातें याद दिलाईं। आडवाणी, जेठमलानी, टाटा, बाटा के मन में किस समय क्या चल रहा है, भविष्य की गर्त में क्या और कितना छिपा है, और वह कब कैसे प्रस्फुटित होगा, इस सब की सटीक और 100 फीसदी गारंटीशुदा जानकारी रखने वाला आत्मविश्वास भारत में अक्सर देखने को मिलता था। भारत छूटने के बाद से उस आत्मविश्वास के दर्शन दुर्लभ हो गए हैं। जो देश जयप्रकाश नारायण में सम्पूर्ण क्रान्ति ढूँढता था, मार्क्स को विचारक समझता था, वह मोदी में नायक ढूँढे तो आश्चर्य की कोई बात नहीं है। बल्कि माओवाद,आतंकवाद, मजहबवाद, कम्युनिस्ट चीन का नियमित एनक्रोचमेंट, रोज़ नए घोटाले, बिना बिजली के थोक बिलोत्पादन, मानव तस्करी, गरीबी, रिश्वत, आदि से ट्रस्ट जनता हर तरफ भगवान ढूंढ रही है। एक पुराना लतीफा याद आया –
    ग्राहक – अच्छा, तो इस किताब में 25 प्रतिशत सच है, 25 प्रतिशत झूठ, बाकी का 50 प्रतिशत क्या है?
    दुकानदार – जी 50% की छूट

    देश डिस्काउंट पर चल रहा है, नेताओं को भी डिस्काउंट देना पड़ेगा।

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  2. अगर आग न हो तो सोना भी नहीं निखरता, मोदी के चुनौतियां हैं, होनी भी चाहिए…बेहतर ही है, क्योंकि भारतीय राजनीति के पारिवारिक ड्रामे में अपनी जमीन बना कर ऊपर चढ़ा आदमी इतनी आसानी से देश के सर्वोच्च सत्ता पद पर कैसे काबिज़ हो सकता है…लेकिन मौदी का चुनौतियों को लेकर सकारात्मक भाव ही उनको सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर ले जाएगा….अच्छा है जो घर से चुनौतियां मिल रही हैं, इससे पार पाना परिपक्वता को बढ़ाएगा…मैं तो मोदी के शिखर पर जाने को लेकर आश्वस्त हूँ…..आपन एक टिप्पणी के उत्तर में सटीक कहा है…”समय” पर छोड़ना ठीक होगा…

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  3. यही तो राजनीति है जिसे समझ पाना आम आदमी के बस की बात नहीं। बाकी ग्रोवर जी के इस कथन से कि अपने ही लोग बनने नहीं देंगे, सहमति है।

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  4. प्रणाम सर,
    आपके narration से नेहरु-पटेल वाली परिस्थिति की झलक मिलती है…क्या विडम्बना है, जिन्हें लोग दुसरे “लौह-पुरुष” के नाम से जानते थे, यहाँ वह नेहरु की भूमिका में नजर आते है….
    बाकी आगे क्या होगा, वह भारत के भाग्य पर भी कुछ-कुछ निर्भर करेगा.
    सादर

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  5. बाहर वालों से नही घर वालों से ही हारता है मनुष्य ।
    अंततः ।
    मोदी जी अपवाद नही शायद
    महादेव

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  6. प्रणाम
    तीरासी की उम्र , पुस्तकों से चोली- दामन, रोज़ी – रोटी का साथ , ईलाहाबाद शहर , अब ये ग्र्वोर जी नही उनका अनुभव बोल रहा है मै गंभीरता से लेना चाहूँगा । अडवानी पर मोदी भारी पड़ेंगे ? या नही ये तो समय के गर्भ मे है मगर मोदी के भारतीय राजनिती पर बढ़ते प्रभाव को रोकना मुसकिल है ।
    राजनिती को अपना भी नही सकते उससे भाग भी नही सकते ।
    प्रणाम

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  7. द्विवेदी जी को प्रश्न का उत्तर मिलना चाहिये :)

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  8. बड़ा अजीब आत्मविश्वास है। पसन्दगी क्यों है? यह पसन्द करने वाला बताता नहीं और लिखने वाला पूछता नहीं। एक तरफ ये विश्वास है कि वह अपनी पार्टी के लोगों को मैनेज नहीं कर सकता, दूसरी ओर यह भी कि वह देश को अच्छे से मैनेज कर लेगा।

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    1. माननीय मनमोहन सिंह जी ही प्रधान मंत्री के लिए ठीक हैं… सभी से मेनेज हो जाते हैं.:)

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